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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

23 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

23 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर परीक्षा में फेल हो गया था। उसने चेहरा उदासीनता और हीन भाव से भरा था। वह यह तो अच्छी तरह जानता था कि उसके फेल होने का कारण क्या है? उसने इस बार पढ़ाई में मन ही नहीं लगाया था। खेलने और बातों में पूरा साल बिता दिया था। फिर भी वह दोष अध्यापक को दे रहा था कि उसने मुझे पूरे नंबर नहीं दिये और फेल कर दिया। वह दोस्तों के सामने बार बार अपने आक्रोश को अभिव्यक्त कर रहा था। पिताजी ने जब परीक्षाफल देखा तो उसे डांटते हुए कहा पूरा साल इधर उधर घूमता रहा। पढ़ाई की नहीं तो पास कहां से होगा? पिताजी की डांट सुनकर जटाशंकर रोने लगा। उसका रोना और रोनी सूरत देखकर पिताजी ने सोचा जो होना था, वह तो हो गया। अब यदि ज्यादा डांटा गया तो पता नहीं यह क्या क्या विचार कर लेगा? अत : इसे सांत्वना देनी चाहिये। पिताजी ने जटाशंकर को आधे घंटे के बाद अपने पास बुला और कहा बेटा! चिंता न करो। तुम्हारे भाग्य में फेल होना ही लिखा था, इसलिये ज्यादा फ़िक्र न करो। जटाशंकर ने कुछ सोचकर तुरंत जवाब दिया पिताजी, अच्छा हुआ जो मैंने इस वर्ष पढ़ाई नह

22 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

22 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। पिता से डरकर वह पढने के लिये बैठ ज़रूर जाता था। रात में वह पढ़ाई करता था। परीक्षाएं सिर पर थी फिर भी चिंतित नहीं था। सुबह ही सुबह उसके पिता ने कहा बेटा! कल तुमने रात पढ़ाई नहीं की। क्या जल्दी सो गये? जटाशंकर सो तो जल्दी गया था। पर वह जानता था कि सच बोलने से डांट तो मिलेगी ही मार भी मिल सकती है। उसने असत्य का प्रयोग करते हुए कहा नहीं पिताजी। कल तो मैं अपने कमरे में रात बारह बजे तक पढ़ता रहा था। पिताजी ने कहा क्या कहा? रात बारह बजे तक पढ़ रहे थे लेकिन कल रात को लाईट 10 बजे ही चली गई थी। सुनकर जटाशंकर घबराया। उसने तुरंत जबाब देते हुए कहा क्या बताउं पिताजी! कल मैं पढ़ाई में इतना लीन हो गया था कि लाइट कब चली गई, मुझे पता ही नहीं चला। प्रत्युत्तर उसके भोलेपन को भी अभिव्यक्त कर रहा था और उसकी असत्यता को भी। एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरे झूठ का आश्रय लेना होता है पर जरूरी नहीं कि दूसरा झूठ पहले झूठ को छिपा ही देगा। सच तो यही है कि सच बहुत जल्दी प्रकट हो जाता है।

21 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

21 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर नौटंकी में काम करता था। उसका डीलडौल इतना विशाल था कि राजा का अभिनय उसे ही करना होता था। महाराणा प्रताप के नाटक में उसे महाराणा का रोल मिला। वह नाटक इतना प्रसिद्ध हुआ कि जगह जगह खेला जाने लगा। जटाशंकर इतनी बार वह नाटक कर गया कि वह अपना मूल परिचय भूल गया और अपने आपको महाराणा प्रताप ही समझने लगा। वह हर समय ढाल बांधकर, सिर पर लौहटोप धारण कर, कवच धारण कर, हाथ में विशाल भाला लिये महाराणा प्रताप की वेशभूषा में रहने लगा। एक बार वह बस में सवार था। बस में भीड़ थी। वह हाथ में भाला लिये खड़ा था। भाला बहुत लम्बा था। कंडक्टर ने कहा भाई साहब! आपके भाले से बस की चद्दर में छेद हो रहा है। मेहरबानी कर भाला थोडा टेढा कर लें। जटाशंकर ने जबाव दिया मैं महाराणा प्रताप हूं। मुझे कहने वाला कौन? मेरा भाला सीधा ही रहेगा। कंडक्टर बिचारा बड़ा परेशान हो गया। उसने सोचा ये महाराणा प्रताप तो मेरी बस ही तोड देगा। कोई उपाय करना चाहिये। अगला बस स्टेण्ड आते ही कंडक्टर जोर से चिल्लाया चित्तौड़ आ गया। चित्तौड का नाम सुनते ही महाराणा प्रताप नीचे उतर गये

20 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

20 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . उम्र छोटी होने पर भी जटाशंकर बहुत तेज तर्रार था। हाजिर जवाब था। बगीचे में आम्रफलों से लदे वृक्षों को देखकर उसके मुँह में पानी भर आया। वह चुपके से बगीचे में घुसा और पेड पर चढ़ गया। आमों को तोड़ तोड़कर नीचे फेंकने लगा। दस-पन्द्रह आम तोड़ लेने के बाद भी वह लगातार और आम तोड़ रहा था। वह एक और आम तोड़ रहा था कि बगीचे का मालिक हाथ में डंडा लेकर भीतर चला आया। जटाशंकर को आम तोड़ते देखकर चिल्लाने लगा। जटाशंकर पलभर में सारी स्थिति समझ गया। क्षणभर में दिमागी कसरत करता हुआ कहने लगा। पधारिये बाबूजी ! उसे मुस्कराते देख बगीचे के मालिक का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ गया। एक तो आम तोड़ रहा है, उपर से मुस्करा भी रहा है? तू नीचे उतर! फिर चखाता हूं मजा। जटाशंकर कहने लगा- अरे! भलाई को तो जमाना ही नहीं रहा। कौन कहता है कि मैं आम तोड़ रहा था। अरे! ये आम नीचे पड़े थे। शायद हवा से नीचे गिर गये होंगे। मैं इधर से गुज़र रहा था, तो मैने सोचा कि आम नीचे पड़े हैं। कोई ले जायेगा तो आपका नुकसान हो जायेगा, इसलिए मैं तो इन गिरे हुए आमों को वापस चिपका रहा था। मैं

19 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

19 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . स्वभाव से ढीला ढाला जटाशंकर किसी भी बात पर दृढ नहीं रह पाता था। इसके कारण उसके माता पिता भी बहुत परेशान रहते थे तथा उसे बार बार समझाते थे कि थोडा दृढ़ रहना चाहिये। अपनी बात पर डटे रहना चाहिये। जो पकड़ लिया, उसे छोड़ना नहीं चाहिये। सुन सुन कर जटाशंकर तंग आ गया। आखिर उसने तय कर लिया कि अब मैं पकडी बात तो हरगिज नहीं छोडूंगा। डटा रहूंगा। प्राण जाए पर वचन न जाइ का प्राण से पालन करूंगा। एक बार विचारों में खोया किसी गली से गुजर रहा था। उसने आगे जाते हुए एक गधे को देखा। पता नहीं, क्या मन में आया कि उसने गधे की पुंछ पकड़ ली। कुछ देर तो गधा सीधा चलता रहा पर जब उसने अपनी पुंछ पर मंडराता खतरा महसूस हुआ तो उसने अपना परिचय देना प्रारम्भ किया। उसने दुलत्ती झाडना शुरू कर दिया। जटाशंकर को अपनी मां के वचन याद हो आये कि पकडी चीज को छोड़ना नहीं चाहिये। उसने मन को मजबूत कर लिया कि आज कुछ भी हो जाये, पुंछ नहीं छोडूंगा। भागते और लात मारते गधे के पीछे पुंछ पकड कर मार खाते जटाशंकर को जब लोगों ने देखा तो कहा अरे! पुंछ छोड़ क्यों नहीं देता? जटाशंकर

18 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

18 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . घटाशंकर नाव पर सवार था। नदी उफान पर थी। अकेला घटाशंकर उकता रहा था। वह नाव के नाविक मि. जटाशंकर से बातें करने लगा। नाविक को बातों में कोई रस नहीं था। दूर दूर तक कोई दूसरी नाव भी नजर नहीं आ रही थी। किनारा अभी दूर था। अभी आधा रास्ता भी पार नहीं हुआ था। नदी बहुत गहरी और तीव्र धार वाली थी। मौसम बिगड रहा था। बादल उमड घुमड रहे थे। हल्की बौछारों का प्रकोप प्रांरभ हो गया था। आसपास छाई हरियाली को देखकर घटाशंकर का मन आकाश में उड रहा था। उसे नाविक से पूछा क्यों भाई! कितना पढे लिखे हों? नाविक ने कहा हजूर! अनपढ़ हूं। अरे! तुम्हें गणित विद्या आती है कुछ! यह जानकर कि नाविक अनपढ है, उसका उपहास करते हुए अंहकार से तनकर घटाशंकर ने पूछा। नाविक उदास आँखों से झांकते हुए बोला बिल्कुल भी नहीं! सुनकर मुस्कराते हुए घटाशंकर ने कहा फिर तो चार आना जिन्दगी तुम्हारी पानी में गई। घटाशंकर ने फिर पूछा तुम्हें कुछ पता है कि विज्ञान की क्या नई खोज है? कुछ विज्ञान विद्या आती है तुम्हें? नाविक रूआंसा होकर बोला बिल्कुल भी नहीं हजूर! हम तो बचपन से ही नाव च

17 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

17 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . विद्यालय से न केवल अपनी कक्षा में बल्कि पूरे विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर खुशियों से झूमता हुआ जटाशंकर का बेटा घटाशंकर अपने घर लौट रहा था। वह बार बार अपने हाथ में कांप रहे प्रमाण पत्र को देखता और मन ही मन राजी होता। उसके दोस्त प्रसन्न थे। और उनकी बधाईयों को प्राप्त कर घटाशंकर प्रसन्न था। वह रास्ते भर विचार करता रहा कि आज मेरे पिताजी जब इस प्रमाण पत्र को देखेंगे। मैंने भिन्न भिन्न विषयों में जो अंक प्राप्त किये हैं, उनकी संख्या देखेंगे तो वे मुझ पर कितने राजी होंगे? आज मेरी हर इच्छा पूरी होगी। पूरे घर में मेरी चर्चा होगी। पिताजी, माताजी, बडे भैया, मेरी जीजी के होठों पर आज मेरा ही नाम होगा। वह कल्पना कर रहा था कि पिताजी जब मेरी इच्छा जानना चाहेंगे तो मैं क्या मागूंगा? आज छोटी मोटी किसी चीज से काम नहीं चलेगा! मैं तो मारूति मागूंगा! या फिर हीरो होण्डा ही ठीक रहेगा। अपनी कल्पनाओं की काल्पनिक मस्ती में आनंदित होता हुआ जब वह घर पहुँचा तो प्यास लगने पर भी पहले उसने पानी नहीं पीया, वह खुशी खुशी पापा के पास पहुँचा। उसके पिता

16 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

16 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . अपनी हरकतों के कारण सारा गाँव जटाशंकर को मूर्ख कहता था। उसे न बोलने का भान था, न करने का! हांलाकि वह अपने आपको बडा ही समझदार और होशियार आदमी मानता था। वह अपने मुँह मिट्ठू था। मगर समस्या यह थी कि अनजाना आदमी भी उसकी आदतों को देखकर मूर्ख कह उठता था। वह तंग आ गया। क्रोध की सीमा नहीं रही। झल्लाते हुए उसने सोचा, यह गाँव ही बेकार है। यहाँ के लोग ईर्ष्या से भरे हैं। मेरी बढती और मेरा यश इन लोगों को सुहाता नहीं है । इसलिये जब देखो तब ये लोग मेरी निन्दा करते रहते है। उसने गाँव का त्याग करने का निर्णय कर लिया। उसने सोचा- दूसरे गाँव जाउँगा। वहाँ लोगों को मेरा परिचय होगा नहीं, तो वे लोग मुझे मूर्ख नहीं कहेंगे। वहाँ मैं अपनी बुद्धि का चमत्कार दिखाउँगा और यश कमाउँगा। उसने दूसरे ही दिन गाँव को नमस्कार कर अंधेरे अंधेरे ही चल पडा। शाम तक चलता चलता थकान का अनुभव करता हुआ दूसरे गाँव पहुँचा। गाँव के बाहर कुऐं के पास एक विशाल वटवृक्ष के तले थोड़ी देर विश्राम हेतु बैठ गया। उसे प्यास लगी थी। कुऐं के पास टंकी थी । टंकी के नीचे एक ओर नल लगे हुए थे। गा

15 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

15   जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर अपने तीन अन्य मित्रों के साथ घूमने चला था। अंधेरी रात में छितरी चांदनी का मनोरम माहौल था। मंद बहारों की मस्ती भरे वातावरण में उन्होंने शाम को शराब पी थी। शराब की मदहोशी के आलम में दिमाग शून्य था। उडा जा रहा था। घूमते घूमते नदी के किनारे पहुँच गये। ठंडी हवा के झोंकों में सफर करने का उनका मानस तत्पर बना। नदी के किनारे नाव पडी थी। उसे देखा तो सोचा कि आज रात नाव में घूमने का आनंद उठा लिया जाय! जटाशंकर के इस प्रस्ताव का सबने समर्थन किया। चारों मित्र नाव पर सवार हो गये। बैठते ही पतवारें थाम ली। रात के ठंडक भरे माहौल में उन्होंने नाव खेना प्रारंभ किया। शराब का नशा था तो पता ही नहीं चला कि समय कितना बीता! रात भर वे नाव चलाते रहे। पतवारें खेते रहे। नशे के कारण हाथों में थकान का जरा भी अनुभव न था। पौ फटने का समय आया। प्रकाश धीरे धीरे छाने लगा। तो एक दोस्त बोला- अरे ! नाव चलाने में अपन इतने मशगूल हो गये कि पता ही नहीं चला, कितनी दूर आ गये ! सवेरा होने का अर्थ है कि रात भर अपन चलते रहे हैं। कम से कम 100 कोस की दूरी तो अ

14 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

14 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . पेट में दर्द होने के कारण जटाशंकर अस्पताल पहुंचा। वैद्यराजजी ने अच्छी तरह निरीक्षण करने के उपरान्त दवाई की नौ पुडियाँ उसके हाथ में देते हुए कहा प्रतिदिन तीन पुडियाँ लेना और तीन दिन बाद वापस आना। तीन दिन पूरे होने के बाद वापस वैद्यराजजी के पास पहुँचा। दर्द के बारे में बताते हुए कहा पेट का दर्द तो बढ ही गया है। साथ ही गले में दर्द का अनुभव हो रहा है। वैद्यराज ने पूछा तुमने दवाई तो बराबर ली। जटाशंकर ने कहाँ श्रीमान् दवा आपके कहे अनुसार ली। पूरी ली। पर पुडिया का कागज बहुत ही चिकना था। गले के नीचे उतरता ही नहीं था। दम निकला जाता था मेरा। पर मैने नौ ही पुडिया उतार ली थी। आश्चर्य चकित होते हुए वैद्यराज जी बोले-कागज खाने को किसने कहा था? हुजूर। आपने ही तो रोज तीन पुडी खाने को कहा था। हाँ, उस पुडिया में धूल, राख, कचरा जैसा कुछ था, उसको फेंक देता था। पर पुडियाँ मैंने बराबर खाई सुनने के बाद वैद्यराज जी यह निर्णय न कर सके कि मुझे इस पर क्रोध करना चाहिये या हँसना चाहिये। मूल तो बात सही समझ की है। यथार्थ समझ के अभाव में बहुत बा

13 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

13 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . हडबड़ाकर जटाशंकर उठ बैठा। काफी देर तक आँखें मसलता रहा। हाथ मुँह धोकर कुर्सी पर बडे आराम से चिन्तन की मुद्रा में बैठ गया। यह सोच रहा था। अपने सपने के बारे में जो उसने अभी अभी देखा था। सपने में उसके घर हजार व्यक्तियों का भोजन का समारोह होने वाला था। पाक-कलाकार पकवान तैयार कर रहे थे। घेवर से कमरा भरा था। लड्डुओं से थाल सजे थे। गरम-गरम कचोरियाँ  और पूरियाँ तली जा रही थी। खाना प्रारंभ हो, उससे पहले ही उसकी आँख खुल गई थी। वह परेशान था कि इतनी मिठाईयों का मैं अकेले क्या करूँगा? थोडी देर बाद अचानक उसे एक विचार सूझा। क्यों न सारे गाँव को, पूरी न्यात को भोजन का आमंत्रण दे दूं? अपने निर्णय पर गौरव युक्त आनंद का अनुभव करता हुआ पूरे गाँव को न्योते गली गली घूमने लगा। लोग उसकी स्थिति जानते थे, अत: अचरज करने लगे लेकिन सोचा हो सकता है, कोई लाटरी लगी हो या गढा धन मिला होगा। भोजन के वक्त वहाँ पहुँचे पंचो और लोगों ने तब बहुत ही आश्चर्य का अनुभव किया जब जटाशंकर के घर भोजन निर्माण व्यवस्था की कोई तैयारी नहीं दिखी। आखिर जटाशंकर की तलाश की गई तो प

12 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

1 2 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म सा. दो चींटियाँ आपसे में बाते करती हुई चली जा रही थी। अन्य चींटियों से थोड़ी बडी भी थी और ताक़तवर भी। किसी ने उनका नाम जटाशंकर और घटाशंकर रखा था। अपनी ताकत का अहंकार भी मानस में था। सामने से एक हाथी चला आ रहा था। हाथी के विशाल आकार को देखा तो चीटिंयां अपने मन में अपनी लघुता के कारण हीन भाव का अनुभव करने लगी। उस हीन भाव से प्रेरित अंहकार भाव में डूबकर एक चींटी हाथी से कहने लगी- खा खा कर बड़े मोटे हुए जा रहे हो। कुछ ताकत भी है या नहीं, या यों ही वादी से भरें हो। हमसे लडोगे? हाथी कुछ बोला नहीं। दूसरी चींटी ने उसे मौन देख पहली चींटी से कहने लगी। छोड़ो बेचारे को! देखो कैसा घबरा रहा है। अरे वो बिचारा अकेला है, अपन दो है। छोड़ो। लडाई बराबर वालो में की जाती है। यह अकेला बिचारा अभी भाग जायेगा। यह अपने मुँह मिट्ठू बनने का उदाहरण हैं। बहुत बार हम अपने थोथे अहं का प्रदर्शन उसके लिये करते हैं जो हकीकत में हमारे पास नहीं होता।

11 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

11 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर का बेटा बीमार था। बुखार बहुत तेज था। कमजोरी अत्यधिक थी। बोलने में भी पीड़ा का अनुभव था। छोटा सा गांव था। एक वैद्यराजजी वहां रहते थे। उन्हें बुलवाया गया। वैद्यराजजी ने घटाशंकर का हाथ नाड़ी देखने के लक्ष्य से अपने हाथ में लिया। जल्दबाजी कहें या अनुभवहीनता। कलाई में जहाँ नाड़ी थी, वहाँ न देखकर दूसरे हिस्से में नाड़ी टटोलने लगे। काफी प्रयास करने पर भी उन्हें नाड़ी नहीं मिली। वैद्यराजजी के चेहरे के भावों का उतार-चढ़ाव जारी था। उनके उतरे चेहरे को देखकर जटाशंकर की ध्ाड़कन  तेज हो गई। उसे किसी अनिष्ट की आंशका हो रही थी। काँपती जबान और धडकती छाती से उसने पूछा वैद्यराजजी। क्या बात है? आप कुछ बोल नहीं रहे हैं? सब ठीक तो है न? मेरा बेटा ठीक हो जायेगा न? वैद्यराजजी ने उदास स्वरों में कहा भाई। इसकी नाडी नहीं चल रही है। इसका अर्थ है कि अब यह जीवित नहीं है क्योंकि जीवित होता तो नाड़ी चलती। अपने बेटे की मृत्यु का संवाद सुनकर जटाशंकर जोर जोर से रोने लगा। घटाशंकर ने अपनी सारी शक्ति एकत्र की ओर जोर से बोला पिताजी! मैं जिन्दा हूँ। मरा नहीं। सुन
10 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. परीक्षा देने के बाद जटाशंकर अपने मन में बडा राजी हो रहा था। पिछले दो वर्षो से लगातार अनुत्तीर्ण होकर उसी कक्षा में चल रहा जटाशंकर आश्वस्त था कि इस वर्ष न केवल उत्तीर्ण बनूंगा बल्कि प्रथम श्रेणी में आकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करूंगा। असल में इस बार उसने जोरदार नकल की थी। परीक्षा में उसके आगे बैठे घटाशंकर की काँपी ज्यों की त्यों कॉपी  पर उतार दी थी। वह जानता था कि घटाशंकर हमेशा प्रथम आता है, तो जब मैंने उसकी पूरी काँपी उतारी है, तो मुझे कम अंक मिल ही नहीं सकते। नकल करने में शरीर की लम्बाई, आंखों की तेज दृष्टि अध्यापक  निरीक्षक के आलस्य ने उसका पूरा सहयोग किया था। आंखों में मुस्कान, हृदय में आत्मविश्वास भरी अधीरता लिये वह परीक्षा फल की प्रतीक्षा करने लगा। उस दिन उसने नये वस्त्र धारण किये थे। कालेज में पहुँचकर सब सहपाठियों के बीच मुस्करा रहा था। उसकी रहस्य भरी मुस्कुराहट देख सभी छात्र सोच रहे थे कि इसे तो अनुत्तीर्ण ही होना है। लगातार फेल होने पर भी अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन नहीं किया है। खेलना, कूदना, बातें, गप्पे,
9 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. सुबह ही सुबह जटाशंकर के मन में इच्छा जगी कि ज़िंदगी मैं तैरना ज़रूर सीखना चाहिये। कभी विपदा में उपयोगी होगा। वह प्रशिक्षक के पास पहुँचा। वार्तालाप कर सौदा तय कर लिया। प्रशिक्षक उसे स्विमिंग पुल पर ले गया। स्वयं पानी में उतरा और जटाशंकर को भी भीतर पानी में आने का आदेश दिया। जटाशंकर पहली पहली बार पानी में उतर रहा था। डरते डरते वह घुटनों तक पानी में उतर गया। प्रशिक्षक ने कहा ओर आगे आओ। छाती तक पानी में जाते जाते तो वह कांप उठा। साँस ऊ पर नीचे होने लगी। दम घुटने लगा। प्रशिक्षक उसे तैरने का पहला गुर सिखाये , उससे पहले ही जटाशंकर ने त्वरित निर्णय लेते हुए पानी से बाहर छलांग लगा दी। किनारे खडे जटाशंकर से प्रशिक्षक ने कहा अरे, अन्दर आओ। मैं तुम्हें तैरना सिखा रहा हूं और तुम बाहर भाग रहे हो। जटाशंकर ने कहा महाशय! मुझे पानी में बहुत डर लग रहा है। डूबने का खतरा दिल दिमाग पर छाया हैं इसलिये मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक मैं तैरना नहीं सीख लूंगा, तब तक मैं पानी में कदम नहीं रखमंगा। पानी में उतरे बिना तैरना सीखा नहीं जा सकता। साधन
8 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर अपने दोस्त के यहाँ मेहमान था। भोजन का समय होने पर थाली परोसी गई। अन्य सामग्री के साथ एक कटोरी में खीर भी रखी गई। परोस कर मित्र वापस रसोई में गया ही था कि जटाशंकर ने खीर की कटोरी को पास की नाली में उडेल दिया। यह देख दोस्त ने सोचा शायद खीर में कुछ कचरा पड़ गया होगा। दुबारा उस कटोरी को भर दिया। मगर जटाशंकर ने दूसरी बार भी खीर को नाली में फेंक दिया। दोस्त बडा हैरान हुआ। उसे गुस्सा भी आया कि इतनी महंगी, बढिया और स्वादिष्ट खीर को यह यों फेंक रहा है। लेकिन मेहमान होने के नाते उसने कुछ नहीं कहा। वह क्रोध को भीतर ही पी गया और तीसरी बार उसने कटोरी को खीर से भर दिया। पर जब तीसरी बार भी जटाशंकर ने खीर को नाली में बहा दिया तो मेजबान ने गुस्से से पूछा-‘भाई, तुम बार बार खीर को नाली में क्यों फेंक रहे हो?’ जटाशंकर ने कहा-फेंकू नहीं तो क्या करूं? खीर में चींटी है। कैसे पीउं? दोस्त ने पल भर उसे देखा और चीख कर कहा अरे मूर्ख! चींटी खीर में नहीं तुम्हारे चश्में पर चल रही है, जो तुम्हें खीर में नजर आती है। जटाशंकर ने चश्मा उतार कर उस पर चल
7 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. घर में जटाशंकर जोर जोर से रो रहा था। चीखता भी जा रहा था। हाय मेरी नई की नई छतरी कोई ले गया?   लोक इकट्ठे होने लगे। पड़ोसी पहुँच गये। दोस्तों को खबर मिली की जटाशंकर रो रहा है तो वे भी सांत्वना देने आ पहुँचे। उनके पूछने पर जटाशंकर ने कहा-मैं ट्रेन से आ रहा था। मेरे पास नया छाता था। दो-तीन व्यक्ति रेल में मेरे पास बैठे मुझसे बतिया रहे थे। बातों ही बातों में मुझे पता ही नहीं चला और उन्होंने छाता बदल लिया। अपना पुराना फटा पुराना छाता छोड़ दिया और नया छाता ले गये। हाय मेरा नया छाता?   अपनी छतरी की यादें  ताज़ा  हो उठी। क्या मेरा नया  छाता  था?   एक बार भी तो काम में नहीं लिया था। दोस्तों में सांत्वना देते हुए कहा चिंता मत करो। जो चला गया वो वापस तो नहीं आयेगा। वातावरण कुछ हल्का होने पर एक मित्र ने विचार कर पूछा। एक बताओ,   जटाशंकर। क्या? यह तो बता कि तूने वह छाता कब ख़रीदा था,   कहां से,   किस दुकान से  ख़रीदा  था,   कितने रूपये का था? जटाशंकर ने कहा-यह मत पूछ! यह तो पूछना मत। उसके दृढ़ इंकार ने दोस्तों के मन में रहस्य गहरा हो उ
6 जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर का हाथ मशीन में आ गया था। अस्पताल में भर्ती करने के बाद डाक्टर ने कहा-तुम्हारा यह बायां हाथ काटना पडेगा। सुनकर जटाशंकर रोने लगा। डाक्टर ने उसे सांत्वना देते हुए कहा भाई जटाशंकर! तुम इतने दु:खी मत बनो। अच्छा हुआ जो बायां हाथ मशीन में आया। यदि दाहिना हाथ आ जाता तो तुम बिल्कुल बेकार हो जाते। भगवान का शुक्र है,जो तुम बच गये। जटा शंकर ने रोते रोते कहा डाक्टर साहब! मशीन में तो मेरा दाहिना हाथ ही आया था। लेकिन मैंने दाहिने हाथ की विशिष्ट उपयोगिता का क्षण भर में विचार कर पल भर में निर्णय लेते हुए दाहिना हाथ वापस खींच लिया और बांये हाथ को अन्दर डाल दिया। सुनकर डाक्टर उसकी मूर्खता पर मुस्कुराने लगा। अरे! दायां हाथ निकल ही गया था तो बायां हाथ डालने की क्या जरूरत थी? मूर्खता पर भी शेखी बघारने की आदती बढ़ती जा रही है। चिंतन नहीं कि मैं क्या कर रहा हूं? क्यों कर रहा हूं?   परिणाम क्या होगा? www.jahajmandir.com -------------------------- www.jainEbook.com
5  जटाशंकर  -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर   दौड़  दौड़  कर   पूरे   गांव   में   मिठाई   वितरण   कर   रहा   था।   गांव   वालों   ने   उससे   पूछा   भाई   क्या   बात   है ?    पुत्र   हुआ   है। जटाशंकर   ने   कहा   नहीं ! फिर   किस   बात   के   लिये   मिठाई   बांट   रहे   हो ! अरे !  मत   पूछो   यह   बात !  मैं   आज   कितना   अपने   आपको   प्रफुल्लित   महसूस   कर   रहा   हूं। आखिर   गांव   के  25-30  व्यक्ति   एक   साथ   इकट्ठे   होकर   उससे   पूछने   लगे   भैया ,  कारण   तो   तुम्हें   बताना   ही   होगा। जटाशंकर   ने   कहा - अरे ,  और   कुछ   नहीं   मेरा   गधा   खो   गया   हैं ,  इस   उपलक्ष्य   में   मिठाई   वितरण   कर   रहा   हूँ। लोग   हैरान   होकर   कहने   लगे   भैया ,  यह   बात   खुशी   की   है   या   शोक   की !  तुम   परेशान   होने   की   जगह   राजी   हो   रहे   हो। जटाशंकर   ने   कहा   राजी   क्यों   न   होउँ।   रोज   मैं   गधे  पर   सवार   होकर   निकलता   था।   यदि   मैं   उस   पर     सवार   होता   तो   गधे  के   साथ   साथ   मैं   भी   नहीं   खो
4  जटाशंकर   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा. जटाशंकर   स्कूल   में   पढता   था।   अध्यापक   ने   एक   दिन   सभी   छात्रों   को   अलग   अलग   चित्र   बनाने   का   आदेश   दिया।   सबको   अलग   अलग   विषय   भी   दिये। सभी   अपनी   अपनी  कॉपी  खोलकर   चित्र   बनाने   में   जुट   गये।   जटाशंकर   को   बैठी   गाय   का   चित्र   बनाना   था।   पर   उसे   चित्र   बनाते   समय   ध्यान   न   रहा।   बैठी   गाय   के   स्थान   पर   खडी   गाय   का   चित्र   बना   डाला। जब   अध्यापक   ने   उसकी   काँपी   देखी   तो   वह   चिल्ला   उठा।   यह   क्या   किया   तूने ?  मैंने   क्या   कहा   था ? जटाशंकर   ने   जबाव   दिया   सर !  जैसा   आपने   कहा   था   वैसा   ही   चित्र   बनाया   है।   अध्यापक   ने   डंडा   हाथ   में   लेकर   उसे   दिखाते   हुए   कहा   मूर्ख !  मैंने   बैठी   गाय   का   चित्र   बनाने   को   कहा   था   और   तूने   खड़ी   गाय   का   चित्र   बना   दिया। जटाशंकर   पल   भर   विचार   में   पड   गया।   उसने   सोचा   गलती   तो   हो   गई।   अब   क्या   करूँ   कि   मार   न   पड़े। वह