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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

29 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

29 जटाशंकर          - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर की पत्नी ने अपने पति से कहा- लगता है! हमारा नौकर चोर है। हमें सावधान रहना होगा। जटाशंकर ने कहा- नौकर यदि चोर है तो उसकी छुट्टी कर देनी चाहिये। ऐसे चोर का हमारे घर क्या काम? लगता है, इसके माता पिता ने इसे सुसंस्कार नहीं दिये। लेकिन तुमने कैसे जाना कि वह चोर है। क्या चुराया उसने! पत्नी ने कहा- अरे! अपने पाँच दिन पहले अपने मित्र द्वारा आयोजित भोजन समारंभ में गये थे न! वहाँ से दो चांदी के चम्मच अपन उठा कर नहीं लाये थे। वे चम्मच आज मिल नहीं रहे हैं। हो न हो! इसी ने चुराये होंगे। कैसा खराब आदमी है, चोरी करता है! खुद ने चम्मच चोरी करके अपने झोले में डाले थे। अपनी यह चोर वृत्ति आनंद दे रही थी। कोई और चोरी करता है, दर्द होता है। जीवन में हम इसी तरह का मुखौटा लगा कर जीते हैं। दूसरों की छोटी-सी विकृति पर बडा उपदेश देना बहुत आसान है। अपनी बडी विकृति पर दो आँसू बहाने बहुत मुश्किल है।

27 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

27 जटाशंकर      - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . 10 वर्षीय जटाशंकर एक बगीचे में घुस आया था। बगीचे के बाहर प्रवेश निषिद्ध का बोर्ड लगा था। फिर भी वह उसे नजर अंदाज करके एक पेड के नीचे खडे होकर फल बटोर रहा था। उसने बहुत साव धा नी बरती थी कि चौकीदार कहीं उधर न आ जाये। हाँलाकि उसने पहले काफी ध्यान दिया था कि चौकीदार वहाँ है या नहीं! आता है तो कब आता है... कब जाता है। दीवार फाँद कर वह उतर तो गया था, पर कुछ ही देर बाद चौकीदार वहाँ आ गया था। उसने जटाशंकर को जब फल एकत्र करते देखा तो चौकीदार ने अपना डंडा घुमाया और जोर से चिल्लाया- क्या कर रहे हो? फल तोडते शर्म नहीं आती! जटाशंकर घबराते हुए बोला- नही हुजूर! मैं तो ये फल जो नीचे गिर गये थे, इन्हें वापस चिपका रहा था। चौकीदार गुस्से में चीखा- शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए! अभी चल मेरे साथ! तुम्हारे पिताजी से शिकायत करता हूँ। कहाँ है तुम्हारे पिताजी! जटाशंकर हकलाते हुए बोला- जी! पिताजी तो इसी पेड पर चढे हुए हैं। उन्होंने ही तो सारे फल तोड कर नीचे गिराये हैं। चौकीदार अचंभित हो उठा। जहाँ पिताजी स्वयं अनैतिक कार्य करते हो, वहाँ पुत्

26 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

26 जटाशंकर    - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर बगीचे में घूमने के लिये गया था। वह फूलों का बडा शौकीन था। उसे फूल तोड़ना, सूंघना और फिर पाँवों के नीचे मसल देना अच्छा लगता था। उसकी इस आदत से सभी परेशान थे। बगीचे वाले उसे अंदर आने ही नहीं देते थे। फिर भी वह नजर बचाकर पहुँच ही जाता था। एक शहर में उसका जाना हुआ। बगीचे में घूमते घूमते कुछ मनोहारी फूलों पर उसकी नजर पडी। वहाँ लगे बोर्ड को भी देखा। उसने पल भर सोचा, निर्णय लिया। और फूलों को न तोड़कर पूरी डालियों को ही.... मूल से ही कुछ पौधों को उखाडने लगा। उसने एकाध पौ धा तोडा ही था कि चौकीदार डंडा घुमाता हुआ पहुँचा और कहा- ऐ बच्चे! क्या कर रहे हो! -बोर्ड पर लिखी चेतावनी तुमने नहीं पढी कि यहाँ फूल तोडना मना है? जटाशंकर ने बडी बेफिक्री से कहा- हुजूर पढी है चेतावनी! -फिर तुम चेतावनी का उल्लंघन क्यों कर रहे हो? - मैंने कोई उल्लंघन नहीं किया! बोर्ड पर साफ लिखा है- फूल तोडना मना है। मैंने फूल नहीं तोडे हैं। मैं तो डालियाँ और पौधों को उखाड रहा हूँ। और पौधों को उखाडने का मना इसमें नहीं लिखा है। चौकीदार बिचारा अपना सिर पी

25 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

25 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर की आदत से उसकी पत्नी बडी परेशान थी। वह उसके हर काम में हमेशा मीन मेख निकालता ही था। गलती निकाले बिना... और गलती निकाल कर दो चार कडवे शब्द बोले बिना उसकी रोटी जैसे पचती नहीं थी। अक्सर खाने में कोई न कोई कमी निकालता ही था। उसकी पत्नी बडी मेहनत करती कि कैसे भी करके मेरे पति मेरे खाना बनाने की कला से पूर्ण संतुष्ट होकर तृप्ति का अनुभव करें। पर जटाशंकर अलग ही माटी का बना था। उसकी पत्नी प्रशंसा के दो शब्द सुनने के लिये तरस गई थी। पर मिले हमेशा उसे कडवे शब्द ही थे। उसकी पत्नी ने भोजन में टमाटर की चटनी परोसी थी। तो जटाशंकर तुनक कर बोला- अरे ! जिस टमाटर की तुमने चटनी बनायी , यदि इसके स्थान पर तुम टमाटर की सब्जी बनाती तो ज्यादा अच्छा रहता... बडा मजा आता...! मगर तूंने चटनी बनाकर सारा काम बेकार कर दिया। दूसरे दिन उसने टमाटर की चटनी न बनाकर सब्जी बना दी। जटाशंकर मुँह चढाता हुआ बोला- आज के टमाटर तो चटनी योग्य थे... आनंद ही कुछ अलग होता! तूंने आज सब्जी बना कर गुड गोबर कर दिया। बेचारी पत

24 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

108 Names of Parshvanath Shri Ajhara Parshvanath Shri Mahadeva Parshvanath Shri Alokik Parshvanath Shri Makshi Parshvanath Shri Amijhara Parshvanath Shri Mandovara Parshvanath Shri Amrutjhara Parshvanath Shri Manoranjan Parshvanath Shri Ananda Parshvanath Shri Manovanchit Parshvanath Shri Antariksh Parshvanath Shri Muhri Parshvanath Shri Ashapuran Parshvanath Shri Muleva Parshvanath Shri Avanti Parshvanath Shri Nageshvar Parshvanath Shri Bareja Parshvanath Shri Nagphana Parshvanath Shri Bhabha Parshvanath Shri Navasari Parshvanath Shri Bhadreshvar Parshvanath Shri Nakoda Parshvanath Shri Bhateva Parshvanath Shri Navapallav Parshvanath Shri Bhayabhanjan Parshvanath Shri Navkhanda Parshvanath Shri Bhidbhanjan Parshvanath Shri Navlakha Parshvanath Shri Bhiladiya Parshvanath Shri Padmavati Parshvanath Shri Bhuvan Parshvanath Shri Pallaviya Parshvanath Shri Champa Parshvanath Shri Panchasara Parshvanath Shri Chanda Parshvanath Shri Phalvridhi Parshvanath Shri Charup Parshvanath Shri Posali