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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

27 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

27 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

10 वर्षीय जटाशंकर एक बगीचे में घुस आया था। बगीचे के बाहर प्रवेश निषिद्ध का बोर्ड लगा था। फिर भी वह उसे नजर अंदाज करके एक पेड के नीचे खडे होकर फल बटोर रहा था। उसने बहुत सावधानी बरती थी कि चौकीदार कहीं उधर न आ जाये।
हाँलाकि उसने पहले काफी ध्यान दिया था कि चौकीदार वहाँ है या नहीं! आता है तो कब आता है... कब जाता है।
दीवार फाँद कर वह उतर तो गया था, पर कुछ ही देर बाद चौकीदार वहाँ आ गया था। उसने जटाशंकर को जब फल एकत्र करते देखा तो चौकीदार ने अपना डंडा घुमाया और जोर से चिल्लाया- क्या कर रहे हो? फल तोडते शर्म नहीं आती!
जटाशंकर घबराते हुए बोला- नही हुजूर! मैं तो ये फल जो नीचे गिर गये थे, इन्हें वापस चिपका रहा था।
चौकीदार गुस्से में चीखा- शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए! अभी चल मेरे साथ! तुम्हारे पिताजी से शिकायत करता हूँ। कहाँ है तुम्हारे पिताजी!
जटाशंकर हकलाते हुए बोला- जी! पिताजी तो इसी पेड पर चढे हुए हैं। उन्होंने ही तो सारे फल तोड कर नीचे गिराये हैं।
चौकीदार अचंभित हो उठा।
जहाँ पिताजी स्वयं अनैतिक कार्य करते हो, वहाँ पुत्र को क्या कहा जा सकता है। उसे संस्कारी बनाने की बात हवा में महल बनाने जैसी होगी। संस्कारों का प्रारंभ स्वयं से होता है।

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