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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

19 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

19   नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. एक व्यापारी अपनी दुकान पर बैठा था। ग्राहक खडा था। महत्वपूर्ण सौदा चल रहा था। सामान तौला जा रहा था! थैलों में भरा जा रहा था। व्यापारी अपने काम में एकाग्र था। ग्राहक की नजर भी पूर्ण एकाग्र थी। सामान कुछ ज्यादा ही तौलना था। पाँच मिनट बीत चुके थे। आधा काम हो चुका था। इतने में एक भिखारी भिक्षा पात्र हाथ में लिये भगवान् के नाम पर कुछ मांगने के लिये आया। उसने अलख लगाई। ग्राहक ने उस ओर मुड कर भावहीन चेहरे से उसे देखा। व्यापारी का ध्यान भी उस ओर चला गया। तुरंत व्यापारी ने अपना काम छोडा! गल्ले के पास में गया। एक रूपया निकाला। भिखारी को देकर फिर काम में लग गया। इस दृश्य ने उस ग्राहक के मन में कई प्रश्न जगा दिये। उसने कहा- भाई साहब! आपने काम बीच में छोडकर वहाँ क्यों गये! यदि आपको एक रूपया भिखारी को देना ही था तो हाथ का काम पूरा करके भी दिया जा सकता था। -क्यों? व्यापारी ने प्रतिप्रश्न किया! -क्यों क्या? आखिर था तो भिखारी ही! कहाँ जाता! आप कहते कि ठहर! मैं अभी रूपया देता हूँ! वो बिचारा कहाँ जाता! पाँच मिनट तो क्या आधा घंटा भी कहीं नहीं जाता!

18 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

18   नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. हम क्या जानते हैं? यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है! जितना महत्वपूर्ण यह है कि हम क्या समझते हैं? क्योंकि जानना बुद्धि का परिणाम है... समझना आचार का परिणाम! जानकारी तो हमारी बहुत है! और नई नई बातें जानने के लिये हम प्रतिक्षण लालायित रहते हैं। पर समझने के लिये हमारा मानस और हृदय बहुत कम तैयार होता है। समझ के अभाव में हमारी जानकारी व्यर्थ है। जानकारी के क्षेत्र में वर्तमान का युग बहुत आगे बढ गया है। समझने के क्षेत्र में उतना ही पीछे रह गया है। खाने से पेट भरता है, इस जानकारी के साथ यह समझ जरूरी है कि उस खाने से पेट में विकृति तो पैदा नहीं होगी! बिना जानकारी के जीवन का निर्माण नहीं होता! तो बिना समझ के ‘अच्छे जीवन ’ का निर्माण नहीं हो सकता! दोनों एक दूसरे के पूरक है। आज जानकारी का जमाना है। कम्प्यूटर के जरिये पल भर में पूरे विश्व का ज्ञान हम प्राप्त कर रहे हैं। पर जीवन को समझ नहीं मिल रही है। जीवन का तनाव तो बढता ही जा रहा है। जानकारी ने संबंधों को विस्तार तो बहुत दिया है। पर समझ के अभाव में संबंधों का विकास नहीं हो पाया है।

17 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

17 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा. जिन्दगी प्रतिक्षण मौत की ओर अग्रसर हो रही है। बीतते हर पल के साथ हम मर रहे हैं। इस जगत में हमारा अस्तित्व कितना छोटा और बौना है....! सारी दुनिया के बारे में पता रखने वाले हम अपने बारे में कितने अनजान है! हमें अपने ही कल का पता नहीं है। कल मेरा अस्तित्व रहेगा या मैं इस दुनिया से विदा हो जाउँगा, हमें पता नहीं है। सोचने के क्षणों में हम अपने भविष्य को कितना लम्बा आंकते हैं! और अपने उस अनजान भविष्य के लिये कितने सपने देखते हैं! उन सपनों को पूरा करने के लिये बिना यह जाने कि वे सपने पूरे होंगे भी या नहीं या उन सपनों के परिणाम जानने के लिये मैं रहूँगा भी या नहीं, कितनी तनतोड मेहनत करते हैं! उर्दु शायर की एक कविता का यह वाक्य कितना मार्मिक संदेश दे रहा है- सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं! इकट्ठा करने में हमारे मन का कोई सानी नहीं है। वह मात्र एकत्र करना जानता है। क्योंकि उपभोग की तो सीमा है! एकत्र करने की कोई सीमा नहीं है। एक यथार्थ है, एक सपना है। यथार्थ की सीमा होती है, सपनों की कोई सीमा नहीं होती! खबर हमें आने वाले पल की भी नहीं है

16 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

16 नवप्रभात --उपाध्याय मणिप्रभसागरजीम.सा. इस जगत में कोई भी व्यक्ति अपमान करने योग्य नहीं है। सम्मान करने योग्य व्यक्ति भरे पड़े हैं। खराब से खराब काम करने वाला व्यक्ति भी निंदा योग्य नहीं है। सामान्य से सामान्य अच्छा कार्य करने वाला भी परम अभिनंदनीय है। क्योंकि खराब या अच्छा काम करने वाला कल क्या बनेगा, हमें पता नहीं है! हमें उससे मतलब भी नहीं है। पर हमारे द्वारा निंदा या सम्मान की की गई क्रिया हमें अच्छा या बुरा फल अवश्य दे देती है। हमारी प्रतिक्रिया ‘कि्रया ’ की अच्छाई या बुराई को कम या बाद में प्रकट करती है... हमारे अपने अच्छे या बुरे स्वभाव को पहले प्रकट करती है। अच्छी प्रतिक्रिया करने का हमें जन्मसिद्ध अधिकार है, बुरी प्रतिक्रिया करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। जीव की भवितव्यता का हमें कोई पता नहीं है। आज दिखाई देने वाला खराब व्यक्ति कब अच्छा हो सकता है। कब उसके पुण्य उदय में आयेंगे... कब भवितव्यता जोर मारेगी और जीवन बदल जायेगा। तब उसे उसके अतीत के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता। और अतीत तो हर आत्मा का संसार से भरा हुआ ही होता है। जो भी सिद्ध बना है, उसका भी अतीत तो

30 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

30 जटाशंकर     - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर रोज अपने घर के पिछवाडे जाकर परमात्मा से हाथ जोड कर प्रार्थना करता- हे भगवान! कुछ चमत्कार दिखाओ! मैं रोज तुम्हारी पूजा करता हूँ! नाम जपता हूँ। फिर इतना दुखी क्यों हूँ! भगवन् मुझे कुछ नहीं चाहिये। बस! थोडे बहुत रूपये चाहिये। कभी कृपा करो भगवन्! ज्यादा नहीं बस सौ रूपये भेज दो! कहीं से भेजो! आकाश से बरसाओ चाहे... पेड पर लटकाओ! मगर भेजो जरूर! रोज रोज नहीं, तो कम से कम एक बार तो भेजो! और भगवन् ध्यान रखना! मैं अपनी आन बान का पक्का आदमी हूँ। पूरे सौ भेजना! ज्यादा मुझे नहीं चाहिये। एक भी ज्यादा हुआ तो भी मैं नहीं रखूंगा। एक भी कम हुआ, तब भी नहीं रखूंगा। जहाँ से रूपया आयेगा, उसी दिशा में वापस भेज दूंगा। मगर कृपा करो! एक बार सौ रूपये बरसा दो भगवन्! पडौस में रहने वाला घटाशंकर रोज उसकी यह प्रार्थना सुनता था। उसने सोचा- चलो.. इसकी एक बार परीक्षा कर ही लें। देखें... यह क्या करता है। उसने हँसी मज़ाक में एक थैली में 99 रूपये के सिक्के डाले और शाम को जब जटाशंकर आँख बंद कर प्रार्थना कर रहा था तब उसने दीवार के पास छिप कर निन्याणवें रूपये

29 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

29 जटाशंकर          - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर की पत्नी ने अपने पति से कहा- लगता है! हमारा नौकर चोर है। हमें सावधान रहना होगा। जटाशंकर ने कहा- नौकर यदि चोर है तो उसकी छुट्टी कर देनी चाहिये। ऐसे चोर का हमारे घर क्या काम? लगता है, इसके माता पिता ने इसे सुसंस्कार नहीं दिये। लेकिन तुमने कैसे जाना कि वह चोर है। क्या चुराया उसने! पत्नी ने कहा- अरे! अपने पाँच दिन पहले अपने मित्र द्वारा आयोजित भोजन समारंभ में गये थे न! वहाँ से दो चांदी के चम्मच अपन उठा कर नहीं लाये थे। वे चम्मच आज मिल नहीं रहे हैं। हो न हो! इसी ने चुराये होंगे। कैसा खराब आदमी है, चोरी करता है! खुद ने चम्मच चोरी करके अपने झोले में डाले थे। अपनी यह चोर वृत्ति आनंद दे रही थी। कोई और चोरी करता है, दर्द होता है। जीवन में हम इसी तरह का मुखौटा लगा कर जीते हैं। दूसरों की छोटी-सी विकृति पर बडा उपदेश देना बहुत आसान है। अपनी बडी विकृति पर दो आँसू बहाने बहुत मुश्किल है।

28 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

28 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . पंडित घटाशंकर और ड्राइवर जटाशंकर स्वर्गवासी हुए। स्वर्ग और नरक का निर्णय करने वाले चित्रगुप्त के पास उन दोनों की आत्माऐं एक साथ पहुँची। चित्रगुप्त अपने चौपडे लेकर उन दोनों के अच्छे बुरे कामों की सूची देखने लगे ताकि उन्हें नरक भेजा जाय या स्वर्ग, इसका निर्णय हो सके। लेकिन चौपडों में इन दोनों जीवों का नाम ही नहीं था। चौपडा संभवत: बदल गया था। या फिर क्लर्क ने इधर उधर रख दिया था। आखिर चित्रगुप्त ने उन दोनों से ही पूछना प्रारंभ किया कि तुमने काम क्या किये है, इस जन्म में! अच्छे या बुरे जो भी कार्य तुम्हारे द्वारा हुए हो, हमको बता दें। उसे सुन कर हम आपकी स्वर्ग या नरक गति का निर्णय कर सकेंगे। पंडितजी ने कहना प्रारंभ किया- मैंने जीवन भर भगवान राम और कृष्ण की कथाऐं सुनाई है। सत्संग रचा है। मेरे कारण हजारों लोगों ने राम का नाम लिया है। इसलिये मेरा निवेदन है कि मुझे स्वर्ग ही भेजा जाना चाहिये। वाहन चालक ने अपना निवेदन करते हुए कहा- मुझे भी स्वर्ग ही मिलना चाहिये। क्योंकि मेरे कारण भी लोगों ने लाखों बार राम का नाम लिया है। पंड

27 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

27 जटाशंकर      - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . 10 वर्षीय जटाशंकर एक बगीचे में घुस आया था। बगीचे के बाहर प्रवेश निषिद्ध का बोर्ड लगा था। फिर भी वह उसे नजर अंदाज करके एक पेड के नीचे खडे होकर फल बटोर रहा था। उसने बहुत साव धा नी बरती थी कि चौकीदार कहीं उधर न आ जाये। हाँलाकि उसने पहले काफी ध्यान दिया था कि चौकीदार वहाँ है या नहीं! आता है तो कब आता है... कब जाता है। दीवार फाँद कर वह उतर तो गया था, पर कुछ ही देर बाद चौकीदार वहाँ आ गया था। उसने जटाशंकर को जब फल एकत्र करते देखा तो चौकीदार ने अपना डंडा घुमाया और जोर से चिल्लाया- क्या कर रहे हो? फल तोडते शर्म नहीं आती! जटाशंकर घबराते हुए बोला- नही हुजूर! मैं तो ये फल जो नीचे गिर गये थे, इन्हें वापस चिपका रहा था। चौकीदार गुस्से में चीखा- शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए! अभी चल मेरे साथ! तुम्हारे पिताजी से शिकायत करता हूँ। कहाँ है तुम्हारे पिताजी! जटाशंकर हकलाते हुए बोला- जी! पिताजी तो इसी पेड पर चढे हुए हैं। उन्होंने ही तो सारे फल तोड कर नीचे गिराये हैं। चौकीदार अचंभित हो उठा। जहाँ पिताजी स्वयं अनैतिक कार्य करते हो, वहाँ पुत्

26 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

26 जटाशंकर    - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर बगीचे में घूमने के लिये गया था। वह फूलों का बडा शौकीन था। उसे फूल तोड़ना, सूंघना और फिर पाँवों के नीचे मसल देना अच्छा लगता था। उसकी इस आदत से सभी परेशान थे। बगीचे वाले उसे अंदर आने ही नहीं देते थे। फिर भी वह नजर बचाकर पहुँच ही जाता था। एक शहर में उसका जाना हुआ। बगीचे में घूमते घूमते कुछ मनोहारी फूलों पर उसकी नजर पडी। वहाँ लगे बोर्ड को भी देखा। उसने पल भर सोचा, निर्णय लिया। और फूलों को न तोड़कर पूरी डालियों को ही.... मूल से ही कुछ पौधों को उखाडने लगा। उसने एकाध पौ धा तोडा ही था कि चौकीदार डंडा घुमाता हुआ पहुँचा और कहा- ऐ बच्चे! क्या कर रहे हो! -बोर्ड पर लिखी चेतावनी तुमने नहीं पढी कि यहाँ फूल तोडना मना है? जटाशंकर ने बडी बेफिक्री से कहा- हुजूर पढी है चेतावनी! -फिर तुम चेतावनी का उल्लंघन क्यों कर रहे हो? - मैंने कोई उल्लंघन नहीं किया! बोर्ड पर साफ लिखा है- फूल तोडना मना है। मैंने फूल नहीं तोडे हैं। मैं तो डालियाँ और पौधों को उखाड रहा हूँ। और पौधों को उखाडने का मना इसमें नहीं लिखा है। चौकीदार बिचारा अपना सिर पी

25 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

25 जटाशंकर       - उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म . सा . जटाशंकर की आदत से उसकी पत्नी बडी परेशान थी। वह उसके हर काम में हमेशा मीन मेख निकालता ही था। गलती निकाले बिना... और गलती निकाल कर दो चार कडवे शब्द बोले बिना उसकी रोटी जैसे पचती नहीं थी। अक्सर खाने में कोई न कोई कमी निकालता ही था। उसकी पत्नी बडी मेहनत करती कि कैसे भी करके मेरे पति मेरे खाना बनाने की कला से पूर्ण संतुष्ट होकर तृप्ति का अनुभव करें। पर जटाशंकर अलग ही माटी का बना था। उसकी पत्नी प्रशंसा के दो शब्द सुनने के लिये तरस गई थी। पर मिले हमेशा उसे कडवे शब्द ही थे। उसकी पत्नी ने भोजन में टमाटर की चटनी परोसी थी। तो जटाशंकर तुनक कर बोला- अरे ! जिस टमाटर की तुमने चटनी बनायी , यदि इसके स्थान पर तुम टमाटर की सब्जी बनाती तो ज्यादा अच्छा रहता... बडा मजा आता...! मगर तूंने चटनी बनाकर सारा काम बेकार कर दिया। दूसरे दिन उसने टमाटर की चटनी न बनाकर सब्जी बना दी। जटाशंकर मुँह चढाता हुआ बोला- आज के टमाटर तो चटनी योग्य थे... आनंद ही कुछ अलग होता! तूंने आज सब्जी बना कर गुड गोबर कर दिया। बेचारी पत

24 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

108 Names of Parshvanath Shri Ajhara Parshvanath Shri Mahadeva Parshvanath Shri Alokik Parshvanath Shri Makshi Parshvanath Shri Amijhara Parshvanath Shri Mandovara Parshvanath Shri Amrutjhara Parshvanath Shri Manoranjan Parshvanath Shri Ananda Parshvanath Shri Manovanchit Parshvanath Shri Antariksh Parshvanath Shri Muhri Parshvanath Shri Ashapuran Parshvanath Shri Muleva Parshvanath Shri Avanti Parshvanath Shri Nageshvar Parshvanath Shri Bareja Parshvanath Shri Nagphana Parshvanath Shri Bhabha Parshvanath Shri Navasari Parshvanath Shri Bhadreshvar Parshvanath Shri Nakoda Parshvanath Shri Bhateva Parshvanath Shri Navapallav Parshvanath Shri Bhayabhanjan Parshvanath Shri Navkhanda Parshvanath Shri Bhidbhanjan Parshvanath Shri Navlakha Parshvanath Shri Bhiladiya Parshvanath Shri Padmavati Parshvanath Shri Bhuvan Parshvanath Shri Pallaviya Parshvanath Shri Champa Parshvanath Shri Panchasara Parshvanath Shri Chanda Parshvanath Shri Phalvridhi Parshvanath Shri Charup Parshvanath Shri Posali