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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

मुंबई में महाचमत्कारी दादा गुरुदेव महापूजन का आयोजन

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DADA GURUDEV धर्म नगरी मुंबई में श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई के तत्वावधान में श्री मणिधारी युवा परिषद्, मुंबई द्वारा पू. साध्वी सुलोचना श्री जी म.सा की शिष्या पू. साध्वी डाँ. श्री प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. आदि ठाणा की पावन निश्रा में महाचमत्कारी दादा गुरुदेव महापूजन का भव्य आयोजन 17अगस्त 2014 को मोरारबाग वाडी में किया गया।  इस अवसर पर पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री मणिप्रभसागर जी म. के शिष्या पूज्य मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. द्वारा संकलित "दादा गुरुदेव की पूजा" पुस्तिका का विमोचन सुश्री मंजूजी लोढा, श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के संस्थापक अध्यक्ष श्री प्रकाशजी कानुगो एवं अध्यक्ष श्री मांगीलालजी शाह द्वारा किया गया।

श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ms

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इचलकरंजी श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ने श्री सुखसागर प्रवचन मंडप में पर्युषण महापर्व के छठे दिन विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- परमात्मा महावीर के जीवन की सबसे बडी विशिष्टता है कि उनका आचार पक्ष व विचार पक्ष एक समान था। मात्र उपदेश देने वाले तो हजारों हैं, पर उनका अपना जीवन अपने ही उपदेशों के विपरीत होता है। ऐसे व्यक्ति पूज्य नहीं हुआ करते। पूज्य तो वे ही होते हैं, जिनकी कथनी करणी एक समान हो।

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ऐसे समय में परमात्मा महावीर के अजर अमर और समय निरपेक्ष सिद्धान्त ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। आज अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह इन तीन सिद्धान्तों को अपनाने की अपेक्षा है। ये तीन सिद्धान्तों के आधार पर पूरे विश्व में शांति और आनन्द का वातावरण छा सकता है। उन्होंने परमात्मा महावीर के साढे बारह वर्षों में साधना काल की विवेचना करते हुए कहा- परमात्मा महावीर ने क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष इन भावों को तिलांजलि देकर मौन साधना का प्रारंभ किया। क्रोध की स्थितियों में भी वे पूर्ण करूणा के भावों से भर जाते थे। उनके जीवन की व्याख्या सुनते हुए जब उन्हें मिले कष्टों का विशद विवेचन सुनते हैं तो हमारी आंखों में अश्रु धारा बहने लगती है। संगम देव और कटपूतना के द्वारा दिये गये उपसर्गों को जब सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं। परन्तु परमात्मा महावीर तो करूणा की साक्षात् मूर्ति थे। चण्डकौशिक को उपदेश देने के लिये स्वयं चल कर उसकी बाबी तक पहुँचे थे।

श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई में धर्म आराधना का ठाठ लगा

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    धर्म नगरी मुंबई में श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ मुंबई के तत्वावधान में आयोजित पू. साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म. की शिष्या पू साध्वी डाँ.  श्री प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म., प्रियश्रेष्ठांजनाश्रीजी म. की पावन निश्रा में धर्म आराधना का ठाठ लगा हैै।  ता. 3 अगस्त 2014 को नेम राजुल के जीवन चरित्र पर आधारित नाटिका का मंचन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में विठ ल वाडी प्रांगण से बाजते गाजते नेम कुंवर की बारात निकाली गयी।  बारात गोडवाल भवन पहुच कर धर्मसभा में परिवर्तित हुयी। प्रवचन के पश्चात बालक बालिकाओं द्वारा नेमकुमार के जीवन से जुडी विभिन्न घटनाओं का सटीक मंचन किया। जिसमें प्रियंवदा दासी द्वारा जन्म की बधाई,  कृ ष्ण महाराजा एवं सत्यभामा व रुक्मणी रानी द्वारा नेम कुंवर को विवाह हेतु मनाना, नेम कुंवर का बारात लेकर आना, पशुओं का आक्रंद सुन अपनी बारात मोडना, नेम कुमार और राजुल के बीच का संवाद, राजुल का बोध एवं संयम लेने का निर्णय तथा राजुल और नेम कुमार का गिरनार की ओर प्रस्थान जैसे विभिन्न द्रश्यों को देख कर उपस्थित जन समुदाय  भाव विभोर हो गया।

गलती करना आसान होता है पर उसे accept करना और उसके लिए क्षमा माँगना इतना आसान नहीं होता! हमारा Ego आड़े आ जाता है, और यही बात क्षमा करने पर भी लागू होती है। लेकिन जब इसी काम के लिए कोई खास दिन रख दिया जाता है तो उस दिन पूरा वातावरण “क्षमा मांगने” और “क्षमा करने” के अनुकूल बन जाता है और हम ऐसा आसानी से कर पाते हैं।

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पर्यूषण पर्व (Paryushan Parv) क्या है ?                 जैन धर्म में पर्यूषण पर्व के आखिरी दिन एक - दूसरे से “ मिच्छामि दुक्कड़ं ” कहने की परंपरा है।                 पर्यूषण पर्व , जैन धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है। श्वेताम्बर जैन इसे 8 दिन तक मनाते हैं। इस दौरान लोग पूजा , अर्चना , आरती , समागम , त्याग , तपस्या , उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं।                 इस पर्व का आखिरी दिन संवत्सरी के रूप में मनाया जाता है जिसमें हर किसी से “ मिच्छामि दुक्कड़ं ” कह कर क्षमा मांगते हैं।                 “ मिच्छामि दुक्कड़ं ” का शाब्दिक अर्थ है , “ जो भी बुरा किया गया है वो फल रहित हो Þ may all the evil that has been done be fruitless **                 ‘ मिच्छामि ’ का अर्थ क्षमा करने से   और ‘ दुक्कड़ं ’ का बुरे कर्मों से है। अर्थात् मेरे बुरे कर्मों के लिए मुझे क्षमा कीजिये।

चातुर्मास कालिन दिव्य देशना में सैकड़ो श्रद्धालु हो रहे लाभान्वित

अपनत्व   से   खुशहाली,   आनंद   बरसता   है -मणिप्रभसागर इचलकरंजी   जैन   मंदिर   व   मणिधारी   दादावाडी   में   बिराजमान   पूज्य   उपाध्याय   श्री   मणिप्रभसागरजी   महाराज   ने   अपनी   प्रवचन   श्रंखला   को   गति   प्रदान   करते   हुए   आज   16   अगस्त   को   विशाल   धर्म   सभा   को   ‘अपनत्व’   के   महत्व   पर   प्रकाश   डालते   हुए   कहा   कि   अपनत्व   की   आँक्सीजन   से   चारों   तरफ   खुशहाली   एवं   आनंद   बरसता   है।   उमंग   और   उत्साह   मिलकर   जीवन   को   महोत्सव   बना   देता   है।   हम   सभी   से   मिलें   तथा   मिल   कर   अपनत्व   की   मिठाई   अवश्य   बाँटे।   जिस   तरह   कस्तूरी   की   गंध   को   हिरण   सूंघ   कर   जंगल   में   दौड़   लगाता   है,   पेड़   पौधों,   पत्थरों   पर   अपना   मुख   लगाके   सूंघता   है   कि   यह   सुगंध   कहां   से   आ   रही   है।   जबकि   कस्तूरी   उसी   की   नाभि   में   है   पर   अनजान   होने   के   कारण   बाहर   ही   खोजता   है   और   शिकारी   उसे   अपना   शिकार   बना   के   कस्तूरी   को   निकाल   लेता   है।   यही   दशा   भौतिक   चकाचौंध  

VIDEO Photos नेमीचंदजी राणामलजी छाजेड परिवार की ओर से दादा गुरुदेव महापूजन का विराट् आयोजन किया गया। इसमं 108 जोडों ने पूजा की। इस महाविधान का संचालन करते हुए मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की महिमा बताते हुए पूजन का रहस्य समझाया।

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इचलकरंजी श्री मणिधारी दादावाड़ी संघ के तत्वावधान में पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी ने विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- तपस्या करना कोई हंसी खेल नहीं है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। बाडमेर निवासी नेमीचंदजी राणामलजी छाजेड परिवार की ओर से दादा गुरुदेव महापूजन का विराट् आयोजन किया गया। इसमं 108 जोडों ने पूजा की। इस महाविधान का संचालन करते हुए मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की महिमा बताते हुए पूजन का रहस्य समझाया। अट्ठाई तप के तपस्वियों का पच्चक्खावणी जुलूस का आयोजन किया गया। विधि विधान संजय जैन ने कराया जबकि इन्दौर से आये प्रख्यात संगीतकार लवेश बुरड ने भजनों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। रात्रि देर तक भक्ति भावना का अनूठा आयोजन हुआ।

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Photos 1 नेमीचंदजी राणामलजी छाजेड परिवार की ओर से दादा गुरुदेव महापूजन का विराट् आयोजन किया गया। इसमं 108 जोडों ने पूजा की। इस महाविधान का संचालन करते हुए मुनि मेहुलप्रभसागर ने दादा गुरुदेव की महिमा बताते हुए पूजन का रहस्य समझाया।

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SANGHVI SHREE PUKHRAJJI CHHAJED

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SANGHVI SHREE PUKHRAJJI CHHAJED

जहाज मंदिर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका अंक अगस्त 2014

श्री जहाज मंदिर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका का  अगस्त 2014 का ताजा अंक के लिये  क्लीक करें... डाउनलोड लिंक   यहां क्लीक करें...

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पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. आदि ठाणा के इचलकरंजी चातुर्मास प्रवेश की झलकियां 1

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maniprabh maniprabh पूज्य गुरूदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. आदि ठाणा के इचलकरंजी चातुर्मास प्रवेश की झलकियां 1 by JAHAJMANDIR - www.jahajmandir.com www.jahajmandir.blogspot.in < http://www.jahajmandir.blogspot.in > < http://www.jahajmandir.blogspot.in/ >

Ichalkaranji Chaturmas

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दादा गुरुदेव का अर्थवान और लाडला संबोधन तो खरतरगच्छ के चार आचार्यों-जिनदत्तसुरिजी, मणिधारी जिनचंद्रसूरिजी, जिनकुशलसूरिजी और जिनचंद्रसूरिजी को ही प्राप्त हुआ है।

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जैन धर्म के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार में पूर्वाचार्यों का पूर्ण योगदान रहा है! सभी गच्छों में महान आचार्य हुए है, जिन्होंने अपनी क्षमता बुद्धि-बल एवं तपोबल के आधार पर जिन शासन की महिमा फैलाई। लेकिन दादा गुरुदेव केवल खरतर गच्छ में ही हुए । बल्कि यों कहना चाहिए कि खरतरगच्छ के चार आचार्यों को ही दादा गुरुदेव का संबोधन मिला। अन्य गच्छों के महान आचार्यों के लिए कई अन्य विशेषण प्रयुक्त हुए। लेकिन दादा गुरुदेव का अर्थवान और लाडला संबोधन तो खरतरगच्छ के चार आचार्यों-जिनदत्तसुरिजी, मणिधारी जिनचंद्रसूरिजी, जिनकुशलसूरिजी और जिनचंद्रसूरिजी को ही प्राप्त हुआ है।  श्री जिनदत्तसूरिजी आदि चार आचार्यों का जो उपकारक जीवन रहा है उसी के परिणाम स्वरूप उन्हें दादा गुरुदेव का संबोधन मिला। अपने गुरुजनों की स्मृति में बनने वाले गुरु मंदिरों को गुरु मंदिर ही कहें, दादावाडी नहीं। समस्त भारत में दादावाडी का अर्थ यह सुप्रसिद्ध है कि यह जिनदत्तसूरिजी या मणिधारीजी या जिनकुशलसूरिजी का स्थान होगा। समाज ने उनके दिव्य व्यक्तित्व एवं योगदान का जो मूल्यांकन किया, वही दादा गुरुदेव के संबोधन के रूप में अभिव्यक्त हु

गज मंदिर, केशरियाजी

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गज मंदिर, केशरियाजी राजस्थान

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गज मंदिर, केशरियाजी राजस्थान

युगप्रधान दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी खरतरगच्छ सम्प्रदाय एवं जिनशासन के प्रथम दादा गुरुदेव है। दादा गुरुदेव अपने गुणों और अनगिनत चमत्कारों के कारण समूचे श्वेताम्बर समाज में पूजनीय बन गए, क्योंकि प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी का सम्पूर्ण जैन समाज तथा देश के प्रति उपकार असीम है। इसलिए वे गच्छ, समाज तथा सम्प्रदाय की सीमाओं से निर्बंध है।

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युगप्रधान दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी खरतरगच्छ सम्प्रदाय एवं जिनशासन के प्रथम दादा गुरुदेव है। दादा गुरुदेव अपने गुणों और अनगिनत चमत्कारों के कारण समूचे श्वेताम्बर समाज में पूजनीय बन गए, क्योंकि प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरिजी का सम्पूर्ण जैन समाज तथा देश के प्रति  उपकार असीम है। इसलिए वे गच्छ, समाज तथा सम्प्रदाय की सीमाओं से निर्बंध है। श्री जिनदत्तसूरिजी जीवन श्रमण-संस्—ति का ऐसा जगमगाता आलोक पुंज है, जो शताब्दियों के काल-खण्ड प्रहवन के उपरांत भी हमें आत्म-विकास की राह दिखलाता है, हमारे चरित्र, व्यवहार तथा साधना का मार्ग आलोकित करता है।

लाखों परिवारों को जैन बनाने वाले प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरीश्वरजी म. को पावन पुण्य तिथि पर भावभरी वंदना!

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श्री खरतरगच्छ चातुर्मास सूची - CHATURMAS LIST

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