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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

श्री चंपा पूरी तीर्थ

   श्री चंपा पूरी तीर्थ
बिहार की  प्रसिद्ध सिल्क नगरी भागलपुर से  महज ६ कि.मी. की दुरी पर श्री चंपा पूरी तीर्थ आया हुवा है ।
  १२ वे तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामी  का जन्म के साथ साथ इनके पांचो कल्याणक इसी पावन चम्पापुरी तीर्थ पर हुवे।
तीर्थंकर वासुपूज्य स्वामी के माँ का नाम जया रानी और पिता का नाम वसुपूज्य था ।
भगवान आदिनाथ ने भरत देश को ५२ जन पदों में विभाजित किया था, उसमे अंग जनपद भी एक था।
चंपा अंग जनपद की राजधानी थी।यहाँ  के राजा का नाम दधि वाहन और रानी का नाम अभया था। चंपा नगरी के द्वार खोलने वाली महासती सुभद्रा थी।

  किसी समय यह नगर दूर दूर तक मीलो तक फैला हुवा था। अत्यंत वैभव सम्पन्न था । युगादि देव श्री आदिनाथ भगवान ने इस पवित्र भूमि को अपने चरणों से स्पर्श करके पवित्र बनाया।
तीर्थंकर वासुपूज्य स्वामी जी ने पदमोधर के  भव में तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया  और इनके पूर्व भव के गुरु वज्रनाभ थे।और इनके पूर्व भव के ११ पूर्व शास्त्र पढ़े हुवे थे।
वासु पूज्य स्वामी के पूर्व भव की नगरी  रत्नसंचया थी।
मारवाड़ी तिथि के अनुशार जेठ सुदी ९ को इनका च्व्यन मनाया जाता हे।और इनका च्यवन प्राणत(१०वां) देव लोक से हुआ था।
प्रभु वसुपूज्य के पुत्र होने से व वसु देवता द्वारा पूजित,  इनका जन्म नक्षत्र शतभीषा ,जन्म राशी कुभं, प्रभु का गण राक्षस, प्रभु की योनि  अश्व,  प्रभु का  लांछन  पाडा, और इनका  शरीर प्रमाण  ७० धनुष, और इनका आयुष्य ७२ लाख पूर्व था।
प्रभु के कुल ३ भव हुवे।  प्रभु कुल १८ लाख वर्ष कुमार अवस्था में रहे और इतने ही समय प्रभु गृहस्थ अवस्था में रहे। प्रभु के २ पुत्र भी थे। फागन वद ३० को मारवाड़ी तिथि के अनुशार इनका दीक्षा कल्याणक मनाया जाता हे।
प्रभु ने बिहार गृह वन में ६००  जनों के साथ दीक्षा ली  पाडल( अशोक व्रक्ष) दीक्षा व्रक्ष बोला जाता हे।प्रभु ने चौथभक्त तप दीक्षा के समय किया।प्रभु ने उत्कृष्ट ८ माह का तप  किया। प्रभु को केवल ज्ञान मारवाड़ी तिथि के अनुशार महा सुद २ को को  पाटल  व्रक्ष के नीचे प्राप्त हुवा।
प्रभु ने दीक्षा के समय  महापुर नगरी में  सुंनद  व्यक्ति के घर पर पारना किया।
प्रभु के कुल ६६ गणधर हुवे प्रथम गणधर सूक्षम थे।
प्रभु की प्रथम साध्वी जी धरणी थी और त्रिपुस्थ वासुदेव भक्त राजा थे।
प्रभु के कुल ७२००० साधूजी और १००००० साध्वीजी थे।
२१५००० श्रावक, ४३६००० श्राविका, ६००० केवल ज्ञानी, ६१०० मन: पर्यवज्ञानी,५४०० अव्धिज्ञानी, १२००   चतुर्दर्श पुव्री, ११००० वैक्रिय लब्धि धारी, ५००० वादी धारी मुनि थे । प्रभु के  समय  साधू साध्वी  आदि ४ महाव्रत का पालन करते थे। प्रभु का दीक्षा काल १५,००,०००  वर्ष तो केवल ज्ञान काल  १५,००,००० वर्ष में मात्र २ महीने कम था  और इनका आयुष्य ७२,००,००० वर्ष पूर्व था।  प्रभु १  मास का तप  करते  करते कर्योत्सग मुद्रा में कुम्भ  राशी में मारवाड़ी तिथि के अनुशार आषाद सूद १४ चम्पापुरी से ही मोक्ष पधारे।
इतनी पावन भूमि हे  चंपापूरी  जहा प्रभु ने जन्म से लेकर मोक्ष तक का  अपने पावन चरणों से इस भूमि को पवित्र किया ।  यहाँ पर नाथ नगर, भागलपुर, व् मंदागिरी पर्वत पर दिगंबर जैन मंदिर हे। यह मंदिर बहुत प्राचीन हे नाथ नगर का कांच का मंदिर  आति दर्शनीय हे  यहाँ पर रुकने के लिए मंदिर के अहाते में सुन्दर धर्मशाला हे जहा बिजली,पानी की सुन्दर सुविधा हे।
चम्पापूरी  तीर्थ भागल पुर स्टेशन से ६ कि.मी.दूर  तथा नाथ नगर रेल्वे स्टेशन से  मात्र १.५ कि.मी. दूर गंगा नदी के किनारे चम्पा नाला के पास स्तिथ हे। स्टेशन से सभी प्रकार की  सुविधा उपलब्ध हे। कलकता से ये ५७५ कि.मी. पटना से  २३५ कि.मी. गया से २९७ कि.मी.  वाराणसी से ४७० कि.मी. दूर हे ।
    श्री जैन श्वेताम्बर  सोसायटी
      तीर्थ श्री चम्पा पूरी ,
  चम्पानगर, भागल पुर ( बिहार)
फ़ोन न.  ०६४१-२४२२२०५

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