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navpad oli |
आज नवपद
ओली जी का अंतिम 9वां दिन
तप पद की
आराधना
तप जीवन
का अमृत है ।
जैसे अमृत
मिलने पर मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है वैसे ही हमारे जीवन में तप रूपी अमृत आने
पर जीवन अमर हो जाता है।
दूध को
तपाने से मलाई, अन्न को
तपाने से स्वादिष्ट भोजन, सोने को
तपाने से आभूषण
बन जाता
है। वैसे ही
शरीर को तप की अग्नि द्वारा तपाने से हमारे कर्म रूपी मैल खिरने लगता है ।
परमात्मा
महावीर जानते थे कि उन्हें उसी भव में मोक्ष जाना है। फिर भी घाती कर्मों का क्षय
करने के लिए दीक्षा लेकर एकमात्र तप धर्म का ही सहारा लिया। साढ़े बारह
वर्ष तक भूमि पर बैठे नही। सोये नहीं। तप की
साधना तभी फलीभूत हुयी और सभी
घाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान को प्राप्त किया ।
तप
चारित्र
को चमकाने वाला है।
कर्म
निर्जरा कराने वाला है।
जीव मात्र
तप की आराधना कर सके इसलिए ऐसा तप 12 प्रकार
का बताया गया है।
-अनशन(सभी
प्रकार के आहार का त्याग)
-ऊणोदरी
(भूख से कल खाना)
-खाने
वस्तुओं में मर्यादा करना।
-रस
वाली वस्तुओ का त्याग करना
और ज्यादा से ज्यादा आराधना करना
जैन शासन
में नवपद का अनूठा स्थान है ।
बाकी बहुत
सारे पर्व वर्ष में केवल एक बार आते है जबकि यह ओलीजी पर्व वर्ष में दो बार आता है ।
संसार से
बाहर निकलना हो तो नवपद की साधना से निकला जा सकता है ।
इस नवपद
में साध्य (देव तत्त्व), साधक (गूरू तत्त्व) और साधन (धर्म
तत्त्व) की सुन्दर रचना है।
जिनका
वर्णन करना हमारे लिए दुष्कर कार्य है ।
तीर्थंकर
भगवंतों ने, गणधर
भगवंतों ने, आचार्य
भगवन्तो ने भी हमे तप धर्म की आराधना कर के उपदेश दिया ।
बिना तप
के कोई भी चारित्र वंत आत्मा उपदेश नही देता ।
तप के
द्वारा ही द्वारिका नगरी पर 12
वर्ष तक कोई संकट नही आया।
तप हमारा
भवोभव का साथी है ऐसा जानकर हमे तप धर्म में विशेष रुप से उत्साहित होकर प्रवृत्त
होना चाहिए। ।
जो तप
करते है उनकी हृदय से अनुमोदन करना ।
और जो नही
करते उनको तप का परिचय देना चाहिए ।
जो तप
करता है उनको तप में सहायता और सहयोग करना।
सहयोग नही
कर सके तो अंतराय तो कभी नही देना ।
इस प्रकार
तप की आराधना हमे करनी चाहिए ।
तप धर्म
की जय हो
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