पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 10 जुलाई 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने आज श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला के अन्तर्गत चल रहे चातुर्मास के विशाल आराध्ाकों की ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- मैं कौन हूॅं, इस प्रश्न से ही धर्म का प्रारंभ होता है। जब तक व्यक्ति अपने आपको नहीं जानता, उसका शेष जानना व्यर्थ है। उन्होंने कहा- आचारांग सूत्र का प्रारंभ इसी प्रश्न से होता है। परमात्मा महावीर ने जो देशना दी थी, उसे सुधर्मा स्वामी ने आगमों के माध्यम से जंबू स्वामी से कहा। परमात्मा फरमाते हैं कि इस दुनिया में अनंत जीव ऐसे हैं जो यह नहीं जानते कि मैं कौन हूॅं? कहाॅं से आया हूॅ? किस दिशा से आया हूॅ? और कहाॅं जाना है? उन्होंने कहा- आज आदमी सारी दुनिया को जानता है, अपने पराये को जानता है, रिश्तेदारों और मित्रों को पहचानता है परन्तु यह उसकी सबसे बडी गरीबी है कि वह जानने वाले को नहीं जानता। यह शरीर मेरा स्वरूप नहीं है, क्योंकि शरीर आज है, कल नहीं था, कल नहीं रहेगा! जबकि मैं कल भी था, आज भी हूॅं और कल भी रहूॅंगा! तो वह कौ