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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

-पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन



-पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

पालीताना

जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने परमात्मा नेमिनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक के पावन अवसर पर आज श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला के अन्तर्गत चल रहे चातुर्मास के विशाल आराध्ाकों की ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- चैबीस तीर्थंकरों का आन्तरिक जीवन एक जैसा है। बाह्य जीवन भले अलग अलग हों। उनके माता पिता के नाम, जन्मभूमि, जन्म तिथि यह सब अलग होंगे। परन्तु उनके अन्तर में बहता हुआ ज्ञान का झरणा एक है। उसमें कोई भेद नहीं है। सभी तीर्थंकर तीन ज्ञान के साथ ही जन्म लेते हैं। सभी तीर्थंकर दीक्षा लेते ही है। सभी तीर्थंकरों को दीक्षा लेते ही चैथा ज्ञान हो जाता है। सभी तीर्थंकरों को घाती कर्म के बाद केवल ज्ञान प्राप्त होता है। सभी तीर्थंकर मोक्ष पधारते हैं।
उन्होंने कहा- चैबीस तीर्थंकरों का जीवन अपने आप में आदरणीय और अनुकरणीय है। पुरूषार्थ का परिणाम देखना हो तो हमें परमात्मा महावीर स्वामी का जीवन पढना चाहिये। कितने कर्मों का बंधन किया किन्तु उन्हें तोडने के लिये कितनी अनूठी साधना की।
द्वेष की परम्परा का इतिहास जानना हो तो हमें पाश्र्वनाथ प्रभु का जीवन पढना चाहिये। कमठ और मरूभूति के मध्य जो वैर और शत्रुता की परम्परा चली और उस शत्रुता के कारण कमठ ने अपनी दुर्गति कर ली।
कर्म बंधन के परिणाम को समझना हो तो परमात्मा आदिनाथ का जीवन पढना चाहिये। उससे बोध होता है कि एक छोटा सा कर्म बंधन कितनी बडी सजा देता है। उन्होंने पूर्व भव में एक बैल के मुख पर छींका बांधा था कुछ पलों के लिये। परिणाम स्वरूप उनको चार सौ दिन तक आहार पानी कुछ नहीं मिला। उपवास करने पडे।
यदि राग की विशुद्ध परिणति देखनी हो तो हमें परमात्मा नेमिनाथ प्रभु के जीवन का अवलोकन करना चाहिये। वे भगवान् श्री कृष्ण के भ्राता थे। कहा जाता है कि जब वे शादी के लिये बारात के लिये जा रहे थे। उन सभी के लिये मांसाहार का भोजन बनाने के लिये पशुओं को बाडे में बांधा गया था। जिसे नेमिनाथ प्रभु ने छुडाये थे।
उन्होंने कहा- नेमिनाथ प्रभु ने पशुओं को बंधन से मुक्त किया, यह बात बराबर है। परन्तु उन पशुओं को मांसाहार के लिये नहीं बांधा गया था। नेमिनाथ प्रभु स्वयं अहिंसा के अवतार थे। उनके समधी भी अहिंसा के ही पुजारी थे। मांसाहार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। परन्तु वे पशु शाम के समय अपने अपने घर जा रहे थे। रास्ता वही राजमार्ग वाला था। इधर बारात का समय हो गया था। इसलिये मुहूत्र्त टल न जाय इसलिये राजकर्मचारियों ने पशुओं को तब तक एक अस्थायी बाडे में डाल दिया, जब तक बारात राज महल में नहीं पहुॅच जाती।
पर बाडे के कारण पशु भयभीत हो गये। उनके आत्र्तनाद को प्रभु नेमिनाथ ने सुना, और कहा कि पशुओं को थोडी देर के लिये भी बंधन में डालना हिंसा है। और उन्हें बंधन मुक्त कर दिया।
इस अवसर पर पूजनीया बहिन म. डाॅ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- जगत की सभी वस्तुओं का आदान प्रदान किया जा सकता है । पर आत्म-ज्ञान तो स्वयं की साधना ही परिणाम है । उसे कोई दे नहीं सकता ! कोई ले नहीं सकता । उसे तो खुद तप कर ही प्राप्त करना होता है । जगत में जितने भी मंत्र तंत्र यंत्र चलते हैं वे सभी मात्र संसार के साधनों की प्राप्ति का कारण हो सकते हैं परन्तु आत्म तत्व की प्राप्ति के लिये कोई मंत्र उपयोगी नहीं हो सकता । उसके लिये तो ये सारे मंत्र मात्र षड्यंत्र का हिस्सा है । आत्म तत्व की प्राप्ति के लिये स्वयं के आचरण की शुद्धि अनिवार्य है।
मुंबई से भाजपा विधायक श्री मंगलप्रभातजी लोढा ने पूज्यश्री के आशीर्वाद ग्रहण किया। उन्होंने पूज्यश्री के साथ तत्वचर्चा की। इचलकरंजी से संघ उपस्थित हुआ। पूज्यश्री से चातुर्मास करने की विनंती की।
बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से महाआरती का आयोजन किया गया। जिसमें 1500 लोगों ने भाग लिया। सभी ने दीपक लेकर सामूहिक रूप से परमात्मा की आरती की।

प्रेषक-दिलीप दायमा
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