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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

नाशिक आडगांव स्थित कान्ति मणि नगर में मूलनायक परमात्मा की दिव्य प्रतिमा

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नाशिक की इस दादावाडी में मूलनायक के रूप में मुनिसुव्रतस्वामी भगवान को बिराजमान करने का निश्चय किया गया था। परमात्मा की प्रतिमा श्याम वर्ण की होनी चाहिये। श्याम वर्ण का पाषाण भेंसलाना का उपलब्ध्ा होता है। पर उसमें प्राय: सफेद बिन्दु निकल आते हैं। इसके लिये तय किया गया कि उत्तम कोटि का कसौटी तुल्य गहन श्याम वर्ण का दिव्य पाषाण बेल्जियम से मंगवाया जाये। इसके लिये हमने नगर निवासी श्री उत्तमचंदजी बरमेशा से संपर्क किया।

42वां दीक्षा दिवस मनाया गया l आज का दिन मेरे लिये चिंतन का दिन है कि 41 वर्ष संयम के पूर्ण हुए हैं। 42वें वर्ष में प्रवेश हुआ है। संयम के लक्ष्य के प्रति मैं कितना आगे बढा!

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पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. का 42वां दीक्षा दिवस नाशिक आडगांव स्थित कान्ति मणि नगर में ता. 19 जून 2014 को मनाया गया। इस उपलक्ष्य में विशाल सभा का आयोजन किया गया। सभा को संबोध्ति करते हुए पूज्य गुरुदेवश्री ने फरमाया- आज मेरी मां, बहिन एवं मेरा दीक्षा दिवस है। हम तीनों की दीक्षा वि. सं. 2030 आषाढ वदि 7 ता. 23 जून 1973 को पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में पालीताना में हुई थी। मेरी दीक्षा मेरी मां की कृपा से हुई।

जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.

घटाशंकर घबराकर डाँक्टर जटाशंकर के पास पहुँचा था। क्योंकि वह पिछले दो तीन दिनों से अनुभव कर रहा था कि उसकी टांगें नीली पड रही है। चलने की ताकत न रही। उसने टेक्सी पकडी और डाँक्टर के पास गया। डाँक्टर ने उसकी टांगें चेक की। उसके माथे पर चिंता की सलवटें पड गई। उसने कहा - भैया ! तेरी टांगों में तो जहर फैल रहा है। इन्हें काटना होगा। यदि जल्दी ही यह निर्णय नहीं किया गया तो जहर पूरे शरीर में फैल जायेगा। तुम्हें घंटे दो घंटे में ही तय करना होगा। तुम्हारे दोनों ही पांव जहरीले हो चुके हैं। एक विशेष प्रकार का जहर फैल गया है। जो नीचे से उपर की ओर फैलता जा रहा है।

हम किस ‘प्राप्ति’ के लिये अपनी सांसों को दांव पर लगा रहे हैं। उस प्राप्ति के लिये जो हर जन्म में उपलब्ध है या उस ‘प्राप्ति’ के लिये जो केवल और केवल इसी जन्म में संभव है।

नवप्रभात - लक्ष्य का निर्धारण करें   -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. वस्तु का मूल्य नहीं है , मूल्य उसके उपयोग का है। उपयोग पर ही आधरित है कि आपने उस वस्तु को कितना मूल्य दिया .. उसका कितना महत्व स्वीकार किया। पत्थर वही है , उससे पुल का निर्माण भी किया जा सकता है। और दीवार भी बनाई जा सकती है। पुल दो किनारों को जोडने का कार्य करता है। तो दीवार एक को दो में विभक्त करने का ! पाषाण खण्ड वही था। उसका उपयोग कैसे किया , इसी में उसके महत्व का बोध होता है। पैसा वही है , उससे व्यक्ति मंदिर में चढाने के लिये अक्षत भी खरीद सकता है।

माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके...

(भगवान ... हमें इन दिशा निर्देशों का पालन करने की क्षमता व भावना दे) 1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो 2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो 3. उनकी राय स्वीकारें 4. उनकी बातचीत में सम्मिलित हों 5. उन्हें सम्मान के साथ देखें 6. हमेशा उनकी प्रशंसा करें 7. उनको अच्छा समाचार जरूर बताये 

Happy Diksha Divas

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Pujya Gurudevji Ko Badhaiyaa...

Jatashankar

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Chintan by Gurudevji

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Mandowara family

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Photos 2 डुठारिया अंजनशलाका प्रतिष्ठा

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Photos 1 डुठारिया अंजनशलाका प्रतिष्ठा

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कुशल वाटिका, सूरत में चल प्रतिष्ठा

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पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. पूज्य मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म.सा. की पावन निश्रा में ता. 2 जून 2014 ज्येष्ठ सुदि द्वितीय चौथ सोमवार को शुभ मुहूत्र्त में सूरत नगर के पाल क्षेत्र स्थित कुशल वाटिका परिसर में श्री मुनिसुव्रतस्वामी जिन मंदिर की चल प्रतिष्ठा अत्यन्त आनंद व हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुई। जिन मंदिर में मुनिसुव्रतस्वामी, दादा गुरुदेव श्री जिनकुशलसूरि एवं नाकोडा भैरव की प्रतिमाजी बिराजमान की गई।

Pratistha photos of Duthariya

Dada Gurudev photos slide

नवकार वाली यानि माला का स्वरूप

नवकार वाली के 108 मणको को पंचपरमेष्ठी के 108 गुणों को जीवन में धारण करने स्वरूप गिना जाता है ! * उन समस्त गुणों के प्रति आदर, सम्मान का भाव प्रगटाने के लिए तथा माला गिनते समय एक एक गुण का स्मरण कर अपनी अंतरात्मा में उतारने का पुरुषार्थ करने के स्वरूप गिना जाता है । * अपने मन में स्थित पाप करने की वृति तथा पापकर्म की शक्ति का नाश करने के भाव के साथ गिना जाता है । * माला धागे की सर्वथा योग्य मानी जाती है, चंदन या चांदी की माला को भी शुभ माना गया है, प्लास्टिक की माला उपयोग नही करनी चाहिए , शान्ति तथा शुभ कार्य के लिए सफेद रंग की माला लेनी चाहिए । * माला गिनने का स्थान एवं वस्त्र भी शुद्ध-पवित्र होने चाहिए । * माला गिनते समय मुँह पूर्व दिशा की और होना चाहिए, पूर्व दिशा अनुकूल न हो तो उत्तर दिशा की और मुँह करके जाप करना चाहिए । * सहज भाव से होंठ बंद रखकर, दांत एक दुसरे को स्पर्श न करें, मात्र स्वयं ही जान सके, इस प्रकार मन में ही जाप करना चाहिए । * प्रात:काल ब्रह्म समय अर्थात सूर्योदय से पहले की चार घडी (1 hr 36 mts) का समय सर्वोत्तम है । * नवकार मंत्र के जाप-ध्यान से शरीर में 72

Jain Religion answer

1. Ravan kaun se kshetra me tirthankar banenge?? Ans. Airtavat Kshetra 2. Abhavya markar kaha kaha nhi ja sakte hai full ans dena adura nhi chalega??? Ans. Anutar viman aur moksh 3. 700 chovisi tak kiska naam rahega?? ans. Sri chandra kewali 4. Veer prabhu ko samyaktva ki prapti kaun se chetra me hui thi??? ans. Mahavideh chetra 5.Veer prabhu ke sasan me kitne ascharya hue ans. 5

जम्बुद्वीप के भरत क्षेत्र में भविष्य काल में होने वाले तीर्थंकरों के पूर्व भव का नाम व भविष्य का नाम

1. श्रेणिक राजा का जीव, प्रथम नरक से आकर पहले ' श्री पद्मनाभजी ' होंगे। 2. श्री महावीर स्वामी जी के काका सुपार्श्व जी का जीव, देवलोक से आकर दुसरे ' श्री सुरदेव जी ' होंगे । 3. कोणिक राजा का पुत्र उदाइ राजा का जीव , देवलोक से आकर तीसरे ' श्री सुपार्श्व जी ' होंगे।

आठ कर्म

1. ज्ञानावरणीय कर्म- वह कर्म, जिससे आत्मा के ज्ञान-गुण पर परदा पड़ जाए।  जैसे सूर्य का बादल में ढँक जाना। 2. दर्शनावरणीय कर्म- वह कर्म, जिससे आत्मा की दर्शन शक्ति पर परदा पड़ जाए।  जैसे चपरासी बड़े साहब से मिलने पर रोक लगा दे। 3. वेदनीय कर्म- वह कर्म जिससे आत्मा को साता का- सुख का और असाता का-दुःख का अनुभव हो।  जैसे गुड़भरा हँसिया- मीठा भी, काटने वाला भी। 4. मोहनीय कर्म- वह कर्म, जिससे आत्मा के श्रद्धा और चारित्र गुणों पर परदा पड़ जाता है।  जैसे शराब पीकर मनुष्य नहीं समझ पाता कि वह क्या कर रहा है। 5. आयु कर्म- वह कर्म, जिससे आत्मा को एक शरीर में नियत समय तक रहना पड़े।  जैसे कैदी को जेल में। 6. नाम कर्म- वह कर्म, जिससे आत्मा मूर्त होकर शुभ और अशुभ शरीर धारण करे।  जैसे चित्रकार की रंग-बिरंगी तसवीरें। 7. गोत्र कर्म- वह कर्म, जिससे आत्मा को ऊँची-नीची अवस्था मिले। जैसे कुम्हार के छोटे-बड़े बर्तन। 8. अन्तराय कर्म- वह कर्म, जिससे आत्मा की लब्धि में विघ्न पड़े।  जैसे राजा का भण्डारी। बिना उसकी मर्जी के राजा की आज्ञा से भी काम नहीं बनता

Jahaj mandir

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JAHAJMANDIR

फालना में आराधना भवन का उद्घाटन

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 पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म . सा . के शिष्य प्रशिष्य पूज्य मुनिराज श्री मुक्तिप्रभसागरजी म . सा . पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभसागरजी म . सा . की पावन निश्रा में फालना नगर में श्री आदिनाथ जिन मंदिर एवं दादावाडी की 12 वीं वर्षगांठ निमित्ते त्रिदिवसीय परमात्म भक्ति का आयोजन होगा। इस मंदिर दादावाडी की प्रतिष्ठा पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म . सा . की पावन निश्रा में वि . 02059 वैशाख शुक्ल तृतीया ता . 11 मई 2002 को संपन्न हुई थी।