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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

ज्ञान पंचमी के दिन श्रुत की पूजा कर लेना, ज्ञान मंदिरों के पट खोलकर पुस्तकों के प्रदर्शन कर लेना और फिर वर्ष भर के लिए उन्हें ताले में बंद कर देना ज्ञानभक्ति नहीं है। इस दिन श्रुत के अभ्यास, प्रचार और प्रसार का संकल्प करना चाहिए।

Gyan Panchami
ज्ञान पंचमी
ज्ञान पंचमी कार्तिक शुक्ला पंचमी अर्थात दीपावली के पाँचवे दिन मनाई जाती है।
 इस दिन विधिवत आराधना करने से और ज्ञान की भक्ति करने से 
कोढ़ जैसे भीषण रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
इस दिन 51 लोगस्स का कायोत्सर्ग, 51 स्वस्तिक, 51 खामासना और 
" नमो नाणस्स " पद का जाप किया जाता है। 

ज्ञान पंचमी को लाभ पंचमी भी कहा जाता है।
ज्ञान पंचमी सन्देश देती है की ज्ञान के प्रति दुर्भाव रखने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है।
अतएव हमें ज्ञान की महिमा को हृदयंगम करके उसकी आराधना करनी चाहिए।
यथाशक्ति  ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए और दूसरों के पठन पाठन में योग देना चाहिए।
यह योग कई प्रकार से दिया जा सकता है।निर्धन विद्यार्थियों को श्रुत ग्रन्थ देना, आर्थिक सहयोग देना, धार्मिक ग्रंथों का सर्वसाधारण में वितरण करना, 
पाठशालाएं चलाना, चलाने वालों को सहयोग देना, 
स्वयं प्राप्त ज्ञान का दूसरों को लाभ देना आदि।
ये सब ज्ञानावर्णीय कर्म के क्षयोपशम के कारण है।
विचारणीय है की जब लौकिक ज्ञान प्राप्ति में बाधा पहुंचाने वाली गुणमंजरी को गूंगी बनना पड़ा तो धार्मिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान में बाधा डालने वाले का कितना प्रगाढ़ कर्मबंध होगा  ?
इसीलिए भगवान महावीर ने कहा - " हे मानव ! तू अज्ञान के चक्र से बाहर निकल और ज्ञान की आराधना में लग।ज्ञान ही तेरा असली स्वरुप है। उसे भूलकर क्यों पर-रूप में झूल रहा है ? 
जो अपने स्वरुप को नहीं जानता उसका बाहरी ज्ञान निरर्थक है ।"
ज्ञान पंचमी के दिन श्रुत की पूजा कर लेना, ज्ञान मंदिरों के पट खोलकर पुस्तकों के प्रदर्शन कर लेना और फिर वर्ष भर के लिए उन्हें ताले में बंद कर देना ज्ञानभक्ति नहीं है।
इस दिन श्रुत के अभ्यास, प्रचार और प्रसार का संकल्प करना चाहिए।
आज ज्ञान के प्रति जो आदर वृति मंद पड़ी हुई है, उसे जाग्रत करना चाहिए और द्रव्य से ज्ञान दान करना चाहिए।
ऐसा करने से इहलोक परलोक में आत्मा को अपूर्व ज्योति प्राप्त होगी और शासन और समाज का अभ्युदय होगा।

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