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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

चेन्नई में भागवती दीक्षा का कीर्तिमान स्थापित हुआ


 

 मूल नागोर निवासी श्री योगेशकुमारजी सेठिया की धर्मपत्नी श्रीमती जयादेवी सेठिया एवं उनके सुपुत्र श्री संयमकुमार सेठिया की भागवती दीक्षा ता. 25 अप्रेल 2015 को ऐतिहासिक रूप से संपन्न हुई। ऐसी दीक्षा चेन्नई में पहली बार हुई। दीक्षा समारोह का प्रारंभ प्रात: 9 बजे से हुआ जो मध्याह्न 3.30 बजे तक चला। लगभग 15 से 20 हजार लोगों की विशाल उपस्थिति दीक्षा विधान के अंतिम समय तक बनी रही। यह अपने आप में एक कीर्तिमान था।
ता. 23 अप्रेल को मुमुक्षु संयम व जया देवी का डोराबंधन हुआ। धर्मनाथ मंदिर उपाश्रय पूरा ठसाठस भरा हुआ था। पूरा चेन्नई संघ मुमुक्षु संयम व जयादेवी का अभिनंदन कर रहा था। ता. 23 की रात को विदाई समारोह का संवेदना भरा कार्यक्रम आयोजित हुआ। मुंबई से पधारे संजय भाउ ने संवेदना से परिपूर्ण सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत किया। ता. 24 को भव्य शोभायात्रा का आयोजन हुआ। ऐसी विशाल शोभायात्रा... हजारों लोगों की उपस्थिति... अनुशासित वातावरण... संभवत: चेन्नई नगर में पहली बार देखा गया, ऐसा बडे बूढे लोगों का कहना रहा।

पिछले दिनों से भीषण गर्मी का वातावरण था। लेकिन आज के वरघोडे में मेघराज का आगमन हुआ। और बादलों की छांव ने ठंडक पैदा कर दी। रात्रि को रिमझिम बारिश के खुशनुमा वातावरण में अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया। जोरदार बारिश हुई थी। सडकों पर पानी बह रहा था। इसके बावजूद पूरा पाण्डाल भर गया था। यह दीक्षा का अभिनंदन था। सभी के हृदय में अनुमोदना का भाव उमड रहा था। मुमुक्षु संयम के भाषण ने सभी की आँखों को अश्रु बहाने के लिये मजबूर कर दिया।  
 ता. 25 अप्रेल के उस स्वर्णिम प्रभात ने बादलों की ओट से संयम का अभिनंदन किया। रत्नपुरी नगरी का पूरा पाण्डाल 8 बजे से ही ठसाठस भर गया था। बाहर विशाल मैदान में बडी स्क्रीन वाले टी.वी. लगाये गये थे, जिनमें दीक्षा विधान का सीधा प्रसारण हो रहा था।
परिवार जनों की ओर आज्ञा प्रदान करते ही दीक्षा विधि का प्रारंभ किया गया। रजोहरण प्रदान करने से पूर्व मुमुक्षु जयादेवी का भाषण हुआ। जयादेवी हृदय से बोल रही थी। अपने लाल को जिन शासन को समर्पित कर रही थी... स्वयं भी समर्पित होने जा रही थी। जयादेवी ने बताया- मेरे पुत्र का नाम इसके पापा ने रखा था। उनकी भावना थी कि पुत्र को संयम देना है। मुझे भी संयम लेना है। अपने पुत्र के बारे में जब बोल रही थी, तो मातृत्व छलक पडा। सबकी आंखें भीग गई। 
संयम ने कहा- मुझ पर पूजनीया गुरुवर्या श्री सुलोचनाश्रीजी म. सुलक्षणाश्रीजी म. के अनंत उपकार हैं। उन्होंने ही मुझे पढाया और इस योग्य बनाया। मां के उपकारों को मैं कभी भूल नहीं सकता। और जब अपने भाषण के बाद संयम ने अपनी परम उपकारी मां के चरणों का स्पर्श करके अपना सिर मां के पांवों से रगडा और पदधूलि अपने सिर से लगायी तो सारा पाण्डाल भीग उठा। सबकी आंखों से आंसू झरने लगे। माता पुत्र का यह अंतिम मिलन था।
उसके बाद शुभ मुहूत्र्त में जब रजोहरण प्रदान किया गया। तो बडी देर तक जयादेवी एवं संयम नृत्य करते रहे। उसके नृत्य से उसके अन्तर का आनंद अभिव्यक्त हो रहा था।
संयम वेश धारण करने के पश्चात् जब पाण्डाल में पुन: आगमन हुआ तो लोग धन्य हो उठे। और नूतन दीक्षित अमर रहे... के नारों से नभ गुंजाने लगे।
करेमि भंते का प्रत्याख्यान कराने के बाद नाम रखा गया- मुनि मलयप्रभसागर! वे पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. के शिष्य बने। जयादेवी का नाम रखा गया- साध्वी प्रियमुद्रांंजनाश्रीजी! वे पूजनीया साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म. की शिष्या बनी।
नूतन मुनि के धर्म माता पिता बनने का लाभ लिया- संघवी शा. तेजराजजी गुलेच्छा परिवार मोकलसर निवासी ने। और नूतन साध्वी के धर्म माता पिता बनने का लाभ लिया- श्री सुपारसचंदजी मदनबाई बैद परिवार ने।
नामकरण का लाभ लिया क्रमश: श्री लक्ष्मीचंदजी बच्छावत- नागोर व श्री वीरेन्द्रमलजी आशिषकुमारजी मेहता परिवार ने!
संघ ने नूतन दीक्षित मुनि व साध्वीजी को वंदना की। उनसे पहला पहला धर्मलाभ श्रवण कर जीवन को धन्य बनाया।
पूज्यश्री ने इस अवसर पर अपने प्रवचन में कहा- इस जगत में ऐसी माताऐं लाखों हैं जो अपने पुत्र के विवाह का सपना देखती है। पर ऐसी माताऐं तो करोडों में एक होती है, जो अपने लाल को परमात्मा महावीर के शासन को समर्पित करती है। जयादेवी की जितनी प्रशंसा और अनुमोदना की जाय, उतनी कम है। जयादेवी का एक ही सपना था- मेरे पुत्र को अशाश्वत सुख के लिये नहीं, शाश्वत सुख को प्राप्त करने का पुरूषार्थ करना है।
पूज्यश्री ने कहा- आज मेरे लिये अत्यन्त प्रसन्नता का अवसर है कि एक बाल मुमुक्षु संयम ग्रहण कर रहा है। इस समय यदि पू. माताजी म. बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी का भी सानिध्य मिल जाता तो खुशियाँ चौगुनी हो जाती। वे इस समय छत्तीसगढ क्षेत्र में विहार कर रहे हैं।
इस अवसर पर उनके आत्म-संदेश को पू. मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म. ने पढकर सुनाया।
पूजनीया साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी म. ने कहा- यह अत्यन्त आनंद का अवसर है कि एक मुनि की वृद्धि हो रही है। उन्होंने पूज्यश्री से आग्रह किया कि वे नूतन मुनि को अच्छी तरह पढा लिखा कर तैयार करे।
आज 25 ता. के सकल श्री संघ के स्वामिवात्सल्य का संपूर्ण लाभ दीक्षार्थी परिवार मुमुक्षु संयम के नानाजी श्री बस्तीचंदजी मामाजी श्री महिपालजी कानूगो परिवार द्वारा लिया गया। उनका भावभीना बहुमान अभिनंदन किया गया।
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