छाजेड गोत्र का गौरवशाली इतिहास आलेखकः- गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी महाराज वि. सं. 1215 की यह घटना है। सवियाणा गढ जो वर्तमान में गढ़सिवाना के नाम से प्रसिद्ध है , में राठौड वंश के काजलसिंह रहते थे। वे रामदेवसिंह के पुत्र थे। प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि के शिष्य मणिधारी दादा श्री जिनचन्द्रसूरीश्वरजी म-सा- विहार करते हुए सवियाणा में पधारे। उनके त्याग , तप , विद्वत्ता , साधना की महिमा श्रवण कर काजलसिंह का मन उनके प्रति आकृष्ट हो गया। उनका धर्मोपदेश श्रवण करने के लिये वह प्रतिदिन उपाश्रय में जाने लगा। किसी जैन मुनि के प्रवचन श्रवण करने का यह उसका प्रथम अवसर था। उसका मन धर्म में अनुरक्त हो गया। उसने एक बार गुरुदेवश्री के प्रवचन में स्वर्णसिद्धि की बात सुनी। इस पर उसे विश्वास नहीं हुआ। उसने गुरुदेव से पूछा- क्या स्वर्णसिद्धि हो सकती है! गुरुदेव ने कहा- साधना से सब कुछ हो सकता है। चित्त की एकाग्रता के साथ यदि ध्यान साधना की जाये तो सब कुछ संभव है। उसने कहा- गुरुदेव! मैं चमत्कार देखना चाहता हूँ। आप तो महान् साधक हैं। कोई चमत्कार बताईये। गुरुदेव ने क