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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

 पूज्य उपाध्यायश्री
    का  प्रवचन

ता. 18 अगस्त 2013, पालीताना
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- जीवन में शान्ति और आनन्द पाने के लिये सहिष्णुता गुण का उपयोग जीवन में अत्यन्त जरूरी है। जिस घर के बडे बुजुर्ग सहनशील होते हैं, निश्चित ही वह घर स्वर्ग जैसा हो जाता है।
उन्होंने कहा- जीवन इच्छाओं के आधार पर नहीं जीया जाता। क्योंकि इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। उसकी कोई एक दिशा भी नहीं होती। घर में जहाॅं 7-8 सदस्य रहते हों, वहाॅं यदि सभी अपनी अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीना शुरू कर दे, तो दो मिनट में ही महाभारत शुरू हो जायेगी। क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र इच्छा व आकांक्षा रहती है। इस कारण इच्छाओं में टकराव होता है। और वही टकराव अशान्ति का कारण हो जाता है।
वे परिवार में शान्ति कैसे हो, विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा- बुजुर्ग वही है, जो दूसरों की उचित आकांक्षाओं को पूरी करने के लिये अपनी इच्छाओं का त्याग करता है। उन्होंने कहा- जीवन इच्छाओं के आधार पर नहीं, अपितु मर्यादाओं के आधार पर जीना होता है। जहाॅं मर्यादा युक्त जीवन है, वहाॅं किसी भी प्रकार की कोई अशान्ति नहीं हो सकती।
उन्होंने कहा- मर्यादा शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण है। वह हमें कत्र्तव्य का भी बोध देता है और जिम्मेदारियों का भी। यदि आप पिता है, तो आपको अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिये। और अपनी जिम्मेदारियों का स्मरण करके अपने व्यवहार का निर्धारण करना चाहिये।
उन्होंने कहा-मुश्किल यह है कि लोग दूसरों के कत्र्तव्यों का तो निरन्तर स्मरण करते हैं कि उसे ऐसा करना चाहिये! उसे वैसा करना चाहिये। परन्तु स्वयं को क्या करना चाहिये, इस विषय में विचार भी नहीं करता। मर्यादा का उल्लंघन करना सबसे बडा पाप है। वह चाहे साधु जीवन में हो, चाहे गृहस्थ जीवन में। हर क्षेत्र की अपनी मर्यादा है। मर्यादा की लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन करना, विकृतियों और अशान्ति को आमंत्रण देना है।
चातुर्मास की प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाॅ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- हमारी जेब से 200-500 रूपये इधर उधर हो जाये, तो दो तीन दिनों तक चैन नहीं आता, रोटी नहीं भाती! परन्तु पूरी जिन्दगी हम जो बरबाद कर रहे हैं, उस विषय में हमारे मन में पीडा के भाव क्यों नहीं पैदा होते। रूपये तो जाने के बाद दुबारा पाये जा सकेंगे पर जिन्दगी यदि खो दी तो दुबारा कैसे पायेंगे!
उन्होंने कहा- हम अपने जीवन का 80 प्रतिशत हिस्सा व्यर्थ की चर्चाओं, गप्पों और बेकार कामों में बिताते हैं। जिनके साथ हमारा कोई संबंध नहीं है, जिस विषय में चर्चा करने से कोई लाभ होने वाला नहीं है, न हमारी चर्चा से स्थिति में परिवर्तन हो सकता है, उन बातों में हम अपना अनमोल समय, उर्जा, और बौद्धिक धन नष्ट करते हैं। और व्यर्थ में कर्म बंधन करते हैं।
संघवी विजयराज डोसी ने बताया कि चातुर्मास को मंगलमय बनाने के व आत्म कल्याण के लक्ष्य से चातुर्मास की प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाॅ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने वर्धमान तप की ओली की महान् तपस्या पूर्ण की। उन्होंने 25वीं ओली संपन्न की। कल ता. 19 को उनका पारणा होगा।
आयोजक बाबुलाल लूणिया ने बताया कि पूजनीया साध्वी श्री विभांजनाश्रीजी म.सा. के मासक्षमण के निमित्त जो पंचाह्निका महोत्सव चल रहा है, उसके अन्तर्गत आज अर्हद् महापूजन का तीसरा भाग पढाया गया। कल सिद्धचक्र महापूजन का भव्य आयोजन होगा। ता. 20 अगस्त को प्रातः 8.30 बजे भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया जायेगा। ता. 21 को मासक्षमण का पारणा होगा। इस अवसर पर सूरत, मुंबई, बाडमेर, पूना, अहमदाबाद आदि क्षेत्रों से बडी संख्या में श्रद्धालु पहुॅंच रहे हैं।
प्रेषक
दिलीप दायमा

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