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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

Palitana VARGHODA

Palitana VARGHODA

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

ता. 20 अगस्त 2013, पालीताना
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत तप अभिनंदन समारोह में श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- तपस्या करना कोई हंसी खेल नहीं है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। एक दिन का उपवास करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है, वहाॅं साध्वी श्री विभांजनाश्रीजी म. सा. ने एवं श्रीमती मंजूदेवी किरणराजजी ललवानी ने मासक्षमण की तपस्या करके एक अनूठा आदर्श उपस्थित किया है।
उन्होंने कहा- परमात्मा महावीर ने ज्ञान व चारित्र की अपेक्षा तप को ज्यादा महत्व दिया। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा- जब श्रेणिक महाराजा ने परमात्मा महावीर से निवेदन किया कि सोलह हजार साधुओं में सर्वश्रेष्ठ साधु कौन है, जिसे वंदन करने से समस्त को वंदना करने जैसा लाभ प्राप्त हो जाता है। परमात्मा महावीर ने कहा- धन्ना अणगार! जो भले दो ही ज्ञान का स्वामी है, परन्तु तपस्या में इसका कोई सानी नहीं है। परमात्मा के साथ केवलज्ञानी, चार ज्ञान वाले, तीन ज्ञान वाले कई साधु थे। परन्तु दो ज्ञान वाले मुनि की प्रशंसा करके परमात्मा ने तपस्या की महिमा गाई।
उन्होंने कहा- हमने पूर्व भव में जिन कर्मों का बंध किया है, उसे क्षय करने का एक मात्र साधन तपस्या है। तपस्या से ही संचित कर्म नष्ट होते हैं व मुक्ति पद की प्राप्ति होती है।
उन्होंने कहा- भूखा रहना तप नहीं है। किसी को भोजन प्राप्त नहीं हो रहा है, और वह भूखा रह जाता है। उसका नाम तप नहीं है। या कभी कभी क्रोध आदि के कारण व्यक्ति जानबूझकर भूखा रह जाता है। उसे तप नहीं कहा जाता है। तपस्या के अन्तर के भावों से प्रसन्नता के साथ तप करना ही तपस्या है।
उन्होंने कहा- साध्वी विभांजनाश्रीजी के स्वभाव की यह अनूठी विशेषता है कि उनमें कोई अपेक्षा नहीं है। साथ ही हर क्षण प्रसन्न रहना जिसका स्वभाव है। निश्चित ही इनकी तपस्या अनुमोदनीय है।
समारोह का संचालन करते हुए चातुर्मास पे्ररिका पूजनीया बहिन म. डाॅ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- मुझे अपनी इस तपस्वी शिष्या पर अत्यन्त गौरव है। जिसने छोटी उम्र में इतनी बडी तपस्या की है। तप तो कोई भी कर लेता है। पर प्रसन्नता के भावों के साथ तप करना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने चातुर्मास आयोजक परिवार को धन्यवाद दिया कि उनके द्वारा आयोजित ऐसे चातुर्मास में इतनी तपस्या का लाभ उन्हें प्राप्त हो रहा है।
इस अवसर पर पूज्य कुशल मुनिजी, साध्वी दिव्यप्रभाश्रीजी, शशिप्रभाश्रीजी, विश्वज्योतिश्रीजी, डाॅ. नीलांजनाश्रीजी, प्रियसौम्यांजनाश्रीजी, नूतनप्रियाश्रीजी, अमीपूर्णाश्रीजी आदि ने भी तपस्वी का अभिनंदन किया।
आयोजक श्री बाबुलालजी लूणिया एवं श्री रायचंदजी दायमा परिवार की ओर से पूजनीया तपस्वी साध्वीजी म.सा. का गुरू पूजन किया गया एवं दादा गुरुदेव की प्रतिमा अर्पित की गई।
मासक्षमण के तपस्वी सौ. मंजूदेवी ललवानी का आयोजक परिवार की ओर से भावभीना अभिनंदन किया गया।
अभिनंदन समारोह से पूर्व तपस्या का वरघोडा निकाला गया। जो हरि विहार से प्रारंभ होकर तलेटी पहुॅंचा, जहाॅं पूजा अर्चना वंदना की गई। समारोह में सम्मिलित होने के लिये सूरत, अहमदाबाद, मुंबई, रायपुर, बाडमेर, सांचोर आदि क्षेत्रों से बडी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए।
हरि विहार के अध्यक्ष संघवी विजयराज डोसी ने बताया कि तपस्या के उपलक्ष्य में चल रहे पंचाह्निका महोत्सव के अन्तर्गत आज दादा गुरुदेव की पूजा पढाई जायेगी।

प्रेषक
दिलीप दायमा

Comments

  1. तपस्वियों का अभिनन्दन................

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  2. तपस्या करने वालों को धन्यवाद !

    Kishor Golchha

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