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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन


ता. 22 अगस्त 2013, पालीताना
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत रक्षा बंधन दिवस पर श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- सुख दु:ख दोनों पराधीन है। सुख प्राप्ति के लिये कोई व्यक्ति या कोई पदार्थ चाहिये, कोई सम्मान अथवा प्राप्ति की घटना चाहिये अथवा पूर्व घटित घटना की कल्पना हो, तभी व्यक्ति को सुख उपलब्ध होता है। और दु:ख प्राप्ति के लिये भी कोई व्यक्ति या घटना या घटना की स्मृति की कारण होती है।
 पालीताणा में उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी के सानिध्य में संघपति परिवार
उन्होंने कहा- जो पराधीन हो, ऐसा सुख या दु:ख भ्रम है। जो स्वाधीन हो, ऐसा सुख आनन्द है। यह अपने आप में स्वतंत्र अनुभूति है। वे प्रवचन में श्रीमद् देवचन्द्र रचित चौवीशी के तहत परमात्मा के दिव्य स्वरूप की व्याख्या कर रहे थे।
उन्होंने कहा- परमात्म पद का आनन्द अखण्ड है। इस जगत में कोई भी द्रव्य, कोई भी कि्रया ऐसी नहीं है, जो निरन्तर हो सके। जिससे निरन्तर आनन्द की अनुभूति हो सके। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा- जैसे किसी व्यक्ति को दुग्ध पान में आनन्द की अनुभूति होती है। पर पहली गिलास में जो आनन्द मिलेगा क्या वैसा ही आनन्द उसे दूसरी गिलास में मिल सकता है! गिलास की संख्या ज्यों ज्यों बढती जायेगी, उसका आनन्द घटता जायेगा।
उन्होंने कहा- संसार के पौद्गलिक पदार्थों में क्षणिक सुख देने की ही क्षमता है। और जो क्षणिक है, वह निश्चित ही भ्रम है, और कुछ नहीं। जबकि परमात्म पद का आनन्द अखंड है। वहाँ किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं है। क्योंकि उसमें किसी भी प्रकार के बाह्य पदार्थ या बाह्य व्यक्ति की अपेक्षा नहीं है। उसके लिये केवल आत्म भाव ही अपेक्षित है। आत्म भाव सदा सर्वदा साथ रहने वाला दिव्य अनुभव है। उन्होंने कहा- हमें सिद्धाचल का राज दरबार मिला है। हमें आत्म अनुसंधान के लिये प्रबल पुरूषार्थ करना है।
चातुर्मास प्रेरिका बहिन म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- इस जन्म में हमें वीतराग परमात्मा की साधना करने का अनूठा अवसर मिला है, उसका हमें पूरा पूरा लाभ उठाना है। उन्होंने कहा- जीवन में सहज सरलता की साधना करना, वीतराग परमात्मा की सेवा करना है।
संघवी हंसराजजी रमेशजी मुथा की विनंती पर पूज्यश्री साधु साध्वी श्रावक श्राविका संघ सहित विनीता नगरी पधारे। वहाँ संबोधित करते हुए पूज्यश्री ने कहा- हम यहाँ ऋषभदेव परमात्मा से अपना प्रेम संबंध स्थापित करने के लिये आये हैं। यहाँ से विदा होते समय अपने साथ ऋषभदेव परमात्मा को हृदय में बसा कर ले जाना है। उन्होंने पूज्य आचार्यश्री गुणरत्नसूरिजी म.सा. संयम जीवन की एवं आयोजक संघवी मुथा परिवार के योगदान की अनुमोदना की। संघवी मुथा परिवार की ओर से आयोजक लूणिया एवं दायमा परिवार का बहुमान किया गया।
हरि विहार के अध्यक्ष संघवी श्री विजयराजजी डोसी ने बताया कि आज शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी के अध्यक्ष श्री संवेगभाई लालभाई का पदार्पण हुआ। लूणिया एवं दायमा परिवार की ओर से उनका भावभीना अभिनंदन किया। श्री संवेगभाई ने पूज्यश्री के साथ लगभग आधा घंटे तक विभिन्न विषयों पर विचार विमर्श किया। पूज्यश्री ने उन्हें जैन जीवन शैली की एक पुस्तक भेंट की।

प्रेषक
दिलीप दायमा


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Comments

  1. Apke blog ke karan hume pujya shri ke pravachan ka labh mil raha hai bahut bahut anumodna jai jinendra

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