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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

PARYUSHAN PARVA 4th DAY

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

ता. 5 सितम्बर 2013, पालीताना
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूधर मणि श्री मणिप्रभसागरजी .सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के चतुर्थ दिन श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में आराधकों अतिथियों की विशाल धर्मसभा को संबोिधत करते हुए कहा- जैन आगमों में सर्वाधिक आदरणीय शास्त्र कल्पसूत्र है। क्योकि इसमें जीवन की पद्धति का विश्लेषण है। वर्तमान की घटनाओं को अतीत से जोडकर देखने की अद्भुत दृष्टि कल्पसूत्र का चिंतन हमें देता है।
उन्होंने कहा- हम वर्तमान मेें घट रही घटनाओं को केवल वर्तमान के संदर्भ में ही देखते हैं औीर इसी कारण जीवन में तनाव और बैचेनी है। भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा- वे पूर्व भव में हमारे जैसे ही सामान्य व्यक्ति थे। जब वे किसान थे। उस जीवन में उन्होंने सच्चे साधु संतों की नि:स्वार्थ भाव से श्रद्धा भर कर जो सेवा की थी, उसी का परिणाम था कि उन्हें सम्यक् दर्शन की प्राप्ति हुई। मरीचि के भव में अपने कुल और उज्ज्वल भविष्य का अहंकार किया जिससे उन्हें दुर्गति में भी जाना पडा। और संसार का विस्तार हुआ। परमात्मा के इस पूर्वभव की घटना से हमें शिक्षा लेनी चाहिये कि व्यक्ति का सत्ता, संपत्ति, ज्ञान, रूप कुछ भी मिले, उसे पुण्य प्रकृति का परिणाम समझ कर स्वीकार तो करे परन्तु उसका अहंकार कभी करे। सत्ता संपत्ति को ऋजुता के साथ भोगे, पर घमण्ड करे।
उन्होंने कहा- कार्य करते समय व्यक्ति उसके परिणामों के बारे में विचार नहीं करता। लेकिन उसके दुष्परिणाम जब नजर आते हैं, तब व्यक्ति रोकर भी उनसे पीछा नहीं छुडा सकता।
भगवान् महावीर के जीवन चरित्र में हम सभी पढते हैं कि उनके कानों में कीलें ठोंके गये थे। क्यों ठोके गये, इस प्रश्न का समाधान कल्पसूत्र में लिखित उनके पूर्व भव देते हैं। वे सतरहवें भव में वासुदेव थे। तब आवेश में आकर एक बार उन्होंने अपने शय्यापालक के कानों में में गर्म शीशा डलवा दिया था। इस आवेश का दुष्परिणाम उनको अपने कानों में खीले ठुकवाकर भोगना पडा।
उन्होंने कहा- हर व्यक्ति को चाहिये कि वह अपने वर्तमान के विषय में जागरूक रहें, क्योंकि यही उसका भविष्य होने वाला है।
कल्पसूत्र की वांचना प्रारंभ करते हुए उन्होंने नवकार महामंत्र की व्याख्या की और णमुत्थुण स्तोत्र के द्वारा परमात्मा के दिव्य और अलौकिक स्वरूप का विवेचन किया।
आयोजक बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा ने बताया कि कल प्रतिपदा को परमात्मा का जन्म वांचन होगा। यहाँ सिद्धि तप मासक्षमण की तपस्या चल रही है। आयोजक लूणिया परिवार के श्रीमती झमूदेवी भैरूचंदजी लूणिया के मासक्षमण की तपस्या चल रही है। आज उनके 26 वें उपवास की तपस्या है।


प्रेषक
दिलीप दायमा

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