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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

SAMVATSARI MAHAPARVA NEWS


पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

ता. 9 सितम्बर 2013, पालीताना
जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूधर मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वािधराज संवत्सरी महापर्व के अवसर पर श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में आराधकों व अतिथियों की विशाल धर्मसभा के मध्य आज प्रवचन फरमाते हुए कहा- आज क्षमायाचना का महापर्व है। ऐसा कोई व्यक्ति मिलना दुर्लभ है, जिसने अपने जीवन में कभी न कभी कोई न कोई गलती नहीं की हो। मनुष्य मात्र, गलती का पात्र है। लेकिन संवत्सरी का ऐसा विशिष्ट अवसर है, जब हमें अपना मनोमालिन्य धो देना है। अपने द्वारा हुई गलतियों के लिये क्षमा मांगनी है। और दूसरों के द्वारा हुई गलतियों को क्षमा कर देना है।
उन्होंने कहा- क्षमा मांगना बहुत आसान है, परन्तु क्षमा करना बहुत मुश्किल है। हमें हमारी गलतियों का स्मरण रहता है। इसलिये हम अपनी गलतियों के लिये बहुत आसानी से क्षमा मांग लेते हैं। परन्तु दूसरों की गलतियाँ हमारे हृदय में बिच्छु के डंक की भांति लगातार चुभती रहती है। उसके द्वारा क्षमा मांगने पर भी हम उसे क्षमा नहीं कर पाते। क्योंकि तब हमारे हृदय में तर्क और शंका पैदा होती है कि इसने क्षमा मन से नहीं मांगी है, उपर उपर से मांगी है। या इसने क्षमा मांगी ही नहीं है, तो मैं क्यों दूं।
जब मैं अपनी गलती के लिये क्षमा मांगता हूँ, तब मैं तुरंत चाहता हूँ कि सामने वाला बिना तर्क किये मुझे क्षमा कर दे। पर जब कोई दूसरा अपनी गलती के लिये मुझसे क्षमा मांगता है, तब मैं तर्क करने लगता है। यह अहंकार का जाल है। आज संवत्सरी महापर्व का महाप्रतिक्रमण करने से पूर्व इस अहंकार के जाल को तोड देना है।
मूल बारसा सूत्र की विवेचना करते हुए पूज्यश्री ने कहा- परमात्मा महावीर की वाणी कहती है कि गुरु और शिष्य में यदि कोई विवाद हो जाये, तो शिष्य को चाहिये कि वह गुरु के पास जाये और परस्पर क्षमायाचना कर ले। यदि शिष्य अहंकारी होने के कारण नहीं जाता हो, ऐसी स्थिति में गुरु को चाहिये कि वह स्वयं चल कर शिष्य के पास जाये और क्षमायाचना कर ले। यह क्षमा की महिमा है।
उन्होंने कहा- संवत्सरी के दिन समस्त मंदिरमार्गी समाज में मूल बारसा सूत्र का वांचन होता है। भले हमें प्राकृत भाषा न आने के कारण इसका अर्थ समझ में नहीं आता हो, तब भी मूल सूत्र के श्रवण से हमारी चेतना शुद्ध हो जाती है।
उन्होंने वैज्ञानिक प्रयोग का अवतरण करते हुए कहा- किसी भी वस्तु के समक्ष जब स्वर, स्थान, प्रयत्न आदि की शुद्धता के साथ मंत्रोच्चारण किया जाता है, तो उस वस्तु का घनत्व बढ जाता है। और उसके आभामंडल में चमत्कारी परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है। जब किसी जड द्रव्य में ऐसा चमत्कार घट सकता है तो हम तो चेतनायुक्त हैं। परम श्रद्धा और स्थिरता के साथ मूल सूत्र का श्रवण करने से हमारा आभामंडल परिष्कृत होता है, शुद्ध होता है।
प्रवचन पाण्डाल में लगभग तीन हजार लोगों की उपस्थिति में प्रात: 7 बजे मूल बारसा सूत्र का वांचन पूज्य उपाध्यायश्री के शिष्य पूज्य मुनि श्री मनितप्रभसागरजी महाराज द्वारा किया गया। संपूर्ण मौन एवं स्थिरता के साथ चले इस पाठ का पारायण साढे आठ बजे तक हुआ। जनसमुदाय ने धन्य धन्य जिन वाणी कह कर परमात्मा के इस सूत्र को बधाया।
चातुर्मास प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- जीवन भूलों से भरा है । जाने- अनजाने गलतियाँ हो ही जाती है । कभी गलतफहमी होती है तो कभी किसी के भरमाये जाने पर भूल कर बैठते है । परन्तु जिसे अपनी भूल का भूल के रूप में अहसास हो जाय और ऐसा अनुभव होने पर जिसकी आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित हो जाय तो समझना चाहिये कि उसने बहुत बडा प्रायश्चित्त कर लिया ।
उन्होंने कहा- भूल को भूल के रूप में स्वीकार कर पाना ही बहुत कठिन है । भूल होने के बाद हर आदमी यह अनुभव कर ही लेता है कि मेरे द्वारा गलती हो गई पर स्वीकार करने में उसका अहंकार परेशानी पैदा करता है। आज संवत्सरी महापर्व के अवसर पर हमें सबसे पहले उनसे क्षमा मांगनी है, जिनके साथ किसी कारण वैर विरोध हुआ है।
मूल सूत्र के वांचन के पश्चात् आयोजक लूणिया परिवार की श्रीमती झमूदेवी भैरूचंदजी लूणिया के मासक्षमण का अभिनंदन किया गया। साध्वी श्री शुक्लप्रज्ञाश्रीजी, साध्वी श्री निष्ठांजनाश्रीजी, साध्वी श्री सत्वबोिधश्रीजी के सिद्धि तप की अनुमोदना की गई। उसके पश्चात् तपस्वियों का वरघोडा निकाला गया।

आयोजक बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा ने बताया कि चातुर्मास को सफल बनाने में संघवी विजयराज डोसी, संघवी तेजराज गुलेच्छा, केवलचंद बोहरा, पंकज बोहरा, बाबुलाल मरडिया, घेवरचंद तातेड, समरथमल बुरड, भैरूचंद लूणिया, नरपत लूणिया, दिलीप दायमा आदि कार्यकर्ताओं का पूरा पुरूषार्थ रहा।


प्रेषक
दिलीप दायमा


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