Featured Post

Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

Image
पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

PARYUSHAN PARVA 6th DAY


पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन


ता. 7 सितम्बर 2013, पालीताना

जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के छठे दिन श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों व अतिथियों की विशाल ध्ार्मसभा के मध्य आज परमात्मा महावीर के जीवन का वृत्तांत सुनाते हुए कहा- परमात्मा महावीर के जीवन की सबसे बडी विशिष्टता है कि उनका आचार पक्ष व विचार पक्ष एक समान था। मात्र उपदेश देने वाले तो हजारों हैं, पर उनका अपना जीवन अपने ही उपदेशों के विपरीत होता है। ऐसे व्यक्ति पूज्य नहीं हुआ करते। पूज्य तो वे ही होते हैं, जिनकी कथनी करणी एक समान हो।
उन्होंने कहा- आज विश्व में आसुरी प्रवृत्तियों का बोलबाला है। भौतिकता के विकास ने मानवता का विनाश किया है। सुविधाओं ने शांति के बदले अशांति दी है। दूरसंचार और आवागमन के वाहन साधनों ने विश्व की भौगोलिक दूरी को जरूर कम किया है, पर मनुष्य के बीच हृदय की दूरी अवश्य बढ गई है। आर्थिक लोभवृत्ति ने भाई भाई को लडा दिया है। पारस्परिक वैमनस्य चरम सीमा पर पहुंचा है। स्वार्थ की तराजू में मानवीय संबंध तोले जा रहे हैं। विलासिता की अंधी दौड में आदमी नग्नता का प्रदर्शन कर रहा है।
ऐसे समय में परमात्मा महावीर के अजर अमर और समय निरपेक्ष सिद्धान्त ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। आज अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह इन तीन सिद्धान्तों को अपनाने की अपेक्षा है। ये तीन सिद्धान्तों के आधार पर पूरे विश्व में शांति और आनन्द का वातावरण छा सकता है।
उन्होंने परमात्मा महावीर के साढे बारह वर्षों में साधना काल की विवेचना करते हुए कहा- परमात्मा महावीर ने क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष इन भावों को तिलांजलि देकर मौन साधना का प्रारंभ किया। क्रोध की स्थितियों में भी वे पूर्ण करूणा के भावों से भर जाते थे। उनके जीवन की व्याख्या सुनते हुए जब उन्हें मिले कष्टों का विशद विवेचन सुनते हैं तो हमारी आंखों में अश्रु धारा बहने लगती है। संगम देव और कटपूतना के द्वारा दिये गये उपसर्गों को जब सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं। परन्तु परमात्मा महावीर तो करूणा की साक्षात् मूर्ति थे। चण्डकौशिक को उपदेश देने के लिये स्वयं चल कर उसकी बाबी तक पहुँचे थे।
उन्होंने परमात्मा महावीर और गौतम स्वामी के संबंधों की व्याख्या करते हुए कहा- गुरू गौतम स्वामी के हृदय में परमात्मा महावीर के प्रति अपार प्रेम था। यही कारण था कि वे स्वयं चार ज्ञान के स्वामी होने पर भी हर सवाल परमात्मा से पूछते थे। ताकि सारी जनता को परमात्मा से उत्तर प्राप्त हो।
चातुर्मास प्रेरिका पूजनीया बहिन म. डाँ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा- हम सभी परमात्मा महावीर के अनुयायी हैं। हमें संकल्प लेना है कि हम परमात्मा जैसे भले नहीं बन पाये परन्तु परमात्मा के अनुयायीय तो अवश्य बनेंगे।
आयोजक बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा ने बताया कि आज मासक्षमण, सिद्धि तप, 21 उपवास, अट्ठाई आदि तपस्वियों का भावभीना अभिनंदन किया गया।

प्रेषक
दिलीप दायमा



Comments

Popular posts from this blog

AYRIYA LUNAVAT GOTRA HISTORY आयरिया/लूणावत गोत्र का इतिहास

RANKA VANKA SETH SETHIYA रांका/वांका/सेठ/सेठिया/काला/गोरा/दक गोत्र का इतिहास

RAKHECHA PUGLIYA GOTRA HISTORY राखेचा/पुगलिया गोत्र का इतिहास