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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

PARYUSHAN PARVA 2nd DAY

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JAHAJMANDIR पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 3 सितम्बर 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के द्वितीय दिन श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों व अतिथियों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- पर्युषण महापर्व के दिनों में अपने आचरण की विशुद्धता का संकल्प लेना है । ध्ार्म का प्राण अहिंसा है । यह एक निषेध्ाात्मक कि्रया है । अहिंसा का आध्ाार करूणा है । या यों कहें कि करूणा अहिंसा का परिणाम है । जैन दर्शन की नींव अहिंसा है । अहिंसा की परिभाषा अनेक मनीषियों ने अपने-2 दृष्टिकोणों के आध्ाार पर की है । JAHAJMANDIR भगवान् महावीर ने अहिंसा को जीवन का रसायन कहकर उसकी गहरी और सूक्ष्म व्याख्या की है । किसी जीव को मारना तो हिंसा है ही, लेकिन किसी को शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट पहुँचाने को भी भगवान् महावीर ने हिंसा कहा है । यह अहिंसा का अत्यंत सूक्ष्म रूप है, जो मानवीय करूणा और दया स

PALITANA CHATURMAS

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PARYUSHAN MAHAPARVA 1st DAY

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता- 2 सितम्बर 2013, पालीताना जैन श्वे- खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूधर मणि श्री मणिप्रभसागरजी म-सा- ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के प्रथम दिन श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में आराधकों व अतिथियों की विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा पर्युषण महापर्व जीने की कला सिखाने वाला दिव्य उद्घोष है । यह पारस्परिक प्रेम का झरणा प्रवाहित करने का संदेश देता है । जहाँ द्वैत है वहाँ दुर्गुण की उपस्थिति है । लेकिन अद्वैत का आराधक द्वैत में भी ऐसे जीवन सूत्र खोज लेता है, जिसकी सन्निधि में दुर्गुणों को प्रवेश ही नहीं मिलता । ऐसा जीवन सूत्र है- हर आत्मा को अपने जैसा जानना, मानना और स्वीकार करना । उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा- महाभारत में एक सूत्र है- 'आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्' अर्थात् जो हमें प्रतिकूल लगे वैसा व्यवहार अन्यों के साथ हमारा नहीं होना चाहिये । इस सूत्र में हर आत्मा को एक समान मानने का दिव्यनाद गूंजा है । भगवान् महावीर का जीवन दर्शन

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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ता. 1 सितम्बर 2013, पालीताना                              जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्को व अतिथियों  को संबोिध्ात करते हुए कहा- संयम के बिना आत्मा का कल्याण नहीं है। संयम ग्रहण करने के लिये संसार का त्याग करना ही होता है। संसार के सारे सुख क्षणिक है। यदि संसार के साधनों में सुख होता तो तीर्थंकर और चक्रवर्ती जैसे अपार संपदा और सत्ता के मालिक क्यों संसार का त्याग करते! उन्होंने भी संसार को असार समझ कर संसार का त्याग किया और आत्मा की केवल ज्ञान संपदा को प्राप्त किया। उन्होंने कहा- संसार के सारे सुख केवल दुख ही देने वाले हैं। क्षण भर का सुख लम्बे समय के दुख का कारण है। इसलिये हमें संसार के सुखों में नहीं उलझना है, अपितु आत्मा के सुख में डुबकी लगानी है। यह सुख समता और सरलता से प्राप्त होता है। उन्होंने कहा- आत्मिक सुख को प्राप्त करने के लिये अपने अन्तर के स्वभाव को बदल कर कषाय से मुक्त करना

PALITANA NEWS

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Welcome- http://jahajmandir.com/ http://jahajmandir.blogspot.in/ पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 25 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- जीवन इच्छाओं के आधार पर नहीं अपितु समझौते के आधार पर चलता है। जीवन में यदि शांति और आनंद चाहिये तो दूसरों की इच्छाओं पर अपनी इच्छाओं का बलिदान करना सीखो। जो व्यक्ति दूसरों को सुख देने के लिये अपना सुख त्याग करता है, निश्चित रूप से वही व्यक्ति पूरे परिवार के हृदय में बिराजमान होकर राज करता है। आज पारिवारिक शांति के सूत्र प्रस्तुत करते हुए पूज्यश्री ने कहा- जीवन में यदि आनंद पाना है तो टिट फोर टेट का सिद्धान्त अपने मन से निकालना होगा। जैसे को तैसा नहीं अपितु जैसे को वैसा सिद्धान्त बनाना होगा। जैसे को तैसा का अर्थ हुआ कि जैसा वो कर रहा है, वैसा करना। जबकि जैसे को वैसा का अर्थ होता है, वह जो कर रहा है,

PALITANA CHATURMAS

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 22 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत रक्षा बंधन दिवस पर श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- सुख दु:ख दोनों पराधीन है। सुख प्राप्ति के लिये कोई व्यक्ति या कोई पदार्थ चाहिये, कोई सम्मान अथवा प्राप्ति की घटना चाहिये अथवा पूर्व घटित घटना की कल्पना हो, तभी व्यक्ति को सुख उपलब्ध होता है। और दु:ख प्राप्ति के लिये भी कोई व्यक्ति या घटना या घटना की स्मृति की कारण होती है।  पालीताणा में उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी के सानिध्य में संघपति परिवार उन्होंने कहा- जो पराधीन हो, ऐसा सुख या दु:ख भ्रम है। जो स्वाधीन हो, ऐसा सुख आनन्द है। यह अपने आप में स्वतंत्र अनुभूति है। वे प्रवचन में श्रीमद् देवचन्द्र रचित चौवीशी के तहत परमात्मा के दिव्य स्वरूप की व्याख्या कर रहे थे। उन्होंने कहा- परमात्म पद का आनन्द अखण्ड है। इस जगत में कोई भी द्रव्य, कोई भी कि्

Palitana VARGHODA

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Palitana VARGHODA पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 20 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत तप अभिनंदन समारोह में श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- तपस्या करना कोई हंसी खेल नहीं है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होता है। एक दिन का उपवास करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है, वहाॅं साध्वी श्री विभांजनाश्रीजी म. सा. ने एवं श्रीमती मंजूदेवी किरणराजजी ललवानी ने मासक्षमण की तपस्या करके एक अनूठा आदर्श उपस्थित किया है। उन्होंने कहा- परमात्मा महावीर ने ज्ञान व चारित्र की अपेक्षा तप को ज्यादा महत्व दिया। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा- जब श्रेणिक महाराजा ने परमात्मा महावीर से निवेदन किया कि सोलह हजार साधुओं में सर्वश्रेष्ठ साधु कौन है, जिसे वंदन करने से समस्त को वंदना करने जैसा लाभ प्राप्त हो जाता है। परमात्मा महावीर ने कहा- धन्ना अणगार! जो भले दो ही ज्ञान का स्वामी है, पर

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 19 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- जब तक व्यक्ति परमात्म पद को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक हर व्यक्ति अपूर्ण है। आंतरिक दृष्टि से पूर्ण होेने पर भ्ज्ञी क्रोध, मान आदि पडदे के कारण उसे अपनी पूर्णता का परिचय नहीं है। वह पूर्ण है, पर कर्मों से ढंका है। आसक्ति आदि के कारण वह अपूर्ण है। पर अपनी अपूर्णता को ही पूर्ण मानकर अहंकार करता है। अहंकार ही व्यक्ति को कभी पूर्ण नहीं होने देता। उन्होंने कहा- जो बीमार है, वह यदि चिकित्सक के सामने अपनी स्वस्थता की व्याख्या करेगा तो वह कैसे अपना इलाज करवा पायेगा। वह कभी भी स्वस्थ नहीं हो पायेगा।  उसे यदि स्वस्थ होना है तो अपनी बीमारी का वर्णन करना पडेगा। उन्होंने कहा- मैं अपूर्ण हूँ, ऐसा बोध उसे यथार्थता देता है और ऐसा बोध होते ही पूर्ण होने की प्रकि्रया

पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन

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  पूज्य उपाध्यायश्री     का  प्रवचन ता. 18 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोध्ाित करते हुए कहा- जीवन में शान्ति और आनन्द पाने के लिये सहिष्णुता गुण का उपयोग जीवन में अत्यन्त जरूरी है। जिस घर के बडे बुजुर्ग सहनशील होते हैं, निश्चित ही वह घर स्वर्ग जैसा हो जाता है। उन्होंने कहा- जीवन इच्छाओं के आधार पर नहीं जीया जाता। क्योंकि इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। उसकी कोई एक दिशा भी नहीं होती। घर में जहाॅं 7-8 सदस्य रहते हों, वहाॅं यदि सभी अपनी अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीना शुरू कर दे, तो दो मिनट में ही महाभारत शुरू हो जायेगी। क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र इच्छा व आकांक्षा रहती है। इस कारण इच्छाओं में टकराव होता है। और वही टकराव अशान्ति का कारण हो जाता है। वे परिवार में शान्ति कैसे हो, विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा- बुजुर्ग वही है, जो दूसर

Palitana nice Chaturmas

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पूज्य उपाध्यायश्री का प्रवचन ता. 17 अगस्त 2013, पालीताना जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ के उपाध्याय प्रवर पूज्य गुरूदेव मरूध्ार मणि श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. ने बाबुलाल लूणिया एवं रायचंद दायमा परिवार की ओर से आयोजित चातुर्मास पर्व के अन्तर्गत प्रश्नोत्तरी प्रवचन फरमाते हुए श्री जिन हरि विहार ध्ार्मशाला में आराध्ाकों की विशाल ध्ार्मसभा को संबोिध्ात करते हुए कहा- जैन किसी जाति का नाम नहीं है, अपितु जैन एक धर्म है, एक जीवन शैली है। जाति से सभी हिन्दु है। हिन्दु और जैन कोई अलग नहीं। हिन्दु किसी धर्म का नाम नहीं है और जैन किसी जाति का नाम नहीं है। जैन शब्द का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा- जो भी व्यक्ति वीतराग परमात्मा का अनुयायी है, उनके सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारता है, जो भी व्यक्ति अहिंसा आदि व्रतों का स्वीकार करता है, वह जैन है, भले ही वह जाति से क्षत्रिय, हो या ब्राह्मण, वैश्य हो या शूद्र! परमात्मा महावीर स्वयं क्षत्रिय थे। जबकि उनके ग्यारह गणधर ब्राह्मण थे। धन्ना और शालिभद्र जैसे मुनि वैश्य जाति से आये थे तो हरिकेशी, चित्तसंभूत मुनि शूद्र जाति से आये थे। परमात्मा महावीर ज