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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

Mahopadhyay Shree Kshamakalyan ji Maharaj पद्मश्री विभूषित पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी का मंतव्य-

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Mahopadhyay Shree Kshamakalyan ji Maharaj महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी महाराज के गुणानुवाद स्वरुप पद्मश्री विभूषित पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी का मंतव्य-                   ‘‘महोपाध्याय क्षमाकल्याण गणी राजस्थान के जैन विद्वानों में एक उत्तम कोटि के विद्वान् थे और अन्य प्रकार से अन्तिम प्रौढ पंडित थे। इनके बाद राजस्थान में ही नहीं अन्यत्र भी इस श्रेणि का कोई जैन विद्वान् नहीं हुआ। इनने जैन यतिधर्म में दीक्षित होने बाद, आजन्म अखण्डरूप से साहित्योपासना साहित्यिक रचनाएँ निर्मित हुई। साहित्यनिर्माण के अतिरिक्त तत्कालीन जैन समाज की धार्मिक प्रवृत्ति में भी इनने यथेष्ट योगदान दिया जिसके फलस्वरूप, केवल राजस्थान में ही नहीं परन्तु मध्यभारत, गुजरात, सौराष्ट्र, विदर्भ उत्तरप्रदेश, बिहार और बंगाल जैसे सुदूर प्रदेशो में भी जैन तीर्थों की संघयात्राएँ देवप्रतिष्ठाएँ और उद्यापनादि विविध धर्मक्रियाएँ संपन्न हुई। इनके पांडित्य और चारित्र्य के गुणों से आकृष्ट होकर, जेसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के तत्कालीन नरेश भी इन पर श्रद्धा एवं भक्ति रखते थे ऐसा इनके जीवनचरित्र संबन्धी उपलब्ध सामग्री से ज्ञा

Mahopadhyay Shree Kshamakalyan ji Maharaj महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी महाराज का परिचय

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Mahopadhyay Shree Kshamakalyan ji Maharaj महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी महाराज का जन्म ओशवंश के मालुगोत्र में केसरदेसर नाम के गाँव में संवत् १८०१ में हुआ था। सं. १८१२ में अपनी ११ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने वाचक श्रीअमृतधर्मजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की।   अपने जीवनकाल में उनके विहार का अधिक समय बिहार प्रान्त के पटना आदि स्थलो में काफी बीता है। वि. सं. १८७२ पौष वदी १४ को बीकानेर में कालधर्म को प्राप्त हुवे। इनका विस्तृत जीवन चरित्र श्री क्षमाकल्याणचरित नाम के ग्रन्थ में है। इसकी रचना जोधपुर महाराजा के निजी पुस्तकभण्डार के उपाध्यक्ष पं. श्रीनित्यानन्दजी शास्त्री ने की है। सुन्दर संस्कृत श्लोकों में श्री क्षमाकल्याणजी का पूर्ण जीवनवृतान्त दिया गया है।   इनकी प्राप्त रचनाओं में मुख्य रचनायें निम्न हैं- तर्कसंग्रह फक्किका ( 1827), भूधातु वृत्ति ( 1829), समरादित्य केवली चरित्र पूर्वाद्ध , अंबड चरित्र , गौतमीय महाकाव्य टीका , सूक्त रत्नावली स्वोपज्ञ टीका सह , यशोधर चरित्र , चैत्यवन्दन चतुर्विंशति , विज्ञान चन्द्रिका , खरतरगच्छ पट्टावली , जीवविचार टीका , परसमयसार विचार संग्रह , प्

Rajgir Bihar राजगृही वीरायतन में प्रतिष्ठा 17 फरवरी को

राजगृही पूज्य उपाध्याय श्री अमरमुनिजी म. के आशीर्वाद से एवं आचार्यश्री चन्दनाजी महाराज की पावन प्रेरणा से वीरायतन के पावन परिसर में श्री पाश्र्वनाथ परमात्मा का भव्य शिखरबद्ध जिन मंंदिर का निर्माण चल रहा है। इस मंदिर निर्माण का संपूर्ण लाभ पूना निवासी श्री रसिकलालजी सौ. शोभादेवी धारीवाल परिवार ने लिया है। इस मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. आदि मुनि मंडल एवं पूजनीया माताजी म. श्री रतनमालाश्रीजी म. पूजनीया बहिन म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. आदि ठाणा की पावन निश्रा में संपन्न होगा। त्रिदिवसीय महोत्सव के साथ अंजनशलाका प्रतिष्ठा होगी। इस अवसर पर शासन रत्न श्री मनोजकुमारजी बाबुमलजी हरण पधारेंगे। विधि विधान हेतु जयपुर निवासी सुप्रसिद्ध विधिकारक श्री यशवंतजी गोलेच्छा पधारेंगे।

sammetshikhar tirth Vachna श्री सम्मेतशिखर महातीर्थ की पावन गोद में वांचना शिविर 7 से 9 जनवरी 2017 को

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बीस तीर्थ करों की निर्वाण भूमि श्री सम्मेतशिखर महातीर्थ के पावन ऊर्जावान वातावरण में पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. आदि मुनि मंडल एवं पूजनीया माताजी म. श्री रतनमालाश्रीजी म. , पू. बहिन म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. आदि के पावन सानिध्य में दिनांक 7, 8 व 9 जनवरी 2017 को त्रिदिवसीय वांचना शिविर का आयोजन किया गया है। ता. 10 जनवरी को सामूहिक यात्रा होगी। इस शिविर का आयोजन अ.भा. खरतरगच्छ युवा परिषद ‘ केयुप ’ द्वारा किया जा रहा है। इस शिविर का संपूर्ण लाभ गढ़ सिवाना-अहमदाबाद निवासी संघवी श्री अशोककुमारजी मानमलजी भंसाली द्वारा लिया गया है। यह शिविर जैन धर्म दर्शन तत्त्वज्ञान का सामान्य बोध क्रिया , विधि , गच्छ , इतिहास आदि विविध विषयों पर केन्द्रित होगा। शिविर में सम्मिलित होने हेतु इच्छुक शिविरार्थी शीघ्र ही संपर्क कर अपना नाम अंकित कराकर अनुमति प्राप्त करें।  संपर्क सूत्र -  अशोक भसांली-  9825030604, 

दुर्ग से कैवल्यधाम का छह री पालित संघ संपन्न

पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य देव श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा 6 एवं पूजनीया माताजी म. श्री रतनमालाश्रीजी म. बहिन म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. आदि ठाणा 5 की पावन निश्रा में दुर्ग नगर से श्री भूरमलजी पतासी देवी बरडिया परिवार की ओर से उवसग्गहरं तीर्थ-कैवल्यधाम तीर्थ के लिये छह री पालित संघ का भव्य आयोजन किया गया। कार्तिक पूर्णिमा के दिन विधि विधान के साथ चतुर्विध संघ ने नगपुरा की ओर प्रस्थान किया। श्री उवसग्गहरं तीर्थ पहुँचने पर संस्थान की ओर से भव्य स्वागत किया गया। वहाँ बिराजमान आचार्य श्री राजचन्द्रसूरिजी म. आदि की सामूहिक निश्रा में कार्तिक पूर्णिमा का विधान किया गया। प्रवचन में पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपतिश्री ने शत्रुंजय तीर्थ की भावयात्रा विवेचना के साथ कराई। ता. 15 को वहाँ से विहार कर संघ दुर्ग पहुँचा। जहाँ श्री सुखसागर प्रवचन मंडप में श्री भूरमलजी बरडिया ने जीवराशि क्षमापना की। पूज्यश्री ने पद्मावती आलोयणा सुनाने के साथ उसकी विवेचना कर जीवराशि क्षमापना का रहस्य समझाया।

दुर्ग नगर में उपधान तप की आराधना सानन्द संपन्न

पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य देव श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. पूज्य मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री समयप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री विरक्तप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री श्रेयांसप्रभसागरजी म. पूज्य मुनि श्री मलयप्रभसागरजी म. ठाणा 6 एवं पूजनीया माताजी म. श्री रतनमालाश्रीजी म. पूजनीया बहिन म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. पूजनीया साध्वी श्री प्रज्ञांजनाश्रीजी म. पूजनीया साध्वी श्री नीतिप्रज्ञाश्रीजी म. पूजनीया साध्वी श्री निष्ठांजनाश्रीजी म. ठाणा 5 की पावन निश्रा में दुर्ग नगर में दिनांक 8 नवंबर 2016 को उपधान तप का माला विधान अत्यन्त आनंद व उत्साह के साथ संपन्न हुआ। मालारोपण विधान के उपलक्ष्य में पंचदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ता. 4 से 6 तक खरतरगच्छाचार्य श्री वर्धमानसूरि विरचित श्री अर्हद् महापूजन पढाया गया। ता. 7 को भव्यातिभव्य शोभायात्रा निकाली गई। ता. 8 को माला विधान हुआ। प्रथम माला धारण करने का लाभ श्रीमती निर्मलादेवी चोपडा को प्राप्त हुआ। माला पहनाने का लाभ मातुश्री तारादेवी श्री पन्नालालजी मूलचंदजी दिलीपजी नवकुमारजी चोपडा सुरगी वालों ने लिया

चातुर्मासों की घोषणा 16 अप्रेल 2017 को रायपुर (छ.ग.) में होगी

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JINMANIPRABHSURI पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने फरमाया है कि पूज्य गणनायक श्री सुखसागरजी म.सा. के समुदाय के साधु साध्वीजी भगवंतों के आगामी चातुर्मासों की घोषणा रायपुर नगर में 16 अप्रेल 2017 को की जायेगी। पालीताना खरतरगच्छ सम्मेलन में लिये गये निर्णय में इस वर्ष यह परिवर्तन किया गया है। सम्मेलन में यह निर्णय किया गया था कि समुदाय के समस्त चातुर्मासों का निर्णय पूज्य गच्छाधिपतिश्री द्वारा ही फाल्गुन सुदि चतुर्दशी के दिन किया जायेगा। चूंकि इस वर्ष पूज्य गच्छाधिपतिश्री होली चातुर्मास की अवधि में विहार में रहेंगे। वे 17 फरवरी 2017 को राजगृही नगर में प्रतिष्ठा संपन्न करवाकर रायपुर की ओर विहार करेंगे , अत: होली चातुर्मास के दिन चातुर्मासों की घोषणा नहीं हो पायेगी। रायपुर में देवेन्द्रनगर में ता. 17 अप्रेल 2017 को प्रतिष्ठा है। उस अवसर पर प्रतिष्ठा से एक दिन पूर्व ता. 16 अप्रेल 2017 वैशाख वदि 5 को चातुर्मास घोषित किये जायेंगे। चातुर्मास की विनंती करने हेतु सकल संघ ता. 16 अप्रेल 2017 को रायपुर पहुँचेंगे।

Jahaj Mandir_Magazine_Nov_ 2016

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Mahattara Divyaprabha sri ji 

KharatarGaccha_Panchang_2016_e-Book

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Jinakantisagarsuri Gurudev सदैव कृपा की अमीवर्षा करके  हमें सन्मार्ग प्रदर्शित करें  इसी अभिलाषा के साथ  पुण्यतिथि पर अनंतानंत श्रद्धा पुष्प अर्पित करते हैं। 

यशस्वी पाट परम्परा पर सुशोभित जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र, शासन प्रभावक, संयम शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरिजी महाराज

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यशस्वी पाट परम्परा पर सुशोभित जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र, शासन प्रभावक, संयम शिरोमणि गच्छाधिपति  आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरिजी महाराज आपका जन्म रतनगढ़ निवासी श्री मुक्तिमलजी सिंघी की धर्मपत्नी श्रीमती सोहनदेवी की कोख से वि.सं. 1968 माघ वदी एकादशी को हुआ था। जन्म का नाम तेजकरण था। माता-पिता तेरापंथी संप्रदाय के होने से तत्कालीन तेरापंथी समुदाय के अष्टम आचार्य श्री कालुगणि के पास 9 वर्ष की बाल्यावस्था में पिता के साथ वि.सं. 1978 में तेजकरण ने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होने के बाद तेरापंथी शास्त्रों का गहनतापूर्वक अध्ययन किया। जिससे मूर्तिपूजा, मुखविस्त्रका, दया, दान आदि के सम्बन्ध में तेरापंथ सम्प्रदाय की मान्यताएं अशास्त्रीय लगी। फलत: तेरापंथ संप्रदाय का त्याग कर वि.सं. 1989 ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी को अनूपशहर में गणाधीश्वर श्री हरिसागरजी महाराज के कर कमलों से भगवती दीक्षा अंगीकार करने पर मुनि श्री कांतिसागरजी नाम पाया।  आप प्रखर वक्ता थे। आपकी वाणी में मिठास होने के साथ ही आपका कण्ठ सुरीला एवं ओजस्वी था। आपको आगम ज्ञान के अलावा संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी, मारव

युगप्रभावक आचार्य भगवंत श्री जिनकांतिसागरसूरीश्वरजी म.सा. की 31वीं पुण्यतिथि पर

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Jinkantisuri सुधातल के निर्मल भूषण, समुच्चय करुणामृत के सागर, समाधि के परम साधक, श्रुतधर परम पूज्य गुरुदेव युगप्रभावक आचार्य भगवंत श्री जिनकांतिसागरसूरीश्वरजी म.सा. विश्व क्षितिज पर एक सौ चार साल पूर्व प्रकाशित हुए। जो मानवीय चेतना को शाश्वतता की ओर ले गये, आपकी दिव्य वाणी और वैराग्यमयी शक्ति ने जगत की सीमाओं को लांघकर जन मानस में ज्ञान की अलख जगाई।  आपका कोई भी अन्तर्मन से ध्यान करते हैं तो उन्हें सन्मार्ग प्रदर्शित करते हैं। साधना की गहनता प्रखर तप, ज्ञान की तेजस्विता और करूणा के निर्झर से आप्लावित थे। ऐसे महामहिम पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री आज भी जन-जन के मानस पटल पर श्रद्धा स्थान के रूप में अधिष्ठित है। आपकी दिव्य आभा, आपकी ज्ञान किरणें, आपके अनहद उपकार की रश्मियां इतिहास के पृष्ठों पर अमर रहेगी। महामानव के समस्त गुण आप में अवस्थित थे। आप स्पष्टवक्ता, प्रांजल साहित्यकार, अडिग पराक्रमी सर्वधर्म समन्वय के महान पुरस्कर्ता थे। आपके व्यक्तित्व की ऐसी अनूठी महिमा थी। आपने भारत की राजधानी दिल्ली, बद्रीनाथ, हरिद्वार, कन्याकुमारी मद्रास, बंबई, नागपुर आदि महानगर-शहर-गांव में पदविहार करक

बीकानेर में श्री क्षमाकल्याणजी महोत्सव मनाया जायेगा

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Pujy Kshamakalyan ji ms पू. क्षमाकल्याणजी म. का द्विशताब्दी महोत्सव         खरतरगच्छ परम्परा में पूज्य उपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी म.सा. का नाम अत्यन्त आदर व श्रद्धा के साथ लिया जाता है। वर्तमान में खरतरगच्छीय साधु साध्वीजी भगवंत जो वासचूर्ण का उपयोग करते हैं , उसे संपूर्ण विधि विधान के साथ उन्होंने ही अभिमंत्रित किया था। तब से दीक्षा , बडी दीक्षा आदि प्रत्येक विधि विधान में पूज्यश्री का नाम लेकर वासक्षेप डाली जाती है।      परम पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य देव श्री जिनमणिप्रभसूरी श्व रजी म.सा. की सेवा में बीकानेर जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ का प्रतिनिधि मंडल , अध्यक्ष श्री पन्नालालजी खजांची के नेतृत्व में दुर्ग पहुँचा। उन्होंने पूज्यश्री से बीकानेर पधार कर महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी म.सा. का द्वि श ताब्दी महोत्सव में निश्रा एवं मार्गदर्शन प्रदान करने की विनंती की। आगामी 28 दिसम्बर 2016 को दो सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। इस अवसर पर बीकानेर संघ ने पूज्य गच्छाधिपति की आज्ञा से द्वि श ताब्दी महोत्सव मनाने का निर्णय किया है। बीकानेर श्री संघ की विनंती स्वीकार कर

Palitana जिन हरि विहार पालीताना की वर्षगांठ आयोजित

पालीताणा स्थित श्री जिन हरि विहार धर्म शा ला के श्री आदिनाथ मयूर मंदिर का 14 वां वार्षिक ध्वजारोहण का कार्यक्रम दिनांक 12 नवम्बर 2016 को अत्यन्त आनन्द व उल्लास के साथ संपन्न हुआ। कायमी ध्वजा के लाभार्थी श्रीमती पुष्पाजी अ शो कजी जैन परिवार द्वारा जिन मंदिर पर ध्वजा चढाई गई। सतरह भेदी पूजा पढाई गई। यह समारोह खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवन्त श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मयंकप्रभसागरजी म. पू. मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. , पू. मुनि श्री मौनप्रभसागरजी म. , पू. मुनि श्री मोक्षप्रभसागरजी म. , पू. मुनि श्री मननप्रभसागरजी म. , पू. मुनि श्री कल्पज्ञसागरजी म. आदि ठाणा एवं पूजनीया खान्दे श शिरोमणि महत्तरा पद विभुषिता श्री दिव्यप्रभाश्रीजी म.सा , साध्वी प्रियरदर्शनाश्रीजी म. , साध्वी हेमरत्नाश्रीजी म. , साध्वी मृगावतीश्रीजी म. , साध्वी प्रियश्रद्धांजनाश्रीजी म. आदि साध्वी मंडल की पावन निश्रा में संपन्न हुआ। इस अवसर पर मंत्री श्री बाबुलालजी लूणिया , कोषाध्यक्ष श्री पुखराजजी तातेड़ , सदस्य श्री विजयजी गुलेच्छा , रतनचंद बोथरा आदि कई ट्रस्टी उपस्थित थे। इस मंदिर की प्

ज्ञान पंचमी के दिन श्रुत की पूजा कर लेना, ज्ञान मंदिरों के पट खोलकर पुस्तकों के प्रदर्शन कर लेना और फिर वर्ष भर के लिए उन्हें ताले में बंद कर देना ज्ञानभक्ति नहीं है। इस दिन श्रुत के अभ्यास, प्रचार और प्रसार का संकल्प करना चाहिए।

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Gyan Panchami ज्ञान पंचमी ज्ञान पंचमी कार्तिक शुक्ला पंचमी अर्थात दीपावली के पाँचवे दिन मनाई जाती है।  इस दिन विधिवत आराधना करने से और ज्ञान की भक्ति करने से  कोढ़ जैसे भीषण रोग भी नष्ट हो जाते हैं। इस दिन 51 लोगस्स का कायोत्सर्ग, 51 स्वस्तिक, 51 खामासना और  " नमो नाणस्स " पद का जाप किया जाता है।  ज्ञान पंचमी को लाभ पंचमी भी कहा जाता है। ज्ञान पंचमी सन्देश देती है की ज्ञान के प्रति दुर्भाव रखने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। अतएव हमें ज्ञान की महिमा को हृदयंगम करके उसकी आराधना करनी चाहिए। यथाशक्ति  ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए और दूसरों के पठन पाठन में योग देना चाहिए। यह योग कई प्रकार से दिया जा सकता है।निर्धन विद्यार्थियों को श्रुत ग्रन्थ देना, आर्थिक सहयोग देना, धार्मिक ग्रंथों का सर्वसाधारण में वितरण करना,  पाठशालाएं चलाना, चलाने वालों को सहयोग देना,  स्वयं प्राप्त ज्ञान का दूसरों को लाभ देना आदि। ये सब ज्ञानावर्णीय कर्म के क्षयोपशम के कारण है। विचारणीय है की जब लौकिक ज्ञान प्राप्ति में बाधा पहुंचाने वाली गुणमंजरी को गूंगी

durg me Suri Mantra Sadhna दुर्ग में सूरिमंत्र की प्रथम पीठिका की साधना सम्पन्न

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durg me Suri Mantra Sadhna दुर्ग नगर में पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. के सूरिमंत्र की प्रथम पीठिका की इक्कीस दिवसीय साधना दिनांक 03 अक्टूबर से शुरू हुई और उसका निर्विघ्न सानन्द समापन समारोह 23 अक्टूबर को हुआ। इस साधना के अन्तर्गत पूज्यश्री सम्पूर्ण तौर पर मौन के साथ सूरिमंत्र के जप और तप में लीन रहे। 23 अक्टूबर को सुबह 5.20 बजे आयोजित हवन-पूजन के कार्यक्रम में श्रावकों ने पूजा परिधान पहनकर भाग लिया। प्रात: 9.30 बजे आचार्यश्री के सम्मान में गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला गया। जुलूस में हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं और बाहर से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। आचार्यश्री ने सुबह 10 बजे प्रवचन स्थल सुखसागर प्रवचन-वाटिका में प्रवेश किया। आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में उनकी मंत्र साधना की सफलता के लिए श्रावक-श्राविकाओं द्वारा किए गए नवकार मंत्र जाप के लिए प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी सूरिमंत्र प्रथम पीठिका मौन-साधना आनन्ददायी रही। यह ज्ञातव्य है कि संपूर्ण भारत में स्थान स्थान पर पूज्यश्री की साधना के निर्विघ्न लक्ष्य के लिये नवका

Durg se Sangh दुर्ग से छह री पालित उवसग्गहर पार्श्वनाथ तीर्थ तक पैदल संघ

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Durg se Sangh       दुर्ग नगर से पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. पूज्य मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म. , पूज्य मुनि श्री समयप्रभसागरजी म. , पूज्य मुनि श्री विरक्तप्रभसागरजी म. , पूज्य मुनि श्री श्रेयांसप्रभसागरजी म. ठाणा 6 एवं पूजनीया माताजी म. श्री रतनमालाश्रीजी म. पूजनीया बहिन म. डाँ. श्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री प्रज्ञांजनाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री नीतिप्रज्ञाश्रीजी म. पू. साध्वी श्री निष्ठांजनाश्रीजी म. ठाणा 5 की पावन निश्रा में श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ एवं चातुर्मास समिति दुर्ग के तत्वावधान में दुर्ग नगर से उवसग्गहर पार्श्वनाथ तीर्थ होते हुए कैवल्यधाम तीर्थ के लिये पंच दिवसीय छह री पालित पद यात्रा संघ का आयोजन किया गया है। इस संघ का आयोजन श्री भूरमलजी पतासी देवी बरडिया परिवार की ओर से होने जा रहा है।

दीपावली शुभाशयः

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दीपावली शुभाशयः Happy Diwali

Navpad Oli तप धर्म की आराधना.. परमात्मा महावीर जानते थे कि उन्हें उसी भव में मोक्ष जाना है। फिर भी घाती कर्मों का क्षय करने के लिए दीक्षा लेकर एकमात्र तप धर्म का ही सहारा लिया। साढ़े बारह वर्ष तक भूमि पर बैठे नही। सोये नहीं। तप की साधना तभी फलीभूत हुयी और सभी घाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान को प्राप्त किया ।

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navpad oli आज नवपद ओली जी का अंतिम 9 वां दिन तप पद की आराधना तप जीवन का अमृत है  । जैसे अमृत मिलने पर मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है वैसे ही हमारे जीवन में तप रूपी अमृत आने पर जीवन अमर हो जाता है। दूध को तपाने से मलाई,  अन्न को तपाने से स्वादिष्ट भोजन,  सोने को तपाने से आभूषण बन जाता है।  वैसे ही शरीर को तप की अग्नि द्वारा तपाने से हमारे कर्म रूपी मैल खिरने लगता है  ।

Navpad Oli 8th day संसार और मोक्ष के बीच जो पुल है उसका नाम चारित्र ! आठ कर्मों का नाश करना हो तो इस आठवे पद की आराधना करनी चाहिए !

नवपद ओलीजी का आज आठवां दिन चारित्र पद की आराधना आठ कर्मों का नाश करना हो तो इस आठवे पद की आराधना करनी चाहिए ! संसार और मोक्ष के बीच जो पुल है उसका नाम चारित्र ! बिना इसके कोई नही जा सकता है वह चारित्र 2 प्रकार का - 1 देश विरति ( श्रावक जो छोटे नियम व्रत का पालन करता है) 2 सर्व विरति (साधू जो 5 महाव्रत का पालन करता है) राग और चारित्र में कट्टर शत्रुता है,  दोनों में से कोई 1 ही रह सकता है! हमारे हृदय में राग इतना जोरदार चिपक गया है । वैराग्य भाव टिक नहीं रहा है। चारित्र के लिये राग नहीं, वैराग्य चाहिए।