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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

रंगून में अभिषेक





                
                         रंगून में अभिषेक
ब्रह्मदेश- म्यांमार देश की राजधानी रंगून {यंगून} के जिन मंदिर एवं दादावाडी का आवश्यक जीर्णोद्धार श्री जिनदत्त कुशलसूरि खरतरगच्छ पेढी के तत्वावधान में संपन्न हुआ।
इस जीर्णोद्धार का संपूर्ण लाभ पेढी के अध्यक्ष व मान्यवर फलोदी चेन्नई निवासी श्रेष्ठिवर्य श्री मोहनचंदजी प्रदीपकुमारजी ढड्ढा परिवार द्वारा लिया गया।
बिना उत्थापन के हुए इस जीर्णोद्धार के पश्चात् 21 जुलाई 2012 को अठारह अभिषेक का विधान संपन्न किया गया। अभिषेक के विधान हेतु समस्त औषधियां व आवश्यक सामग्री के साथ ढड्ढा परिवार रंगून पहुँचा। श्री नाकोडा ज्ञानशाला के प्राचार्य शासन रत्न श्री नरेन्द्रभाई कोरडिया ने सारा विधि विधान कराया। दादा गुरूदेव की पूजा पढाई गई। व मंदिर पर ध्वजा चढाई गई। इस विधि विधान हेतु श्री ढड्ढाजी, श्री राजेशजी गुलेच्छा चेन्नई व श्री नरेन्द्रजी कोरडिया 20 जुलाई को वायुयान से रंगून पहुँचे।
रंगून के इस मंदिर का प्रारंभ जयपुर निवासी श्री किशनचंदजी पुंगलिया ने संवत् 1930 में किया था। उनका व्यापार बर्मा देश में फैला हुआ था। इस कारण वे सर्वप्रथम श्री सिद्धचक्रजी का गट्टा अपने साथ लाकर अपने मकान में स्थापित किया था। इस प्रकार बर्मा में जिन भक्ति का वातावरण प्रारंभ हुआ। कुछ समय के बाद पार्श्वनाथ प्रभु की रजतमय प्रतिमाजी भरवाकर उनके ही घर में बिराजमान की गई।
बाद में श्री संघ ने एकत्र होकर संवत् 1955 में जिन मंदिर हेतु भूमि क्रय की गई। जिन मंदिर के निर्माण के पश्चात् वि. सं. 1971 वैशाख वदि 5 को महोत्सव के साथ परमात्मा महावीर,   पार्श्वनाथ प्रभु, दादा गुरूदेव आदि बिंबों व पादुकाओं की प्रतिष्ठा की गई।
श्री मोहनचंदजी ढड्ढा का मार्च, 2012 में अपने मित्रों के साथ बर्मा जाना हुआ। वहाँ उन्हें जानकारी हुई कि रंगून में जैन मंदिर है व उसके जीर्णोद्धार की अपेक्षा है। वे अपने रंगून कार्यालय के प्रबंधक श्री भरत प्रकाश के साथ जिन मंदिर दर्शनार्थ गये। मंदिर में परमात्मा महावीर प्रभु की स्वर्ण अभिमंडित प्रतिमा, दादा गुरूदेवश्री जिनकुशलसूरि की चरण पादुका के दर्शन कर मन भाव विभोर हो गया। जिन मंदिर की भव्यता, प्राचीनता का अवलोकन कर जीर्णोद्धार की आवश्यकता का अनुभव हुआ।
श्री ढड्ढाजी के मन में भाव समाया कि 100 वर्षों से अिध्ाक प्राचीन इस तीर्थ तुल्य जिन मंदिर का जीर्णोद्धार होना चाहिये। ट्रस्टियों से सलाह मशविरा करके आवश्यक जीर्णोद्धार कराने का निर्णय किया गया। जीर्णोद्धार का संपूर्ण लाभ श्री जिनदत्त-कुशलसूरि खरतरगच्छ पेढी के तत्वावधान में ढड्ढा परिवार ने ही ले लिया व कार्य का जिम्मा श्री भरत प्रकाशजी को सौंपा गया। मई में प्रारंभ यह जीर्णोद्धार जुलाई में पूर्णता को प्राप्त हुआ।
श्री ढड्ढा परिवार द्वारा लिये गये इस अनूठे लाभ के लिये पेढी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संघवी श्री तेजराजजी गुलेच्छा, महामंत्री श्री प्रकाशजी कानूगो, कोषाध्यक्ष श्री दीपंचदजी बाफना तथा पेढी के समस्त ट्रस्टियों ने उन्हें हार्दिक बधाई दी है। जहाज मंदिर परिवार की ओर से इस शुभ कार्य हेतु भूरि भूरि अनुमोदना

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