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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

33. जटाशंकर उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

33. जटाशंकर  उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म.सा.

 जटाशंकर पढाई कर रहा था। पढाई में मन उसका और बच्चों की भाँति कम ही लगता था। पिताजी बहुत परेशान रहते थे। बहुत बार डाँटते भी थे। पर वांछित परिणाम आया नहीं था। वह बहाना बनाने में होशियार था।
आखिर पिताजी ने तय कर लिया कि वे अब उसे डांटेंगे नहीं, बल्कि प्रेम से समझायेंगे।
उन्होंने अपने बच्चे को अपने पास बिठाकर तरह तरह से समझाया कि बेटा! यही उम्र है पढाई की! मूर्ख व्यक्ति की कोई कीमत नहीं होती।
दूसरे दिन उन्होंने देखा कि बेटा पढ तो रहा है। पर कमर पर उसने रस्सी बांध रखी है।
यह देखकर पिताजी बडे हैरान हुए।
उन्होंने पूछा- जटाशंकर! यह तुमने रस्सी क्यों बाँध रखी है?
-अरे पिताजी! यह तो मैं आपकी आज्ञा का पालन कर रहा हूँ।
-अरे! मैंने कब कहा था कि रस्सी बांधनी चाहिये!
-वाह पिताजी! कल ही आपने मुझे कहा था कि बेटा! अब खेलकूद की बात छोड और कमर कस कर पढाई कर!
सो पिताजी कमर कसने के लिये रस्सी तो बांधनी पडेगी न!
पिताजी ने अपना माथा पीट लिया।
शब्द वही है, पर समझ तो हमारी अपनी ही काम आती है। कहा कुछ जाता है, समझा कुछ जाता है, किया कुछ जाता है! ऐसा जहाँ होता है, वहाँ जिंदगी दुरूह और कपट पूर्ण हो जाती है। मात्र शब्दों को नहीं पकडना है... भावों की गहराई के साथ तालमेल बिठाना है।

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