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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

32 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

32 जटाशंकर       -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी . सा.

जटाशंकर सेना में ड्राइवर था। घुमावदार पहाड़ी रास्ते में एक दिन वह ट्रक चला रहा था कि उसकी गाड़ी खाई में गिर पडी। वह तो किसी तरह कूद कर बच गया परन्तु गाडी में रखा सारा सामान जल कर नष्ट हो गया।
सेना ने जब इस घटना की जाँच की तो सबसे पहले जटाशंकर से पूछा गया कि तुम सारी स्थिति का वर्णन करो कि यह दुर्घटना कैसे हुई।
जटाशंकर हाथ जोड कर कहने लगा- अजी! मैं गाड़ी चला रहा था। रास्ते में मोड बहुत थे। गाड़ी को पहले दांये मोडा कि बांये हाथ को मोड आ गया। मैंने गाडी को फिर बांये मोडा। फिर दांये मोड आ गया। मैंने दांयी ओर गाडी को काटा। कि फिर बांयी ओर मोड आ गया, मैंने फिर गाडी को बांयी ओर मोडा। दांये मोड, फिर बांये मोड, फिर दांये मोड, फिर बांये मोड, ऐसे दांये से बांये और बांये से दांये मोड आते गये, मैं गाडी को मोडता रहा! मैं गाडी को मोडता रहा और मोड आते रहे। मोड आते रहे... मैं मोडता रहा! मैं मोडता रहा... मोड आते रहे।
एक बार क्या हुआ जी कि मैंने तो गाडी को मोड दिया पर मोड आया ही नहीं! बस गाडी में खड्ढे में जा गिरी!
यह अचेतन मन की प्रक्रिया है। हम बहुत बार अभ्यस्त हो जाते हैं। और जिसमें अभ्यस्त हो जाते हैं, उस पर से ध्यान हट जाता है। फिर मशीन की तरह हाथ काम करते हैं, दिमाग भी मशीन की तरह काम करने लग जाता है। फिर मोड आये कि नहीं आये... गाडी को दांये बांये मोडने के लिये हाथ अभ्यस्त हो जाते हैं। हम अपने जीवन को इसी तरह जीते हैं। हर कदम उठने से पहले उस कदम के परिणामों का चिंतन जरूरी है, यही जागरूकता है।

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