Featured Post

Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

Image
पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

1 जटाशंकर

जटाशंकर

लेखक  -आचार्य जिनमणिप्रभसूरिजी म. सा.
जटाशंकर स्कूल में पढता था। अध्यापक के बताये काम करने में उसे कोई रूचि नहीं थी। 
बहाने बनाने में होशियार था। अपने तर्कों के प्रति उसे अहंकार था।  
वह सोचता रहतामैं अपने तर्क से हर एक को निरूत्तर कर सकता हूँ।
एक बार वह कक्षा में पढ़ रहा था।  
अध्यापक ने सभी बच्चों को आदेश दिया कि घास खाती हुई गाय का चित्र बनाओ।
कक्षा के सभी छात्र चित्र बनाने लगे। जटाशंकर अपनी कॉपी इधर से उधर कर रहा था।  
कभी अध्यापक को देखतातो कभी चित्र बनाने में जुटे अन्य छात्रों को 
पर स्वयं उसे चित्र बनाने में कोई रूचि नही थी।
आधे घंटे बाद जब सभी छात्रों ने अपनी काँपियाँ जमा करा दी।  
अध्यापक समझ गया था कि जटाशंकर  ने चित्र ही नहीं बनाया होगा  
क्योंकि वह पूरा समय इधर उधर देख रहा था।
अध्यापक ने जटाशंकर की खाली काँपी देखी तो उसे अपने पास बुलाया।  
जटाशंकर से गुस्से से पूछा-चित्र कहाँ बनाया हैंकाँपी तो खाली है।
 जटाशंकर ने बेफिक्री से जवाब दिया-महोदयमैंने चित्र तो बनाया हैआप ध्यान से देखें।  
अध्यापक ने पूछा-बताइसमें घास कहाँ हैजटाशंकर ने जबाव दिया सरघास तो गाय खा गई।
अध्यापक ने पूछा-तो गाय कहाँ है?
जटाशंकर ने कहा-सरघास खाने के बाद गाय वहाँ खड़ी क्यों रहेगीवह तो चल दी।  
अब चूंकि गाय घास खाकर चल दी हैअतपन्ना खाली है। जबाव सुनकर अध्यापक हैरान रह गया।

अपने कुतर्क पर व्यक्ति भले राजी हो जायपर वह अपना जीवन तो हार ही जाता है।

-----------

Comments

Popular posts from this blog

RANKA VANKA SETH SETHIYA रांका/वांका/सेठ/सेठिया/काला/गोरा/दक गोत्र का इतिहास

GADVANI BHADGATIYA BADGATYA GOTRA HISTORY गडवाणी व भडगतिया गोत्र का इतिहास

GANG PALAVAT DUDHERIYA GIDIYA MOHIVAL VIRAVAT GOTRA HISTORY गांग, पालावत, दुधेरिया, गिडिया, मोहिवाल, टोडरवाल, वीरावत आदि गोत्रें का इतिहास