1 जटाशंकर
लेखक -आचार्य जिनमणिप्रभसूरिजी म. सा.
जटाशंकर स्कूल में पढता था। अध्यापक के बताये काम करने में उसे कोई रूचि नहीं थी।
बहाने बनाने में होशियार था। अपने तर्कों के प्रति उसे अहंकार था।
वह सोचता रहता, मैं अपने तर्क से हर एक को निरूत्तर कर सकता हूँ।
एक बार वह कक्षा में पढ़ रहा था।
अध्यापक ने सभी बच्चों को आदेश दिया कि घास खाती हुई गाय का चित्र बनाओ।
कक्षा के सभी छात्र चित्र बनाने लगे। जटाशंकर अपनी कॉपी इधर से उधर कर रहा था।
कभी अध्यापक को देखता, तो कभी चित्र बनाने में जुटे अन्य छात्रों को,
पर स्वयं उसे चित्र बनाने में कोई रूचि नही थी।
आधे घंटे बाद जब सभी छात्रों ने अपनी काँपियाँ जमा करा दी।
अध्यापक समझ गया था कि जटाशंकर ने चित्र ही नहीं बनाया होगा
क्योंकि वह पूरा समय इधर उधर देख रहा था।
अध्यापक ने जटाशंकर की खाली काँपी देखी तो उसे अपने पास बुलाया।
जटाशंकर से गुस्से से पूछा-चित्र कहाँ बनाया हैं? काँपी तो खाली है।
जटाशंकर ने बेफिक्री से जवाब दिया-महोदय, मैंने चित्र तो बनाया है, आप ध्यान से देखें।
अध्यापक ने पूछा-बता, इसमें घास कहाँ है? जटाशंकर ने जबाव दिया सर, घास तो गाय खा गई।
अध्यापक ने पूछा-तो गाय कहाँ है?
जटाशंकर ने कहा-सर, घास खाने के बाद गाय वहाँ खड़ी क्यों रहेगी, वह तो चल दी।
अब चूंकि गाय घास खाकर चल दी है, अत: पन्ना खाली है। जबाव सुनकर अध्यापक हैरान रह गया।
अपने कुतर्क पर व्यक्ति भले राजी हो जाय, पर वह अपना जीवन तो हार ही जाता है।
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