28 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
पंडित घटाशंकर और ड्राइवर जटाशंकर
स्वर्गवासी हुए। स्वर्ग और नरक का निर्णय करने वाले चित्रगुप्त के पास उन दोनों की
आत्माऐं एक साथ पहुँची।
चित्रगुप्त अपने चौपडे लेकर उन
दोनों के अच्छे बुरे कामों की सूची देखने लगे ताकि उन्हें नरक भेजा जाय या स्वर्ग,
इसका निर्णय हो सके।
लेकिन चौपडों में इन दोनों जीवों
का नाम ही नहीं था। चौपडा संभवत: बदल गया था। या फिर क्लर्क ने इधर उधर रख दिया
था।
आखिर चित्रगुप्त ने उन दोनों
से ही पूछना प्रारंभ किया कि तुमने काम क्या किये है, इस जन्म में! अच्छे या बुरे जो
भी कार्य तुम्हारे द्वारा हुए हो, हमको बता दें। उसे सुन कर हम आपकी स्वर्ग या नरक
गति का निर्णय कर सकेंगे।
पंडितजी ने कहना प्रारंभ किया-
मैंने जीवन भर भगवान राम और कृष्ण की कथाऐं सुनाई है। सत्संग रचा है। मेरे कारण हजारों
लोगों ने राम का नाम लिया है। इसलिये मेरा निवेदन है कि मुझे स्वर्ग ही भेजा जाना चाहिये।
वाहन चालक ने अपना निवेदन करते
हुए कहा- मुझे भी स्वर्ग ही मिलना चाहिये। क्योंकि मेरे कारण भी लोगों ने लाखों बार
राम का नाम लिया है।
पंडितजी ने कहा- वो कैसे ? राम
का नाम तो मेरे कारण लोगों ने लिया है।
वाहन चालक ने कहा- पंडितजी! आपके
कारण लोगों ने राम का नाम नहीं लिया है। राम का नाम तो मेरे कारण लिया है।
पंडितजी ने अपनी आँखें तरेरी!
वाहन चालक ने कहा- आप जब राम
कथा करते थे तो अधिकतर लोग नींद लेते थे तो कहाँ से राम का नाम लेते। लेकिन मैं जब
शराब पीकर डेढसौ की तीव्र गति से बस चलाता था तो सारे लोग आँख बंद कर मारे डर के राम
का नाम लेना शुरू कर देते थे। जब तक बस नहीं रूकती, राम का नाम लेते ही रहते थे।
इसलिये हजूर! मैंने अपने जीवन
में यह सबसे बडा कार्य किया है कि हजारों, लाखों लोगों को राम का नाम याद दिला देता
था। इसलिये मुझे स्वर्ग ही मिलना चाहिये।
लोगों की दृष्टि बडी अजीब होती
है। अपनी गलती होने पर भी मुस्कुराकर गलती न होने का अहसास दिलाते हैं और उसे भी दूसरों
के लिये उपकारी बता कर प्रपंच रचते हैं। विकृत आचरण होने पर भी स्वर्ग की याचना करना,
अपने साथ प्रवंचना करना है।
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