18 जटाशंकर
-उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
घटाशंकर नाव पर सवार था। नदी उफान
पर थी। अकेला घटाशंकर उकता रहा था। वह नाव के नाविक मि. जटाशंकर से बातें करने लगा।
नाविक को बातों में कोई रस नहीं था। दूर दूर तक कोई दूसरी नाव भी नजर नहीं आ रही थी।
किनारा अभी दूर था। अभी आधा रास्ता भी पार नहीं हुआ था। नदी बहुत गहरी और तीव्र धार
वाली थी। मौसम बिगड रहा था। बादल उमड घुमड रहे थे। हल्की बौछारों का प्रकोप प्रांरभ
हो गया था। आसपास छाई हरियाली को देखकर घटाशंकर का मन आकाश में उड रहा था।
उसे नाविक से पूछा क्यों भाई!
कितना पढे लिखे हों?
नाविक ने कहा हजूर! अनपढ़ हूं।
अरे! तुम्हें गणित विद्या आती
है कुछ! यह जानकर कि नाविक अनपढ है, उसका उपहास करते हुए अंहकार से तनकर घटाशंकर ने
पूछा।
नाविक उदास आँखों से झांकते हुए
बोला बिल्कुल भी नहीं!
सुनकर मुस्कराते हुए घटाशंकर ने
कहा फिर तो चार आना जिन्दगी तुम्हारी पानी में गई।
घटाशंकर ने फिर पूछा तुम्हें
कुछ पता है कि विज्ञान की क्या नई खोज है? कुछ विज्ञान विद्या आती है तुम्हें?
नाविक रूआंसा होकर बोला बिल्कुल
भी नहीं हजूर! हम तो बचपन से ही नाव चलाते हैं। नदी जानते हैं, पानी जानते हैं और आमने
सामने का किनारा जानते हैं। विज्ञान ज्ञान हम क्या जाने?
घटाशंकर ने अपने चेहरे की बनावट
से उसकी हँसी उडाते हुए कहा फिर तो और चार आना अर्थात् आधी जिंदगी तुम्हारी पानी
में गई।
उसे अपनी विद्वता पर बडा गर्व
था।
अपने प्रश्नों पर और ना में मिल
रहे उत्तरों से वह बडा ही प्रसन्न था।
जटाशंकर बडा परेशान हो रहा था।
उसका उपहास उडाते घटाशंकर पर वह अन्दर ही अन्दर बहुत नाराज भी हो रहा था।
घटशंकर ने कुछ ही पलों के बाद
फिर प्रश्न किया कुछ ज्योतिष विद्या आती है तुम्हें! ग्रह नक्षत्रों की यह दुनिया,
कुण्डली और हस्तरेखाऐं, कुछ आता है।
जटाशंकर आक्रोश युक्त परेशानी
के स्वरों में कहा बाबू साहब। हम तो ठहरे गरीब और अनपढ आदमी । हमें यह सब कहां से आयेगा?
ना सुनकर घटाशंकर बोला अरे। फिर
तो तुम्हारी पौन जिंदगी पानी में गई।
इतने में थोडी आंधी चलने लगी।
तूफान के कारण नदी के लहरों में उछाल आ गया। नाव डगमगाने लगी। नाविक समझ गया कि पानी
तेज होने वाला है। नाव हिचकोले खा रही है। अब कुछ ही देर में यह पलट कर डूब सकती है।
सोच कर उसने बाबू मि. घटाशंकर से पूछा बाबू साहब। आपको तैरना आता हैं ?
घटाशंकर घबरा कर बोला नहीं। मुझे
तैरना तो नहीं आता।
मुस्कुराते हुए जटाशंकर ने कहा
अब नाव डूबने वाली है। मैं तो अभी कूदता हूं। तैर कर पार हो जाउंगा। लेकिन आपको तो
तैरना आता नहीं। मेरी तो पौन जिंदगी ही पानी में गई। आपकी तो पूरी जिंदगी पानी में
गई।
दूसरो की अज्ञानता देखना आसान
है। अपनी अज्ञानता कौन देख पाता है? और जो अपनी अज्ञानता देख लेना शुरू कर देता है,
समझो कि उसने ज्ञान की दिशा में कदम आगे बढा दिया है।
दूसरो का उपहास उडाना भी आसान
है। लेकिन वैसी ही परिस्थिति अपने साथ होने पर ढंग से रोया भी नहीं जायेगा।
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