10 जटाशंकर
-उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
परीक्षा देने के बाद जटाशंकर
अपने मन में बडा राजी हो रहा था। पिछले दो वर्षो से लगातार अनुत्तीर्ण होकर उसी कक्षा
में चल रहा जटाशंकर आश्वस्त था कि इस वर्ष न केवल उत्तीर्ण बनूंगा बल्कि प्रथम श्रेणी
में आकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करूंगा।
असल में इस बार उसने जोरदार नकल
की थी। परीक्षा में उसके आगे बैठे घटाशंकर की काँपी ज्यों की त्यों कॉपी पर उतार दी
थी। वह जानता था कि घटाशंकर हमेशा प्रथम आता है, तो जब मैंने उसकी पूरी काँपी उतारी
है, तो मुझे कम अंक मिल ही नहीं सकते। नकल करने में शरीर की लम्बाई, आंखों की तेज दृष्टि
अध्यापक निरीक्षक के आलस्य ने उसका पूरा सहयोग किया था।
आंखों में मुस्कान, हृदय में आत्मविश्वास
भरी अधीरता लिये वह परीक्षा फल की प्रतीक्षा करने लगा। उस दिन उसने नये वस्त्र धारण
किये थे। कालेज में पहुँचकर सब सहपाठियों के बीच मुस्करा रहा था। उसकी रहस्य भरी मुस्कुराहट
देख सभी छात्र सोच रहे थे कि इसे तो अनुत्तीर्ण ही होना है। लगातार फेल होने पर भी
अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन नहीं किया है। खेलना, कूदना, बातें, गप्पे, यही इसकी
ज़िंदगी है। फिर यह क्यों मुस्कुरा रहा हैं।
लेकिन जब परीक्षाफल देखा तो उसका
चेहरा उतर गया क्यों उसे अनुत्तीर्ण (फेल) घोषित किया गया था। वह आक्रोश से भरकर प्राध्यापक
महोदय के पास पहुंचा। उसने उत्तर पुस्तिका के पुनरीक्षण की तीव्र मांग की। तब पता चला
कि राजनीति शास्त्र में उसे शून्य अंक मिला था।
वह अचंभे में पड गया। उसने सोचा-मैने
तो घटाशंकर की पूरी नकल की थी, उसे कक्षा में प्रथम स्थान मिला, जबकि वह फेल हुआ, ऐसा
कैसे हुआ?
प्राध्यापक महोदय ने कहा-जटाशंकर।
तुम्हारा विषय राजनीति शास्त्र था, और तुमने पर्चा हल करने के बजाय विज्ञान का पर्चा
हल करते हुए सारे उत्तर लिख दिये है।
सुनते ही जटाशंकर को चक्कर आ
गया। वह समझ गया कि नकल तो मैंने की, लेकिन अक्ल का उपयोग नहीं किया। घटाशंकर विज्ञान
का छात्र था और मैं राजनीति का। मैंने बस आँख मूंद कर नकल मारने में रहा।
नकल में सफलता पाई नहीं जा सकती।
किसी अन्य का परिश्रम उसे ही परिणाम देगा और तुम्हारा अपना परिश्रम तुम्हें।
--------------------------
Comments
Post a Comment
आपके विचार हमें भी बताएं