16 जटाशंकर
-उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
अपनी हरकतों के कारण सारा गाँव जटाशंकर को मूर्ख
कहता था। उसे न बोलने का भान था, न करने का! हांलाकि वह अपने आपको बडा ही समझदार और
होशियार आदमी मानता था। वह अपने मुँह मिट्ठू था। मगर समस्या यह थी कि अनजाना आदमी भी
उसकी आदतों को देखकर मूर्ख कह उठता था। वह तंग आ गया। क्रोध की सीमा नहीं रही। झल्लाते
हुए उसने सोचा, यह गाँव ही बेकार है। यहाँ के लोग ईर्ष्या से भरे हैं। मेरी बढती और
मेरा यश इन लोगों को सुहाता नहीं है । इसलिये जब देखो तब ये लोग मेरी निन्दा करते रहते
है। उसने गाँव का त्याग करने का निर्णय कर लिया। उसने सोचा- दूसरे गाँव जाउँगा। वहाँ
लोगों को मेरा परिचय होगा नहीं, तो वे लोग मुझे मूर्ख नहीं कहेंगे। वहाँ मैं अपनी बुद्धि
का चमत्कार दिखाउँगा और यश कमाउँगा।
उसने दूसरे ही दिन गाँव को नमस्कार
कर अंधेरे अंधेरे ही चल पडा। शाम तक चलता चलता थकान का अनुभव करता हुआ दूसरे गाँव
पहुँचा। गाँव के बाहर कुऐं के पास एक विशाल वटवृक्ष के तले थोड़ी देर विश्राम हेतु बैठ
गया। उसे प्यास लगी थी। कुऐं के पास टंकी थी । टंकी के नीचे एक ओर नल लगे हुए थे। गाँव
की महिलाएं पानी भरने आ जा रही थी।
जटाशंकर को प्यास लगी थी। वह
तुरंत टंकी के पास पहुँचा। नल से एक महिला पानी भर रही थी। नल चालू था। मटका भर कर
महिला ने एक ओर हटाया ही था कि जटाशंकर अपनी हथेली और अंगुलियों को मोडकर उसे दोने
का आकार देते हुए बूक से पानी पीने लगा। पानी पी लेने के बाद, प्यास बुझने के बाद
वह अपनी गर्दन को हिलाकर नल को मना करने लगा कि बस भाई! पानी पी लिया। अब और पानी नहीं
चाहिये। परन्तु नल अपने आप तो बन्द होता नहीं। उसे बन्द करने के स्थान पर बोल कर, गर्दन
हिलाकर मना करने लगा। फिर भी जब नल बन्द नहीं हुआ तो जोर जोर से चीखकर कहने लगा- बस
! अब पानी नहीं चाहिये।
यह दृश्य पानी भरने आई तीन महिलाओं
ने देखा तो जोर से बोल पडी- तुम बडे मूर्ख प्रतीत हो रहे हो।
मूर्ख शब्द सुना और वह आश्चर्यचकित
हो गया। उसने तुरंत महिला से पूछा- तुम्हें कैसे मालूम पडा कि मैं मूर्ख हूँ। इसी शब्द
से पीछा छुड़ाने के लिये तो अपने गाँव को छोड़ा और यहाँ आया। यहाँ आते ही मेरे इस नाम
का पता आपको कैसे हो गया?
महिला ने हँसते हुए कहा- गाँव
छोड़ने से विशेषण नहीं बदलता । स्वभाव बदलता है तो विशेषण बदलता है। तुम्हारी हरकत मूर्खता
भरी थी तो मूर्ख ही तो कहा जायेगा।
जटाशंकर कुछ समझ नहीं पाया।
व्यक्ति के स्वभाव की पहचान उसके
आचरण से होती है। आचरण में यदि अविवेक है तो केवल चाहने से यश नहीं मिल सकता। हमारी
चाह के साथ आचरण का तालमेल जरूरी है।
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