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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

11 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

11 जटाशंकर      -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

जटाशंकर का बेटा बीमार था। बुखार बहुत तेज था। कमजोरी अत्यधिक थी। बोलने में भी पीड़ा का अनुभव था। छोटा सा गांव था। एक वैद्यराजजी वहां रहते थे। उन्हें बुलवाया गया। वैद्यराजजी ने घटाशंकर का हाथ नाड़ी देखने के लक्ष्य से अपने हाथ में लिया। जल्दबाजी कहें या अनुभवहीनता। कलाई में जहाँ नाड़ी थी, वहाँ न देखकर दूसरे हिस्से में नाड़ी टटोलने लगे। काफी प्रयास करने पर भी उन्हें नाड़ी नहीं मिली।
वैद्यराजजी के चेहरे के भावों का उतार-चढ़ाव जारी था। उनके उतरे चेहरे को देखकर जटाशंकर की ध्ाड़कन  तेज हो गई। उसे किसी अनिष्ट की आंशका हो रही थी।
काँपती जबान और धडकती छाती से उसने पूछा वैद्यराजजी। क्या बात है? आप कुछ बोल नहीं रहे हैं? सब ठीक तो है न? मेरा बेटा ठीक हो जायेगा न?
वैद्यराजजी ने उदास स्वरों में कहा भाई। इसकी नाडी नहीं चल रही है। इसका अर्थ है कि अब यह जीवित नहीं है क्योंकि जीवित होता तो नाड़ी चलती।
अपने बेटे की मृत्यु का संवाद सुनकर जटाशंकर जोर जोर से रोने लगा।
घटाशंकर ने अपनी सारी शक्ति एकत्र की ओर जोर से बोला पिताजी! मैं जिन्दा हूँ। मरा नहीं।
सुनकर जटाशंकर बोला चुप रह। तू ज्यादा जानता है या वैद्यराजजी। जब वैद्यराजजी ने कह दिया कि तू मर गया तो मर गया।
अपने अस्तित्व का बोध कोई और कैसे देगा! मैं ही मुझे जान सकता हूं।

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