25 जटाशंकर
-उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.
जटाशंकर की आदत से उसकी पत्नी
बडी परेशान थी। वह उसके हर काम में हमेशा मीन मेख निकालता ही था। गलती निकाले बिना...
और गलती निकाल कर दो चार कडवे शब्द बोले बिना उसकी रोटी जैसे पचती नहीं थी।
अक्सर खाने में कोई न कोई कमी
निकालता ही था। उसकी पत्नी बडी मेहनत करती कि कैसे भी करके मेरे पति मेरे खाना बनाने
की कला से पूर्ण संतुष्ट होकर तृप्ति का अनुभव करें। पर जटाशंकर अलग ही माटी का बना
था।
उसकी पत्नी प्रशंसा के दो शब्द
सुनने के लिये तरस गई थी। पर मिले हमेशा उसे कडवे शब्द ही थे।
उसकी पत्नी ने भोजन में टमाटर
की चटनी परोसी थी। तो जटाशंकर तुनक कर बोला- अरे! जिस टमाटर की तुमने चटनी बनायी, यदि
इसके स्थान पर तुम टमाटर की सब्जी बनाती तो ज्यादा अच्छा रहता... बडा मजा आता...! मगर
तूंने चटनी बनाकर सारा काम बेकार कर दिया।
दूसरे दिन उसने टमाटर की चटनी
न बनाकर सब्जी बना दी। जटाशंकर मुँह चढाता हुआ बोला- आज के टमाटर तो चटनी योग्य थे...
आनंद ही कुछ अलग होता! तूंने आज सब्जी बना कर गुड गोबर कर दिया।
बेचारी पत्नी करे भी तो क्या
करे! चटनी बनाती है तो सब्जी की फरमाइश और सब्जी बनाती है तो चटनी की इच्छा!
दोनों बातें कैसे हो सकती थी।
मगर एक दिन जटाशंकर की पत्नी
ने ठान लिया कि देखती हूँ आज वे क्या करते हैं?
उसने टमाटर की सब्जी परोस दी।
जटाशंकर अपनी आदत के मुताबिक बोला- कितना अच्छा होता... यदि टमाटर की चटनी बनी होती!
उसकी पत्नी तुरंत अंदर गई और
चटनी परोसते हुए कहा- ये लो चटनी! अब तो आप प्रसन्न हैं न!
जटाशंकर पल भर के लिये तो हडबडा
गया। उसे पता नहीं था कि वो दोनों ही सामग्री तैयार रखेगी।
मगर कुछ ही पलों के बाद संभलते
हुए और संभल कर अपनी आदत के अनुसार बिगडते हुए कहा- अरे! तुमने सारा काम उल्टा कर दिया!
जिस टमाटर की चटनी बनानी चाहिये थी, उसकी तो सब्जी बना दी और जिस टमाटर की सब्जी बनानी
थी, उसकी चटनी बना दी। सारा काम तुम ऊंधा ही करते हो।
बेचारी पत्नी क्या बोलती? अब
इसका तो कोई उपाय नहीं था।
जो व्यक्ति ठान लेते हैं कि मुझे
क्रोध करना ही है, उनको दुनिया की कोई ताकत समझा नहीं सकती। उनके लिये बहाने बहुत
हैं।
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