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Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

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पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

12 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म. सा.

12 जटाशंकर -उपाध्याय मणिप्रभसागरजी म सा.


दो चींटियाँ आपसे में बाते करती हुई चली जा रही थी। अन्य चींटियों से थोड़ी बडी भी थी और ताक़तवर भी। किसी ने उनका नाम जटाशंकर और घटाशंकर रखा था। अपनी ताकत का अहंकार भी मानस में था। सामने से एक हाथी चला आ रहा था। हाथी के विशाल आकार को देखा तो चीटिंयां अपने मन में अपनी लघुता के कारण हीन भाव का अनुभव करने लगी।

उस हीन भाव से प्रेरित अंहकार भाव में डूबकर एक चींटी हाथी से कहने लगी- खा खा कर बड़े मोटे हुए जा रहे हो। कुछ ताकत भी है या नहीं, या यों ही वादी से भरें हो। हमसे लडोगे?

हाथी कुछ बोला नहीं। दूसरी चींटी ने उसे मौन देख पहली चींटी से कहने लगी।

छोड़ो बेचारे को! देखो कैसा घबरा रहा है। अरे वो बिचारा अकेला है, अपन दो है। छोड़ो। लडाई बराबर वालो में की जाती है। यह अकेला बिचारा अभी भाग जायेगा।

यह अपने मुँह मिट्ठू बनने का उदाहरण हैं। बहुत बार हम अपने थोथे अहं का प्रदर्शन उसके लिये करते हैं जो हकीकत में हमारे पास नहीं होता।

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