Featured Post

Shri JINManiprabhSURIji ms. खरतरगच्छाधिपतिश्री जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है।

Image
पूज्य गुरुदेव गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं पूज्य आचार्य श्री जिनमनोज्ञसूरीजी महाराज आदि ठाणा जहाज मंदिर मांडवला में विराज रहे है। आराधना साधना एवं स्वाध्याय सुंदर रूप से गतिमान है। दोपहर में तत्त्वार्थसूत्र की वाचना चल रही है। जिसका फेसबुक पर लाइव प्रसारण एवं यूट्यूब (जहाज मंदिर चेनल) पे वीडियो दी जा रही है । प्रेषक मुकेश प्रजापत फोन- 9825105823

AGHARIYA AGHRIYA GOTRA HISTORY आघरिया गोत्र का इतिहास


आघरिया गोत्र का इतिहास

आलेखकः- गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी महाराज


आघरिया गोत्र का संबंध भाटी राजपूतों से है। सिंध देश में अग्ररोहा नाम का नगर था। उस नगर पर गोपालसिंह भाटी राजपूत राज्य करता था।
वि. सं. 1214 चल रहा था। प्रथम दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि का स्वर्गवास हो चुका था। उनके पट्ट पर मणिधारी दादा श्री जिनचन्द्रसूरि बिराजमान थे।
वे विहार करते हुए अग्ररोहा नगर पधारे। उस समय उस राज्य पर यवन सेना का आक्रमण हुआ था। राजा गोपालसिंह भाटी को उन्होंने कैद कर दिया था।
तब राजा के प्रधान घुरसामल अग्रवाल ने बहुत सावधानी से मणिधारी दादा जिनचन्द्रसूरि के पास पहुँचा। उनसे निवेदन किया- भगवन्! कैसे भी करके राजा को छुडाना है।
गुरुदेव ने कहा- यदि राजा हिंसा का त्याग करे... जैन धर्म स्वीकार करे... नवकार का जाप करे... तो यह चमत्कार संभव है।

उसने कहा- गुरुदेव! आपका आदेश शिरोधार्य होगा।
गुरुदेव के जाप का ऐसा अद्भुत चमत्कार रहा कि राजा गोपालसिंह की बेडियॉं अपने आप टूट गई। यवन सेना के सेनापति यह देख कर चमत्कृत हुआ। उसने दूसरी नई मजबूत बेडियॉं डाली।
पर दूसरे ही पल वे बेडियॉं भी टूट गई।
ऐसा सात बार हुआ। तब वह अचरज से भर कर पूछने लगा- राजन्! यह क्या चमत्कार है।
राजा गोसलसिंह भाटी ने कहा- मैं नहीं जानता।
सेनापति शमशेरखां ने विचार किया- यह सामान्य घटना नहीं है। अवश्य ही इसके पीछे किसी महापुरुष का हाथ होना चाहिये।
उसने तत्काल राजा गोसलसिंह को मुक्त कर दिया।
राजा मुक्त होकर अपने घर गया। प्रधान घुरसामल ने कहा- राजन्! यह सब गुरुदेव मणिधारी जिनचन्द्रसूरि की ही कृपा का परिणाम है।
राजा सपरिवार गुरुदेव के पास पहुँचा। राजा ने गुरुदेव से धर्म का श्रवण किया। श्रद्धा से भर कर उसने जिनधर्म स्वीकार कर लिया।
अग्ररोहा शहर की यह घटना होने से उन्हें गोत्र दिया- आग्रहिया! कालांतर में यही गोत्र आग्रहिया आघरिया/आगरिया नाम से प्रसिद्ध हुआ।

कांकरिया गोत्र का इतिहास

मिन्नी/खजांची/भुगडी गोत्र का इतिहास

बरडिया गोत्र का इतिहास

रांका/वांका/सेठ/सेठिया/काला/गोरा/दक गोत्र का इतिहास

बाफना/नाहटा आदि गोत्रों का इतिहास

नाहटा गोत्र का इतिहास

रतनपुरा कटारिया गोत्र का इतिहास

झाबक/झांमड/झंबक गोत्र का इतिहास

खींवसरा/खमेसरा/खीमसरा गोत्र का इतिहास

पगारिया/मेडतवाल/खेतसी/गोलिया गोत्र का इतिहास

आयरिया/लूणावत गोत्र का इतिहास

बोरड/बुरड/बरड गोत्र का इतिहास

डोसी/दोसी/दोषी/सोनीगरा गोत्र का इतिहास

ढ़ड्ढ़ा/श्रीपति/तिलेरा गोत्र का इतिहास

राखेचा/पुगलिया गोत्र का इतिहास

कूकड चौपडा, गणधर चौपडा, चींपड, गांधी, बडेर, सांड आदि गोत्रें का इतिहास

समदरिया/समदडिया गोत्र का इतिहास

चोरडिया/गोलेच्छा/गोलछा/पारख/रामपुरिया/गधैया आदि गोत्रें का इतिहास

खांटेड/कांटेड/खटोड/खटेड/आबेडा गोत्र का इतिहास

गांग, पालावत, दुधेरिया, गिडिया, मोहिवाल, टोडरवाल, वीरावत आदि गोत्रें का इतिहास

गडवाणी व भडगतिया गोत्र का इतिहास

आघरिया गोत्र का इतिहास

पोकरणा गोत्र का इतिहास




Comments

Popular posts from this blog

RANKA VANKA SETH SETHIYA रांका/वांका/सेठ/सेठिया/काला/गोरा/दक गोत्र का इतिहास

PAGARIYA MEDATVAL GOLIYA GOTRA HISTORY पगारिया/मेडतवाल/खेतसी/गोलिया गोत्र का इतिहास

RAKHECHA PUGLIYA GOTRA HISTORY राखेचा/पुगलिया गोत्र का इतिहास